“माँ, मैं सौदा करके आ गया।”
“कौन सा सौदा इतनी जल्दी कर आये बेटा? सामान तो तुम्हारे पास कुछ दिखाई नहीं देता।”
“सामान वाला सौदा इस संसार के लोग करते हैं। उस संसार के सौदे के लिये सामान की आवश्यकता नहीं पड़ती और वही सौदा मैं करके आया हूँ।”
“कैसे?”
सारे रुपयों का अनाज गरीबों को बाट आया। माँ, वे बहुत भूखे थे। उनकी भूख मुझसे देखी नहीं गई।”
“खैर, अब कैसे भी अपने घर का काम चल ही जायगा। इतनी चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है।”
माँ बेटे के सौदे पर गदगद हो गई। दूसरे के दुःखों को अपना मानने वाला वह बालक- नानक था। आगे चलकर वही गुरु नानक सिख धर्म के प्रवर्तक बने।