काल की इकाई से महाकाल तक

December 1970

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समय एक साक्षेप वस्तु है, उसका अस्तित्व संसार में निरन्तर हो रही घटनाओं से है। एक लाख वर्ष बीत गये यह कहना गलत है, क्योंकि समय कुछ है ही नहीं। यह कहना चाहिये इतनी घटनायें घट चुकीं। संसार के अणु-अणु में एक गति एक परिवर्तन है उसे कैसे जाना और अनुभव किया जाये? यह एक प्रश्न है और उसका उत्तर यह है कि समय को भी लघुत्तम टुकड़े में काटा जाये आदि। यदि हम समय की सूक्ष्मतम इकाई में स्थिर हो जायें तो विराट की गति को समझ सकते हैं, इस लेख में यही समझाने का प्रयास किया जा रहा है।

कहते हैं 50 खरब से 80 खरब वर्ष के लगभग पहले ब्रह्माण्ड में एकाएक विस्फोट हुआ और उस विस्फोट केन्द्र बिन्दु से असंख्य “मन्दाकिनियाँ” प्रकाश लेकर चल पड़ीं। ब्रह्माण्ड में फैला हुआ जीवन और प्रकाश उसी स्रोत से बहता आ रहा है। कहते हैं 10 खरब साल पहले हमारा सौर मण्डल और वह जिस आकाश गंगा से बना है उसके 30 अरब तारागणों में से कोई भी अस्तित्व में नहीं आया था। पृथ्वी पर मनुष्य का आविर्भाव 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 40 हजार 70 वर्ष पहले हुआ था। समय की सारी सीमायें अनुमान मात्र हैं और उनका अनुमान घटनाओं से लगाया जाता है। घटनायें न होतीं तो हमें पता न चलता कि संसार में समय नाम की कोई वस्तु नहीं। समय साक्षेप वस्तु है, उसके गर्भ में मात्र घटनाओं का तारतम्बार लगा हुआ है जो सत्य है वह समय की सीमा से परे है और जो अब भी सृष्टि के कण-कण में गतिशील हो रहा है।

उस सत्ता को पीछे लौटकर नहीं पाया जा सकता, क्योंकि आज तक जो भी घटनायें ब्रह्माण्ड में घटीं हम उनका इतिहास नहीं जान सकते, वह तो वेद के शब्दों में नेति, नेति (इनफिनिट, इनफिनिट) है, फिर यदि उस सत्ता की अनुभूति करनी हो उसे ढूँढ़ना हो तो कैसे ढूंढ़ा जाये? यह प्रश्न अनादि काल से चला आ रहा है। दुनिया का हर विचारशील व्यक्ति चाहे वह साहित्यिक हो या कलाकार दार्शनिक हो या वैज्ञानिक सभी इस प्रयत्न में हैं कि उस आदि सत्ता को ढूँढ़ा जाये जो महाकाल से भी परे है। भारतीय मनीषिओं ने कहा, उसकी अनुभूति पदार्थ और समय से परे उठकर ही हो सकती है। इसका व्यावहारिक हल ध्यान के रूप में निकाला। ध्यान द्वारा मन को स्थिर करना पदार्थ और समय से ऊपर उठना ही है। ध्यान की प्रगाढ़ अवस्था यद्यपि अति सूक्ष्म स्थिति है पर वस्तुओं का विश्लेषण और सत्य की जानकारी का वही एक मार्ग है।

सन् 1944 में अमेरिका के वैज्ञानिक प्रो. इसाडोर. आई. रैवी ने एक अनुसन्धान के आधार पर बताया कि संसार का प्रत्येक अणु बड़ी तेजी से कम्पनशील है। उन्होंने बताया कि सीसियम के अणु एक सेकेण्ड में 9 अरब 19 करोड़ 26 लाख 31 हजार 7 सौ 70 बार कंपन करते हैं। अणुओं के इस कम्पन की बहुत सूक्ष्म समय में इतनी अधिक तेज कम्पनशीलता इस बात का प्रमाण थी कि ब्रह्माण्ड विस्फोट के समय की सारी दशायें और तत्व पदार्थों के सूक्ष्मतम परमाणुओं में निश्चित रूप से सन्निहित होने चाहिये। पर कठिनाई यह थी कि समय को छोटे से छोटा कैसे किया जाये। सृष्टि के कण-कण में व्याप्त गतिशीलता को उतना ही सूक्ष्म स्तर पर मापा जा सकता है, जितना सूक्ष्म समय की माप हो, पर वैज्ञानिक समय को अब तक शून्य (जीरो) बिन्दु पर न ला सके। हाँ यह अवश्य हुआ कि समय को छोटे से छोटा करने का प्रयत्न किया गया। अनुमान है कि समय को बिलकुल शून्य अवस्था पर जिस दिन माप लिया जायेगा उन दिन सृष्टि का हर सत्य प्रकाशित हो जायेगा। भारतीय ऋषियों ने जो ज्ञान तत्व को, ध्यान को, समय से ऊपर उठकर विश्व-चेतना के दर्शन का विधान बताया उसकी सत्यता के प्रमाण यहीं आकर मिलते हैं।

आज जो भूकम्प आता है वह वस्तुतः आज की ही किसी दुर्घटना का परिणाम नहीं होता वरन् वह जहाँ से भूकम्प फूटता है वहाँ के अणुओं की दीर्घकालीन हलचल का परिणाम होता है। हजारों वर्षों से सूर्य उस स्थान पर प्रकाश कण उड़ेलता रहा होगा उन प्रकाश कणों की ऊर्जा किन्हीं तेल या तत्व के अणुओं को उत्तेजित करती रही होंगी। उससे इलेक्ट्रानिक न्यूट्रॉन कण या ऐसे ही किन्हीं चार्ज-कणों वाली शक्ति या गैस बनती और एकत्रित करती रही होगी। उसकी इतनी मात्रा एकत्रित हो गई होगी कि उसके दबाव को पृथ्वी और दूसरे तत्व सम्भाल सकने में असमर्थ हो गये होंगे इसलिये वह विस्फोट हुआ और दिखाई दिया।

प्रकृति के कण-कण में ऐसी हलचल चल रही है, पर हम समय के स्थूल भाग से बंधे होने के कारण उन सूक्ष्म परिवर्तनों को समझ सकने की स्थिति में होते नहीं। इसीलिये उन मोटी घटनाओं के होने तक अपने आपको बचाव करने की स्थिति भी बना नहीं पाते और जैसे भी कुछ अच्छे-बुरे परिवर्तन प्रकृति करती रहती है उन्हीं से प्रभावित होते रहते हैं, देखने में लगता है मनुष्य बड़ा बेबस प्राणी है, वह काल के थपेड़े खाने के लिये ही बना है, पर यह सचमुच उसे प्रदत्त शक्तियों के साथ लाँछन हैं। मनुष्य के भीतर वह तत्व बहुत खूबसूरती से विकसित किये गये हैं जिनको यदि जान और समझ लिया जाये तो मनुष्य प्रकृति के सूक्ष्म अन्तराल में होने वाले परिवर्तनों का न केवल ज्ञाता वरन् साझीदार तक होकर प्रकृति में अद्भुत हलचल उत्पन्न कर सकता है।

महर्षि पातंजलि ने योग दर्शन में लिखा है-

“क्षण तत्क्रमयोः मंयमाद दिवकजंज्ञानम्।”

-पातञ्जलि योग दर्शन 3। 52

अर्थात्- “समय के छोटे से छोटे टुकड़े में ध्यान जमाने से विवेक जन्य ज्ञान मिलता है और संसार की यथार्थ स्थिति का पता चलता है।”

जैन आगमों में भी बताया है कि संसार की वस्तुस्थिति समय के परमाणु में स्थित होने पर ही पहचानी जा सकती है।

चउव्विहे परमाणु पण्णते तजंहा, द्रव्य परमाणु खेत्त परमाणु, काल परमाणु-भाव परमाणु।

-भगवती शतक सूत्र 20।5।12

अर्थात् परमाणु में द्रव्य, क्षेत्र और भाव ही नहीं होता काल या समय की इकाई भी सन्निहित होती है, उस इकाई का बोध होने पर ही संसार का यथार्थ ज्ञान होता है।

आगे इसी बात को यों स्पष्ट किया है-

         कारण मेव तदन्त्यं जूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणु।

एक रस गन्ध वर्णो द्विर्स्पशः कार्य लिंगश्च॥

-भगवती शतक 18 उ. 2

अर्थात् पदार्थ के निर्माण का अन्तिम कारण परमाणु है, वह सूक्ष्मतम है भूत में या वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगा। उसमें एक रस, एक ग्रन्थ 1 वर्ण 2 स्पर्श तथा कायलिंग यानी आँखों से दिखाई न देकर केवल समय की सूक्ष्मतम अवस्था में ध्यान जमाने वाले ज्ञानी ही उसे समझ सकते हैं।

अभी तक विज्ञान ध्यानावस्थित होकर अन्तःकरण के सूक्ष्म विकास और विश्व को यथार्थ आध्यात्मिक स्थिति का विश्लेषण तो नहीं कर सका पर जैसे-जैसे समय की इकाई छोटी होती जा रही है विज्ञान भारतीय योगियों के से चमत्कार हासिल करता चला जा रहा है, अभी तक प्रयुक्त समय की सबसे छोटी इकाई सेकेण्ड थी। सेकेंड का अर्थ दिन का 1/86400 वाँ हिस्सा। पर यह माप सही है इसमें वैज्ञानिकों को सन्देह है। दिन-रात की माप सूर्योदय और सूर्यास्त से लेते हैं, पर पृथ्वी की गति अनियमित होने के कारण हर 100 वर्ष पीछे सेकेण्ड में 1/1000 वें हिस्से के बराबर अन्तर आ जाता है। युगों की गणना में यह अन्तर बहुत भारी पड़ेगा और उससे घटनाओं का कभी भी सच-सच नहीं जाना जा सकेगा क्योंकि परमाणुओं का कम्पन तो इतना सूक्ष्म है कि वह एक सेकेण्ड में अरबों बार काँप जाता है। तब से एक सेकेण्ड को हजारवें भाग “मिली सेकेंड” दस लाख वें भाग “माइक्रो सेकेंड” में बाँटा। उससे भी काम चलता न दीखा तो एक सेकेण्ड को एक अरब हिस्सों में बाँटकर नानो सेकेण्ड की कल्पना की गई। “नानो सेकेण्ड” का अर्थ यह हुआ कि यदि हम एक “नानो सेकेण्ड” में एक कदम चल सकें तो पृथ्वी की भूमध्य रेखा क्षेत्र में एक सेकेण्ड में 10 बार परिक्रमा कर सकते हैं अर्थात् सारी पृथ्वी में कहाँ क्या हो रहा है, उन सब बातों को एक सेकेण्ड में दस बार स्पष्ट आँखों से देख सकते हैं यह एक सिद्धान्त है जो केवल ज्ञान से ही सम्भव है।

स्थूल दृष्टि से भी समय की पकड़ हमें उन्हीं आश्चर्यों की ओर ले जा रही है। अब प्रकाश को भी परमाणुओं में विभक्त किया जा रहा है। प्रकाश-अणुओं को “फोटोन्स” कहते हैं” और अनुमान है कि वे सेकेण्ड के एक लाखवें हिस्से के भी करोड़वें अंश में सीमित है। इसी बात को यदि यह कहें कि ध्यान की प्रगाढ़ अवस्था प्रकाश की ही अनुभूति है और संसार केवल प्रकाश की लहरों का खेल है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये। समय की इस सूक्ष्मतम अवधि को “पिको सेकेंड” कहा जाता है। “नीयोडाइमियम गलास लेसर” के भीतर प्रकाश कणों के प्रवेश से इन छोटे टुकड़ों को प्राप्त किया जाता है और उनका उपयोग यहाँ तक हो सकता है कि एक सेकेंड में ही फुलस्केप के फुलस्केप समाचार हजारों मील दूर सेकेंडों में पहुँचाये जा सकते हैं। एक मिनट के अन्दर ही इस विधि से पेरिस के किसी मरीज की हृदय गति का रेखाचित्र खींचकर वाशिंगटन पहुँचाया जा सकता है और उसका इतने ही समय में इलाज समाप्त करके उसे अच्छा कर घर भी भेज दिया जा सकता है। लेसर किरणों के प्रयोग से संसार-पद्धति में कौतूहलवर्धक परिवर्तन होने की सम्भावना है। यहाँ तक हो सकता है कि लोगों के पास कुछ ऐसे यन्त्र हो जायें जो आकार में 1/10 इञ्च से भी छोटे हों पर उतने में ही वे 1.5 करोड़ सूचनायें एकत्र कर रखें और जब चाहें तब बात की बात में किसी को भी पहुँचा दें। यह सब ध्यान से प्राप्त होने वाली सिद्धियों की ही पुष्टि करते हैं।

अमेरिका की “वेस्टर्न इलेक्ट्रानिक कम्पनी” एक ऐसा यन्त्र तैयार कर रही है, जो केवल “बिन्दु के ही आकार के हों और सुई के छेद में ही जिन्हें आसानी से फिट किया जा सकता है। एक ऐसे धातु रहित तत्व नं. 14 के बने सिलिकन डाइड्स का उत्पादन किया जा रहा है, जो आधे “नानो सेकेंड” में ही विद्युत यन्त्र चालू कर सकेंगे अर्थात् जितनी देर में अब विद्युत चालू की जाती है, उतनी देर में तो 1 वर्ष में पूरे होने वाले कामों को हल किया जा सकता है। लोगों की बौद्धिक क्षमतायें बदली जा सकती हैं, शरीर बदले जा सकते हैं, आँख मारते ही रोग अच्छे किये जा सकते हैं। वह सब आश्चर्य दिखाये जा सकते हैं, जिनकी आशा केवल एक भारतीय योगी या सिद्ध महात्मा से ही की जा सकती है।

विज्ञान की यह उपलब्धियाँ अभी तक माध्यम रहित नहीं है तथापि उनसे यह निश्चित हो चुका अवश्य है कि समय के छोटे से छोटे अंश में महाकाल घुसा बैठा है। भारतीय योगियों ने समय से परे की अवस्था तक पहुँच कर ही सत्ताईस चतुर्युगियों के 116640000 वर्ष, सतयुग के 1728000 वर्ष, त्रेता के 296000 वर्ष, द्वापर के 864000 वर्ष और कलयुग के 5030 वर्षों का इतिहास जानकर एक-एक मन्वन्तर के घटनाचक्रों का इतिहास लिख दिया था, जो आज भी ठीक-ठीक उतरते चले जा रहे हैं। लोगों के आचार-विचार, खान-पान, रहन-सहन, राजनीति से लेकर सामाजिक परिस्थितियों तक के सारे भविष्य फल करोड़ों वर्ष पूर्व लिख दिये गये थे, जो आज ऐसे सच दिखाई दे रहे हैं, मानों उन लोगों ने यह सब अपनी आँखों से देखा हो।

सारा संसार महाकाल के गर्भ में चल रही घटनाओं का नाटक मात्र है, हम जब तक घटनाओं से प्रभावित होते है, तब तक समय से परे की उस चिन्मय अवस्था को समझ नहीं पाते, इसीलिये संसार का यथार्थ भी हमारे सामने प्रकट नहीं हो पाता। यदि ध्यान द्वारा समय की स्थिति से ऊपर उठने का प्रयास करें तो विश्वव्यापी ज्ञान चेतना में घुल-मिलकर हर समय के छोटे से छोटे अंश से लेकर महाकाल तक की घटनाओं के ऐसे ही ज्ञाता हो सकते हैं, जैसे कभी हमारे पुरखे हुआ करते थे।

इन सबसे बड़ा लाभ उस अवस्था में आत्म-निर्माण या ब्रह्म प्राप्ति का होगा जिसे जाने बिना जीव अपने साँसारिक बन्धनों से मुक्त नहीं हो पाता।



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