जीर्ण शीर्ण मान्यताओं में परिवर्तन और नये आदर्शों की स्थापना के लिए जिनमें साहस नहीं होता वह जातियाँ कभी समर्थ नहीं बन पातीं। प्रगति के लिए परंपराएं नहीं परिवर्तन की जिन्दादिली चाहिए।
-विवेकानन्द