एक बार एक स्त्री सन्तान न होने से खिन्न होकर संत चिदम्बर दीक्षित के पास गई। सन्त ने उसे दो मुट्ठी भुने चने दिये, और कहा, बैठ जा, जब बुलाऊँ, तब आना।’ वह स्त्री बैठकर चने खाने लगी। उसी समय खेलते-खेलते पाँच-सात बच्चे आये, कुछ उसके मुख की ओर देख रहे थे, कुछ ने हाथ पसारा, उसने किसी को एक दाना भी नहीं दिया। सन्त ने उसे पास बुलाकर कहा-माँ! जब मुफ्त के चनों में से भी चार दाने तुम किसी को न दे सकीं, तब भगवान् हाड़-माँस के बच्चे तुम्हें कैसे देंगे? जाओ सबसे प्रेम करना सीखो, भगवान् प्रेम से ही प्रसन्न होते, और प्रेमी को ही सब कुछ देते हैं।