प्रकृति जब महाकाली बन गई।

December 1970

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मार्च का महीना प्रारम्भ हुआ ही था कि एकाएक मौसम में विलक्षण परिवर्तन दिखाई देने लगे। आमतौर पर यह महीना शीत के उतार का होता है किन्तु एकाएक शीत बढ़ी, आँधियाँ चलने लगीं, बर्फीले तूफानों की गरज से अमरीका के न्यूयार्क व दक्षिणी ओटेरियों के क्षेत्रों में प्रलय की सी स्थिति उत्पन्न हो चली। बात सन् 1848 की है आज से कोई 112 वर्ष पूर्व की। लोगों के दिल किसी अज्ञात अनिष्ट की कल्पना से काँप उठे।

मनुष्य बड़ा शक्तिशाली है पर मनुष्य बड़ा निर्बल और कमजोर भी है क्योंकि वह ज्ञान-विज्ञान का इतना क्षेत्र विकसित कर लेने पर भी प्रकृति को जीत नहीं सका प्रकृति का संदेश मनुष्य को व्यवस्थित और अनुशासित जीवन जीते हुए आत्म-कल्याण करने का है, वह प्राणि-मात्र को पुत्र की भाँति पालती है। अपनी छाती पर हल चलाना, अन्न देने की, खाद और पानी के बदले मधुर फल देने की, जलती जगती को अरबों नदियाँ सरोवर और समुद्र भर देने की ममता उसी ने दिखलाई। प्रकृति की गोद में ही मनुष्य सुखी-जीवन यापन करता है इस दृष्टि से वह पूज्य और संरक्षणीय है पर आज के मनुष्य ने प्रकृति की इस देवोपम महत्ता को ठुकरा दिया, उल्टा उसे जीतने का समर रच डाला तो प्रकृति को भी अपनी सामर्थ्य और सर्व शक्ति सत्ता का परिचय देना ही पड़ा। शीत लहर, भीषण गर्मी अति जल वृष्टि सूखा जैसे प्रकोप मानवीय दुष विवादों के ही परिणाम होते हैं। पर इस काँड ने तो सचमुच खंड प्रलय जैसा ही दृश्य उपस्थित कर दिया। नियाग्रा जैसा जल प्रपात जो 181 1। 2 फीट ऊँचा और 3630 फीट चौड़ा है और संसार के सात आश्चर्यों में गिना जाता है जो मनुष्य की अद्वितीय सामर्थ्य का परिचायक माना जाता है, उसके प्रवाह को भी रोककर प्रकृति ने मनुष्य को एक सबक दिया है कि हे! मनुष्य तू सृष्टि का नियामक नहीं तुझसे अनन्त गुनी शक्ति वाली सत्ताएं इस सृष्टि में विद्यमान हैं। वही संसार का नियमन करती हैं उनकी इच्छा से ही तू आगे बढ़ सकता है। देवशक्तियों का तिरस्कार करके तो तेरे सुविधाजनक जीवन की भी कल्पना नहीं हो सकती है।

प्रकृति इस तरह के पाठ न पढ़ाती तो मनुष्य उद्दंड हो गया होता उसने ईश्वरीय अस्तित्व को बिल्कुल ही ठुकरा दिया होता इसीलिये जब-जब मनुष्य दुर्बुद्धि ग्रस्त होता है। प्रकृति मनुष्य को ऐसे दंड निश्चित रूप से देती है। उन दिनों अमरीका का यह भाग पाप और दुर्गुणों का जमघट बन गया था। अभी मौसम का प्रकोप प्रारम्भ ही हुआ था कि वहाँ के धर्माचार्यों और भविष्य वक्ताओं ने घोषणा कर दी कि प्रलय आने वाली है, लोगों के पाप बहुत बढ़ गये हैं इसलिये भगवान पुरानी सृष्टि नष्ट करके नई सृष्टि उत्पन्न करेंगे। नये मनुष्य भले ही न गढ़े हों पर इस प्रकोप ने सचमुच ही सैकड़ों हजारों लोगों को नष्ट कर दिया, जो कभी मंदिरों में नहीं गये थे, जिन्होंने फिल्मी गीत गाये थे पर भक्तिगान जिनके ओठों को छू नहीं गया था। उन्हें भी मंदिरों में जाते और भगवान् की प्रार्थना करते देखा गया। पहली बार परस्पर सेवा, प्रेम भावना और मनुष्य का मनुष्य के प्रति इस तरह आदर करते देखकर वहाँ का हर विचारशील व्यक्ति यही कहता था कि मनुष्य सदा ही इस तरह प्रेम भाव और भाई चारे का जीवन जिए तो क्यों प्रकृति को दंड देने की स्थिति में आना पड़े। अब यह घटना समाप्त हो जाने के भी बहुत समय बाद तक लोग पाप करने की हिम्मत नहीं करते थे। सचमुच कुछ समय के लिये उस क्षेत्र में स्वर्गीय स्थिति का आभास होने लगा था।

मार्च का पूरा महीना इसी तरह अंधड़ और बर्फीली तूफानी वर्षा शीत शहर के साथ बीता। 30 मार्च को तो यह झंझावात अपनी पराकाष्ठा पर थे। चारों और त्राहि-त्राहि मच गई पहाड़ियों पर पहाड़ियां बर्फ से ढक गईं। मकानों पर बर्फ की चादरें बिछ गईं। यही अनुमान हो रहा था कि यदि यह स्थिति एक दो दिन और रही तो सारे अमरीका और कनाडा का अन्त ही हो जायेगा। लोग घरों में व्यक्तिगत व सामूहिक रूप से गिरजा घरों में पूजायें किये जा रहे थे। धर्माचार्यों का धर्म शिक्षण तेज हो गया। कथा कीर्तनों का दौर दिन भर चलता रहा।

उस रात एकाएक मौसम बदल गया। हवा शान्त हो गई, बादल बिलकुल साफ हो गये, बर्फीला तूफान रुक गया शीत में कमी आ गई। इस आकस्मिक परिवर्तन ने लोगों को और भी विस्मित कर दिया। सभी यह कहने लगे कि यह प्रलय की पूर्वावस्था है जिस प्रकार बुझने से पूर्व दीपक एक बार तेज लौ करता है उसी प्रकार उसे लोगों ने प्रलय की पूर्णावस्था ही माना है।

तभी लोगों को कोई कमी सी महसूस हुई- सवेरा होता आ रहा है किन्तु कल-कल हर-हर वाली नियाग्रा जल प्रपात की ध्वनि सुनाई नहीं दे रही है। पहले वह लोगों को थपकी देकर सुलाने का काम करती थी पर आज जब सब लोग जाग रहे हैं तो उसका जलरव सुनाई नहीं पड़ रहा। अभी वर्षा हो चुकी है उसे तो और भी भीषण हाहाकार करते रहना चाहिए था यह क्या कि नीरव निस्तब्धता छा गई है। लोग प्रपात की ओर दौड़े। जाकर देखा कि सवा सौ फुट गहराई वाले प्रपात में पत्थर ही पत्थर बिछे हैं। जल का एक कण भी वहाँ नहीं। उंगली जिसके मुँह में थी मुँह में रह गई जिसके सिर में थी बाल खुजलाती रह गई लोगों में सोचने की शक्ति थी वह नष्ट सी हो गई। अवाक् एक दूसरे का मुँह ताकते नियाग्रा के किनारे करोड़ों लोगों की भीड़ खड़ी थी तो भी इतनी नीरवता छाई थी कि पत्थर में एक सुई गिर जाती उसका भी स्वर सुनाई दे जाता है। नियाग्रा जिसमें एक सेकेंड में 1000 टन जल बहता है। उसका एकाएक रुक जाना ऐतिहासिक घटना थी लोग विस्मित थे कि ऊपर की साँस न तो नीचे आ रही थी न नीचे की साँस ऊपर, लगता था, आसमान से कोई तारा टूटकर भूमण्डल पर गिरने और उसे नष्ट-भ्रष्ट करने वाला हो।

पादरी ने कहा लोगों! प्रार्थना करो अब हम सब की रक्षा भगवान ही कर सकते हैं। जो जहाँ था वहीं बैठकर प्रार्थना करने लगा। अभूतपूर्व दृश्य था वह भी- जिसने एक बार सारे अमरीका और कनाडा को आभानुभूति और ईश्वर के अस्तित्व द्वार पर लाकर खड़ा कर दिया।

प्रार्थना दोपहर तक चलती रही। आखिर भगवान ने उन सब की सुनी। सूर्य जितना ऊपर चढ़ आया धीरे-धीरे वैसे ही जलरव धीमें-धीमें सुनाई देना प्रारम्भ हुआ। जलधारा भयंकर अवस्था में करुणा का दृश्य उपस्थित करती चली आ रही थी। लोगों के उस दृश्य का, उस जल राशि का स्वागत किया। काँपते अन्तःकरणों में फिर से नई आशा का संचार हुआ।

कुछ लोग कहते हैं कि पहाड़ पर तापमान बिलकुल गिर जाने से सारा जल बर्फ हो गया होगा इसलिए नियाग्रा का बहना बन्द हो गया होगा जहाँ तक बर्फ जमी होगी वहाँ के आगे का पानी बहकर निकल गया होगा इसलिये बीच का स्थान सूना पड़ गया होगा। पर दूसरे विशेषज्ञ कहते हैं। पहाड़ में अभ्रक और सल्फर आदि की ऐसी खाने हैं जिसकी उपस्थित में जल कभी जम ही नहीं सकता। चाहे कितनी शीत हो प्रपात को बहते ही रहना चाहिये था। यदि मैदानी भाग में पानी जम जाता तो आस-पास के क्षेत्र में बाढ़ आ जानी चाहिये थी पर ऐसा भी नहीं हुआ। सचमुच वह कौन सी शक्ति थी जिसने नियाग्रा जैसे जल प्रपात को रोक दिया यह अभी तक रहस्य ही बना हुआ है। यदि यह सब प्रकृति का ही खेल था तो भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि यह उसका महा रौद्र रूप था। मनुष्य को सीधी राह लाने के लिये कभी-कभी उसे यह वीभत्स रूप भी धारण करना पड़ता है। प्रलय उसी का नाम है। वह आगे भी हो सकती है। हमारी बुद्धिमत्ता तो इसमें है कि हम प्रकृति माता को नष्ट न करें वरन् उनको प्रतिष्ठा दें ताकि उनकी कृपा और प्यार भरा आशीर्वाद हम पर हमेशा बरसता रहे।


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