स्वर्ग के द्वार पर आज, सोमवती अमावस्या पर गंगाजी के किनारे होने वाली भीड़ की तरह, प्रवेशार्थियों का ताँता लगा हुआ था। यम समझ नहीं पा रहे थे यह भीड़ कहाँ से उमड़ पड़ी? और यदि इन सबको स्वर्ग-प्रवेश की आज्ञा दे दी गई तो इतने लोगों को स्वर्ग में स्थान कहाँ मिलेगा? उन्होंने द्वारपाल को आज्ञा भेजकर स्वर्ग के द्वार बन्द करा दिये और घोषणा करा दी कि जब तक सम्यक् परीक्षा न ले ली जायेगी तब तक चाहे जिसको स्वर्ग में प्रवेश करने नहीं दिया जायेगा।
निषेधाज्ञा सुनते ही आगन्तुकों में खलबली मच गई। धैर्य छूट गया। धक्का-मुक्की करते हुए सब आगे बढ़ने का प्रयत्न करने लगे। द्वारपाल बेचारा दुविधा में डूब गया किस-किस की सुने, यहाँ तो सभी अपनी-अपनी प्रशंसा करते हुए स्वर्ग प्रवेश का अधिकार जता रहे थे। यम ने खिड़की से झाँककर देखा तो यह दृश्य देखकर उनके मुँह से यही निकला जो मनुष्यता का पहला पाठ-”अनुशासन और व्यवस्था” नहीं सीख सके वे भी यदि स्वर्ग के अधिकारी हो गये तब तो स्वर्ग और नरक में अन्तर ही क्या रह जायेगा।
उन्हें एक उपाय सूझा-चित्रगुप्त को आज्ञा देकर अविलम्ब एक विवरण पत्रक छपाया और उसे सभी प्रवेशार्थियों में बाँट दिया और घोषणा करा दी कि इस परीक्षा पत्रक में अपने जीवन के अच्छे बुरे कार्यों को अंकित करने के लिये रिक्त स्थान है। पहले सब लोग उन्हें भरकर दें, उसी के आधार पर स्वर्ग के योग्य व्यक्तियों का चुनाव किया जायेगा।
परीक्षा-पत्र बात की बात में बँट गये। उन्हें भरते भी देर न लगी। “क्या आपके जीवन में कोई बुराई रही है? क्या आपने कोई खराब काम किया है? यह प्रश्न भी लगभग सभी पर्चों में कोरा ही था। कहाँ लोगों ने जीवन में किये गये अच्छे कार्यों के विवरण से परचे का पेट, पीठ सब रंगकर रख दिया था।
पर्चे लेकर उनकी जाँच के लिये यम एक स्थान पर बैठ गये। चित्रगुप्त उनकी बगल में बैठे ताकि पर्चों में लिखे विवरण की सत्यता प्रमाणित की जा सके। यह एक साधु का पर्चा था’- लिखा था- “मैंने जीवन भर तप किया है तप के अतिरिक्त कुछ नहीं किया इसलिये मुझे स्वर्ग का पहला अधिकार है”? यम ने चित्रगुप्त की ओर देखा-चित्रगुप्त आशय समझ गये बोले-महाराज! साधु ने तप तो किया है पर वे इतने अहंकारी रहे हैं कि भूलकर भी यह नहीं देखा कि समाज में कोई दीन-दुःखी भी है। किसी को मेरी सेवाओं का भी अधिकार है यह बात उनके मन में भूलकर भी नहीं आई।
‘हुँ’ कहकर यम-ने अगले पत्र-उठाये-यह सब उन लोगों के पत्र थे जिन्होंने लिखा था हमने आजीवन ज्ञान की साधना की वेद उपनिषद् से लेकर ब्राह्मण आरण्यक तक एक भी ग्रन्थ नहीं छोड़ा। हम ज्ञानी हैं, ब्राह्मण हैं अतएव स्वर्ग के अधिकार से हमें वंचित नहीं किया जा सकता।
यम ने फिर चित्रगुप्त की ओर देखा, वे बोले-महाराज यह कथन हैं तो सत्य पर इनके ज्ञान में व्यावहारिकता कभी नहीं आई। इनमें से एक ने भी अपने माता, पिता, पत्नी, पुत्र के साथ मीठा व्यवहार नहीं किया। पड़ोसी को कभी प्यार की दृष्टि से नहीं देखा? यह सब तो ईर्ष्या द्वेष की आग में झुलसते लोग हैं।
यम ने वह पर्चे भी एक तरफ रख दिये। अन्त में एक पर्चा एक वृद्ध का आया-लिखा था मुझे भूल से स्वर्ग ले आया गया, मुझे तो नरक जाने की इच्छा है ताकि वहाँ दीन-दुःखी लोगों की सेवा कर सकूँ, अज्ञान में डूबे लोगों को प्रकाश दे सकूँ।
यम ने चित्रगुप्त की ओर देखा भी नहीं उनसे कुछ पूछा भी नहीं-उसमें कुछ लिखा और वहाँ से उठकर चल दिये पीछे द्वारपाल ने परीक्षाफल की घोषणा की तो पता चला यम ने अकेले उस वृद्ध को ही स्वर्ग प्रवेश का अधिकारी घोषित किया है।