“कर्ण तुम्हें अच्छी तरह समझ लेना चाहिये कि मैं जो कवच और कुण्डल तुमसे दान ले रहा हूँ उसे दे देने के बाद काल तुम पर कभी भी आक्रमण कर सकता है?” ब्राह्मण वेशधारी इन्द्र ने सावधान किया।
किन्तु कर्ण ने उत्तर दिया- “विप्रवर! वसुषेण इस बात को अच्छी तरह जानता है पर जो दान और परोपकार की महत्ता को पहचानता है, उसके लिये प्राणों का मोह कोई बाधा नहीं।”
यह कहकर कर्ण ने कुण्डल और कवच उतारे और इन्द्र को सौंप दिये।