आज का हमारा सारा वाँग्मय हमारे लिए निकम्मा है- वह बड़े छोटे स्तर पर है। हमें नया वांग्मय बनाना होगा। धर्म की नए सिरे से स्थापना करनी होगी और ऊँचे स्तर पर जाना होगा। अब वह पुराना धर्म--मूर्ति, कपूर, आरती आदि हमारा कार्य साधन नहीं कर सकेगा। अब तो सारा मानव-समाज ही भगवान की मूर्ति है। उसकी आरती करनी होगी--उसे दोनों समय भोजन मिलता है या नहीं, यह देखना होगा। आज के विज्ञान-जगत् में इसके अतिरिक्त हमारा और कोई निस्तार नहीं है।
-विनोबा भावे
ढूंढ़ने जब आप निकलते हैं तो आप पराधीन हैं, जहाँ आपको परावलम्बन का जीवन बिताना पड़ता है और दूसरों की खुशी, नाराजी पर सुखी-दुखी होना पड़ता है।
आप यह न सोचें कि संसार आपको क्या समझेगा। यदि आप अपने अन्तर में विराजमान होकर अपना शासन भली प्रकार चलाते हैं तो आप संसार के राजा महाराजाओं से भी अपार वैभवशाली हैं, उच्च है, महान् हैं। इसी सत्य को अंगीकार करने वाले स्वामी रामतीर्थ अपने आपको “राम बादशाह कहा करते थे” जब कि संसार वाले भले ही उन्हें कोई फकीर, साधु, संन्यासी के रूप में जानें। क्या आप भी अपने बादशाह नहीं बन सकते? ऐसे बादशाह जिसके समक्ष संसार के समस्त वैभव, यश, ऐश्वर्य, कीर्ति की कान्ति भी फीकी पड़ जाती है।
महापुरुषों और जन-साधारण में यही एक फर्क है कि वे अपने अन्तर में स्थित होकर संसार को गति देते हैं जब कि हम संसार में स्थित होकर आगे बढ़ना चाहते हैं। संसार के वस्तु पदार्थों में अपना लक्ष्य, अपनी सफलता, अपना ऐश्वर्य, सुख, शान्ति ढूँढ़ते हैं और अन्ततः इसके लिए हमें निराश ही होना पड़ता है। संसार की लहरों में निराश्रित होकर बहना पड़ता है। उसकी बनने, मिटने वाली, परिवर्तनशील, टूटने-फूटने वाली लहरों में थपेड़े खाकर अशान्त एवं परेशान होना पड़ता है। लेकिन जो अपने अन्तर के दुर्भेद्य, अजर-अमर जहाज का कप्तान बन कर बैठा हुआ है, वह संसार की लहरों को भी रौंदता हुआ तीव्र गति से आगे बढ़ जाता है। ऐसा है मनुष्य का आधार बिन्दु जो उसके अपने ही अन्तर में है कहीं बाहर नहीं।
आपका कल्याण, आपका अभ्युत्थान, आपकी स्थायी सफलता, जीवन यात्रा की पूर्णता, आपकी स्थायी सुख शान्ति आनन्द की निधियाँ इसी पर आधारित हैं कि आप अपने हृदय में स्थित उस केन्द्र बिन्दु की खोज करें, जिसमें अपार शक्ति है, अनन्त सामर्थ्य है। इसी सत्य को जीवन का प्रेरक बना कर अपनी विजय का आधार बनायें। किनारे-किनारे भटकने के बजाय अन्तर के गर्भ में ही गोता लगावें, पत्ती-पत्ती ढूँढ़ने के बजाय जीवन- वृक्ष के मूल में ही विश्राम प्राप्त करें। अपने अन्तर को केन्द्र बना कर जीवन की गति-विधियाँ चालू रखें जैसे सूर्य को केन्द्र मान कर ग्रह नक्षत्र चलते हैं। अपने शासक आप बनें। दूसरे व्यक्तियों की सहायता की आशा में न बैठे रहें, अपने अन्तर के देव का आवाहन करें। “दूसरों से प्रेम करें लेकिन उनके प्रेम के मुहताज न बनें। दूसरों से सहानुभूति रखें उन्हें सहयोग करें लेकिन दूसरों की सहानुभूति सहायता की इच्छा न रखें।” अपने बादशाह बन कर, स्वामी बनकर जीवन का संचालन करें। जन्म से लेकर मरण तक अपना पथ स्वयं तैयार करें। अपने ही पैरों पर चलें।
यह निश्चित है जब तक आप अपनी सहायता, पथ-प्रदर्शन के लिए देवताओं, स्वर्गीय दूतों, मनुष्यों की सहायता की याचना करते रहेंगे, तब तक आप पराधीनता, दुख अशान्ति, पराजय से छुटकारा नहीं पा सकते। इन से छुटकारा पाने का एक ही आधार है कि अपने अन्तर प्रकाश से स्वयं अपना पथ प्रकाशित करें।