अपनो से अपनी बात

December 1970

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अपने मिशन का सबसे बड़ा पर्व वसन्त पंचमी है। अगले वर्ष यह पर्व दि. 31 जनवरी 71 रविवार को पड़ रहा है, परिजन इसका महत्व समझते न हों, इसकी उपलब्धियाँ जानते न हों तो उसे जान लेना चाहिए। यों यह पर्व भगवती सरस्वती का जन्मदिन है। ज्ञान की गंगा इसी दिन धरती पर अवतरित हुई थी और मानव इसे पाकर धन्य हो गया था। तुच्छ से पशु प्राणी को सृष्टि का मुकुटमणि बना देने का श्रेय विद्या, बुद्धि एवं विचारणा को है। यदि उससे वंचित रहा होता तो मनुष्य अन्य जीवधारियों से आगे नहीं अपनी शारीरिक अयोग्यताओं के कारण पीछे रहा होता। पर सौभाग्य का ईश्वरीय उपहार उस पर बरसा और उस अमृत को पीकर वह देवता हो गया। इस अमृत वर्षा के साथ लेकर जो ज्ञान गंगा धरती पर उतरी उसे सरस्वती के नाम से पुकारते हैं। वह दिन अभिवन्द्य वीणापाणि का जन्मदिन है जिसे विद्या प्रेमियों द्वारा हर वर्ष उत्साह के साथ मनाया जाता है। वसन्त पंचमी वही पुण्य पर्व है।

ऋतुराज वसंत का शुभारम्भ वसंत पंचमी से होता है, ऋतुओं का अपना-अपना महत्व है। लता गुल्मों से लेकर वृक्ष वनस्पतियों तक में नव-चेतना, हरिलिमा के साथ नूतन पल्लव, अभिनव पुष्प उमँगते और महकते देखे जा सकते हैं। प्रकृति की शोभा देखते ही बनती है। हरी साड़ी पहने, पीत पुष्पों का शृंगार किये प्रकृति वघूटी खेत-खेत पर जिस उल्लास के साथ थिरकती दीखती है उसे अवलोकन कर बुझे हुए मन भी उल्लास भरी आशा किरणों के साथ चमकने लगते हैं। आशा, उत्साह, उल्लास और उमंग का स्रोत न जाने प्रकृति के किस अंचल से फूट पड़ता है। उसका रसास्वादन कर कोकिल, मयूर-भ्रमर और पतंग अपने नृत्य गान का संगीत अभिनय का-आनन्द दिशाओं में बखेरते देखे जाते हैं। न जाने कहाँ से मनों में आशा और उमंगों की लहरें-लहलहाने के लिये उमंगती चली जाती हैं। जन-जीवन में अनायास की उल्लास भर देने वाला वसन्त पर्व अन्धकार भरे जीवनों में भी विद्युत जैसी किरणें चमका जाता है। इस नव चेतना के उत्सव को मानव जाति न जाने कितने प्राचीन काल से हर्षोल्लास भरी अभिव्यक्तियों के साथ मनाती चली आ रही है। इसे मनाने के लिए किये जाने वाले आयोजन लोगों को निराशा से आशा की ओर अन्धकार से प्रकाश की ओर-मृत्यु से अमृत की ओर अग्रसर करते हैं। भगवती वीणापाणि की, मधुमयी झंकार न जाने कितने अन्तःकरणों में झंकृत होती है और न जाने क्या-क्या देती बताती चली जाती है।

वसन्त पंचमी का सरस्वती साधकों की भाव दृष्टि से बड़ा मूल्य है। सो जगह-जगह इसे अपने-अपने ढंग से मनाया जाता है। अपनी संस्था के लिए वह एक के बाद एक जुड़ी हुई कड़ियों की मंगलमय शृंखला है। उसके साथ एक भाव भरा इतिहास जुड़ा हुआ है। आज से 45 वर्ष पूर्व हमें एक दिव्य प्रकाश का दर्शन हुआ, आत्मबोध इसी दिन मिला, जीवन को दिशा उन्हीं क्षणों में बदली, देवत्व की शरण में उसी दिन समर्पण किया और मानव पुत्र न रहकर शक्ति पुत्र के रूप में अपना काया-कल्प होते पाया। वस्तुतः वही हमारा जन्मदिन है। ईश्वर की वाणी उसी दिन सुनी और 24 महापुरश्चरणों की तपश्चर्या का शुभारम्भ उसी दिन किया। इस प्रकार हमारा वास्तविक जन्मदिन वही है।

जो शरीर आश्विन सदी 13 को जन्मा था। पर उस हाड़ माँस के थैले को पाकर कौन सौभाग्यशाली हुआ है। दूसरी भोग योनियों में तो केवल भुगतना भर पड़ता है जिससे प्रारब्ध का बोझ हलका होता है। मनुष्य बनकर जो जन्म से लेकर मरने तक जिन मनुष्यता को कलंकित करने वाली दुष्प्रवृत्तियों को अपनाये रहते हैं इससे पापों का बोझ बढ़ता ही है। स्वयं दुःख पाते हैं और दूसरों को दुःख देते हैं, ऐसे नर पशु की जिन्दगी कोई जी ले तो उससे किसी का क्या बना-सच तो यह है कि अगले अनेक जन्मों के लिए पाप के दुःखदायी और अधिक लाडले- ऐसे जन्म दिन को मानना न मानना क्या महत्व रखता है। औरों की तरह हमारा शरीर जन्म भी कीट पतंगों की कोटि-कोटि नित्य होने वाली जन्म-मृत्यु में एक संख्या की बढ़ोतरी भर गिना जा सकता था। पर सौभाग्य न जाने कहाँ से आ गया जिसने मनुष्य शरीर से मनुष्य चेतना का प्रकाश भी कर दिया। यह सौभाग्य हमें बसन्त पंचमी के दिन मिला। इसलिये वही हमारा वास्तविक जन्मदिन है। पूछने वालों को बताते भी नहीं है। यों शरीर 60 वर्ष का हो गया पर असल में हम अभी केवल 45 वर्ष के हैं। 15 वर्ष तो ऐसे ही हँसते खेलते न जाने कहाँ से कहाँ किस बहाव में बहते-चले गये। उनकी अब हमें ठीक से याद भी नहीं आती। हम कभी जन्मदिन मनाने की बात सोचते हैं या दूसरे लोग वैसा कुछ करते हैं तो वह व्यवस्था वसन्त पंचमी से ही जुड़ती है।

केवल हमारा आत्मिक जन्म तो वसन्त पंचमी को नहीं हुआ वरन् हर महत्वपूर्ण कार्य हमने इसी दिन से शुरू किये हैं। अखण्ड-ज्योति पत्रिका का आरम्भ वसन्त पंचमी से। युग-निर्माण पत्रिका जन्मी वसन्त पंचमी को। गायत्री तपोभूमि का निर्माण कार्य आरम्भ किया वसन्त पंचमी से। गत् 5000 वर्षों में अनुपम कहे जाने वाले सहस्र कुण्डी गायत्री महायज्ञ का संकल्प लिया वसन्त पंचमी को और उसी दिन एक वर्ष बाद उसका अग्नि समापन हुआ। आर्ष ग्रन्थों का हर अनुवाद हमने वसन्त पंचमी से आरम्भ किया। वेदों से लेकर उपनिषदों, दर्शन, स्मृतियों, पुराणों, गीताओं तन्त्र तथा योग विशिष्ट जैसे अब तक के प्रकाशित हमारे सभी ग्रन्थ वसन्त पंचमी के दिन से आरम्भ होते रहे हैं। ट्रैक्ट माला के अंतर्गत जिन सैकड़ों जीवन निर्माण पुस्तिकाओं का सृजन पिछले वर्षों में सम्भव हो सका उनका प्रथम श्रीगणेश उसी दिन किया गया था। गायत्री महाविज्ञान का आरम्भ भी इसी शुभ पर्व में किया था हमारी साहित्यिक कृतियों का जन्मदिन किसी को तलाश करना या मनाना हो तो उसे उन सारी प्रवृत्तियों की गंगोत्री वसन्त पंचमी ही मिलेगी।

युग-निर्माण आन्दोलन और उसके पीछे शक्ति का अजस्र स्रोत ज्ञान-यज्ञ जो आज प्रकाश छूने का दुस्साहस कर रहा है वसन्त पंचमी के दिन से ही आरम्भ हुआ था। एक वर्ष के अज्ञातवास में जब हम सन् 60 में हिमालय थे तब हमारे गुरुदेव का सर्वोपरि अनुदान हमें उसी दिन मिला था। परोक्ष दर्शन तो 45 वर्ष पूर्व कर चुके थे पर प्रत्यक्ष और समीपस्थ दर्शन देने के लिए-अपनी बहुमूल्य संपदाएं सौंपने के लिये वही दिन निर्धारित किया था सो अपने जीवन के सर्वोत्तम सौभाग्य दिनों में से वह भी एक दिन हमें जन्म-जन्मान्तरों तक स्मरण रहेगा।

इन दिनों हमारी जो छोटी-बड़ी प्रवृत्तियाँ चलती हैं उनका शुभारम्भ हम सदा वसन्त पंचमी से करते रहे हैं। युग-निर्माण विद्यालय, युग-निर्माण प्रेस, गुजराती अनुवाद, अंग्रेजी अनुवाद, उड़िया अनुवाद, मराठी अनुवाद आदि अन्य भाषाओं से अपना प्रचार क्षेत्र बढ़ाने के लिए जो कदम पिछले दिनों बढ़ाये गये हैं उन समस्त निर्माणों में वसन्त पंचमी हमें बहुत सुहाई। इसलिये मुहूर्त का जब भी प्रश्न आया हमने इसी पर्व को महत्व दिया। अब कला भारती का आरम्भ जनवरी से होने जा रहा है उसका विधिवत उद्घाटन समारोह वसन्त पंचमी को ही करेंगे।

माता भगवती देवी के भावी निवास और तप साधना के लिये हरिद्वार और ऋषिकेश के बीच सप्तधारा गंगा संगम पर-सप्त ऋषि आश्रम के समीप जो उपवन आश्रम बनाया गया है उसका आरम्भ भी वसन्त पंचमी के दिन कराया गया है। यों हम जून में हिमालय चले जायेंगे फिर भी तपश्चर्या का आरम्भ वसन्त पंचमी से ही करेंगे। कौन जानता है हमारे जीवन का अन्त कब हो-पर यदि वसन्त पञ्चमी को हो तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि वह हमें स्वभावतः बहुत प्रिय जन्म है। न जाने किस-किस जन्म में हम उस दिन क्या-क्या करते रहे हैं। और न जाने उनमें से किस-किस संस्कार का हमारे ऊपर क्या प्रभाव है जिससे हमें वसन्त पञ्चमी बहुत प्रिय लगती है और वह जब आती है तो न जाने किस-किस लोक से क्या-क्या लेकर आती है और उस दिन न जाने कितना क्या दे जाती है जो साल भर तक चुकाये नहीं चुकता। खरचते नहीं खरचा जाता।

कई व्यक्ति तो हमारे अधिक निकट संपर्क में आये हैं वे भी प्रायः इसी ढाँचे में ढले हैं और हमारी ही तरह उनने भी अपना जन्मदिन वसन्त पञ्चमी घोषित कर दिया है। यह व्यक्तिगत बात हुई। मिशन का जन्म तो निश्चित रूप से वही है। यदि गायत्री परिवार-युग-निर्माण आन्दोलन का जन्मदिन मनाना अभीष्ट हो तो उसके लिए वसन्त पञ्चमी ही एकमात्र पर्व रहेगा। इस प्रकार अब यह शुभ दिन भगवती सरस्वती का- वसन्त उल्लास का जन्मदिन न रहकर धरती पर स्वर्ग के अवतरण और मनुष्य में देवत्व के उदय का संकल्प लेकर अवतरित हुए ज्ञान-यज्ञ एवं युग-निर्माण आन्दोलन का भी जन्म दिन रहेगा। और स्वभावतः इस मिशन से किसी प्रकार का सम्बन्ध रखने वाले हर व्यक्ति के मन में उसे मनाने की उत्कण्ठा उत्पन्न होगी। ऐसा होना भी चाहिए उसमें औचित्य भी है, तथ्य भी और भविष्य के लिए आशा भरा प्रकाश भी। जिन्हें हमसे कुछ व्यक्तिगत लगाव हो उनके लिए भी अपनी ममता और सद्भावना व्यक्त करने का इससे अच्छा दिन और कोई हो नहीं सकता।

पिछले दिनों वसन्त पंचमी पर्व हम लोग किसी न किसी रूप में मनाते रहे हैं। गायत्री तपोभूमि में कुछ न कुछ रूप उसका सदा ही बनता रहा है। जिन्हें कुछ विशेष लगाव या परिचय था वे उसे अपने-अपने यहाँ अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग रीति से व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से मनाते भी रहे हैं। पर अब इस पर्व को मिशन के साथ जोड़कर उसे विशेष उत्साह के साथ हर शाखा संगठन में सामूहिक रूप से-जहाँ संगठन नहीं है वहाँ व्यक्तिगत रूप से मनाने की परम्परा आरम्भ करने की बात परिजनों में सोची जा रही है, इसमें हमें कुछ भी अनुचित दिखाई नहीं पड़ता।

इस प्रकार का उत्सव आयोजन तभी सार्थक होगा जब उसके पीछे मिशन और उनके आदर्शों एवं कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने की प्रेरणा जुड़ी हुई हों। अन्यथा सैकड़ों त्यौहारों में एक और त्यौहार का स्वरूप बढ़ा देने से कुछ विशेष प्रयोजन सफल न हो सकेगा। सामान्यतया उत्सव आयोजनों में जुलूस, प्रभात फेरी, अभिनय, हवन, प्रवचन, प्रसाद, दीपदान, ध्वजा-पताका, श्रद्धांजलि आदि की व्यवस्थाएँ बना ली जाती हैं। लोग इकट्ठे होते हैं और एक आनन्द, उत्साह का वातावरण बनाकर अपने घरों को वापिस चले जाते हैं। इतनी भर लकीर हम लोग भी पीटने लगें तो बड़ी बात न होगी।

इस वर्ष हमारे सामने मनाई जाने वाली यह अन्तिम वसन्त पञ्चमी है। इसलिए गायत्री तपोभूमि के कार्यकर्त्ता भी उसे अधिक समारोह पूर्वक मनाने की तैयारी कर रहे हैं और शाखाओं से जो समाचार आ रहे हैं एवं व्यक्तिगत पत्रों में भी जो सूचनाएं मिल रही हैं उनसे यही जानकारी प्राप्त हो रही है कि इस वर्ष हर जगह सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से वसन्तोत्सव मनाये जाएंगे और उन आयोजनों को मिशन के प्रति अधिक आस्था व्यक्त करने के कार्यक्रमों से जोड़कर रखा जायगा।

जन उत्साह को रोका भी क्यों जाय? फिर जब उसके साथ परम्परागत भावनात्मक और सृजनात्मक अभिव्यक्तियाँ जुड़ी हुई हों तब तो उन्हें निरुत्साहित करने की कोई बात भी नहीं है। उसे प्रोत्साहन और समर्थन ही मिलना चाहिए हमें तो इतना भर कहना है कि यदि उसे मनाना ही हो तो ऐसे मनाना चाहिए जिससे आन्दोलन को विस्तृत और मजबूत बनाने में अधिक सहायता मिल सके।

इस प्रकार के कार्यों में अखण्ड-ज्योति और युग-निर्माण पत्रिकाओं के नये ग्राहक बढ़ाने पुराने ग्राहकों से चन्दे एकत्रित करने के कार्य को सर्वोपरि प्राथमिकता मिलनी चाहिए। दिसम्बर के अंक के साथ प्रायः सभी का चन्दा समाप्त हो जाता है। जिनका वर्ष बीच में समाप्त होता है उन नये ग्राहकों से भी आग्रह किया जाता है कि शेष महीने के पैसे चुकाकर जनवरी से दिसम्बर तक का हिसाब सीधा कर लें। इसी में कार्यालय को तथा पाठकों को उभय पक्षीय सुविधा रहती है। वैसे भी 80 प्रतिशत का चन्दा दिसम्बर में ही समाप्त होता है। यह समय पुराने ग्राहकों से चन्दा वसूल करने के लिए उपयुक्त है और यही नये सदस्य बढ़ाने के लिए। टोलियाँ बनाकर इन दिनों यही जनसंपर्क कार्य हाथ में लिया जाय। जो लोग पत्रिकाओं से परिचित और प्रभावित हैं उन्हें अपने तक ही सीमित न रहकर-इस प्रकाश को आगे बढ़ाने में सहयोग देने के लिए आग्रह करना चाहिए, टोली में उन्हें भी साथ ले लिया जाय तो उनके परिचय क्षेत्र में नये सदस्य बढ़ने की सम्भावना बढ़ सकती है। इस प्रकार यदि थोड़े उत्साह से काम लिया जाय और वसन्त पञ्चमी को बढ़-चढ़कर नये सदस्य बढ़ाने की श्रद्धाँजलि का लक्ष रखा जाय तो निश्चय ही बहुत बड़ा काम हो सकता है और उसके दूरगामी परिणाम प्रस्तुत हो सकते हैं।

मिशन का परिचय क्षेत्र और प्रभावशाली क्षेत्र जितना बढ़ेगा उतनी ही आन्दोलन की सम्भावना सुदृढ़ होती जायेगी। यह कार्य पत्रिकाएं ही कर सकती हैं। अब तक मिशन को जितना विस्तार मिला है उसका अधिकाँश श्रेय पत्रिकाओं को ही है। हर महीने सुई चुभोने की-हवा भरने की प्रक्रिया इन्हीं के माध्यम से सम्पन्न होती है और पुराने कार्यकर्त्ताओं में दृढ़ता तथा नये लोगों में उत्साह का सञ्चार उन्हीं के द्वारा होता है। हमें आन्दोलन का क्षेत्र बढ़ाना हो तो पत्रिकाओं के विस्तार पर अधिकाधिक ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। वसन्त पंचमी पर्व के साथ यदि सदस्य संख्या बढ़ाने की प्रतिज्ञा और प्रक्रिया को जोड़ लिया जाय तो इससे बढ़कर भाव भरी श्रद्धाँजलि प्रस्तुत करने का और कोई तरीका नहीं हो सकता। इस प्रयोजन के लिए रसीद बहियाँ छपा ली गई है जिन्हें आवश्यकता हो मँगा लें। चन्दा भेजने के लिए बैंक ड्राफ्ट भेजने का तरीका सस्ता और जल्दी का है। मनीआर्डर तो कई बार पहुँचने में महीनों लगा देते हैं।

ज्ञान घटों की स्थापना, शाखाओं की व्यवस्था, कार्यवाहकों की नियुक्ति के माध्यमों से संगठन की सुदृढ़ता का कार्य जहाँ अभी न हो सका हो वहाँ पूरा कर लिया जाय जहाँ हो चुका है वहाँ उसकी और अधिक अभिवृद्धि हो जाय। दस पैसे जमा करने वाले ज्ञान घट अब सदस्यता की अनिवार्य शर्त बना दिये गये हैं सो अब पाठकों को कर्मठ सदस्य के रूप में अपने को परिणत करना चाहिए। जो सदस्य बन चुके हैं उन्हें दूसरों को बनाना चाहिए। ज्ञान घटों की संख्या वृद्धि को भी वसन्त पञ्चमी पर्व के श्रद्धाँजलि अभियान में सम्मिलित रखा जाय तो इससे संगठन की नींव मजबूत होने में भारी सहायता मिलेगी।

पाठशालाओं की स्थापना आदि कितने ही अन्य कार्यक्रम हैं जिनका शुभारम्भ इसी अवसर पर किया जा सकता है रचनात्मक और संघर्षात्मक कार्यक्रमों की शत-सूत्री योजना को कार्यान्वित करने का विशाल क्षेत्र पड़ा हुआ है। अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर के युग-निर्माण योजना अंक अपनी योजना के वर्तमान तथा भावी कार्यक्रम पर गहराई से प्रकाश डालने और भावी रूपरेखा के साथ प्रस्तुत किये गये हैं। इन तीनों अंकों का सेट पढ़ने, मँगाने या भेंट करने के लिए कुछ न कुछ प्रयत्न हर जगह किये जायं तो उससे एक नया प्रकाश प्रस्फुटित होगा।

इस वर्ष की-ता. 31 जनवरी 71 को मनाई जाने वाली वसन्त पंचमी हमारे प्रत्यक्ष जीवन में मनाया जाना वाला अन्तिम पर्व है। इन हमारे प्राणप्रिय ज्ञान-यज्ञ आन्दोलन को-युग-निर्माण अभियान को-प्रखर बनाने की तैयारी के साथ मनाया जा सके तो हमें भी सन्तोष भरी प्रसन्नता का आनन्द मिलेगा।


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