एक बार विद्यासागर को रास्ते में एक भिखारी बालक मिल गया। वह उनके सामने हाथ फैलाकर एक पैसा माँगने लगा। विद्या सागर ने पूछा “यदि मैं तुम्हें एक पैसे के स्थान पर एक रुपया दे दूँ तो तुम उस का क्या करोगे।” वह बालक रुपये की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ उसने कहा ‘बाबूजी! मैं भीख माँगना ही छोड़ दूँगा।
विद्यासागर उसके हाथ पर एक रुपया रखकर आगे बढ़ गये। कुछ वर्षों बाद विद्यासागर फिर उसी बाजार से जा रहे थे। सामने से एक युवक धोती कुर्ता पहने आया और झुककर उन्हें प्रणाम किया। विद्यासागर भी रुक गये तो उसने निवेदन किया ‘बाबूजी! कृपया मेरी दुकान पर चलकर उसे पवित्र कीजिये।’
विद्यासागर उस युवक की बात न टाल सके। थोड़ी ही देर में फल की बड़ी दुकान के सामने उन्होंने अपने को खड़ा पाया। युवक ने कहा ‘यह दुकान आपकी ही है। शायद आपको याद होगा कि एक बार भिखारी को एक पैसे के बदले में आपने एक रुपया दिया था और यह मंत्र सिखाया था कि मनुष्य को अपनी आजीविका आप कमानी चाहिये उसी रुपये से मैंने फलों का व्यवसाय शुरू कर दिया और आज इतनी बड़ी दुकान है।’
विद्यासागर बहुत प्रसन्न हुये। और अधिक उन्नति करने का आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा-बेटा जो लोग तुम्हारी तरह शिक्षा ग्रहण करते हैं उनके लिये यह सफलता कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है।