धर्मपत्नी के प्रति पति के कर्तव्य

October 1964

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हमारे यहाँ नारी और पुरुष के कार्यों की एक सीमा रेखा-सी मान ली गई है। घर का काम, रसोई बनाना, बच्चों की देखभाल, सफाई आदि के कार्य स्त्री के माने गये हैं तो घर से बाहर कमाई करना, खेती-नौकरी या कोई पेशा आदि करना पुरुष का काम रहा और यह विभाजन इतना दृढ़ हो गया कि नारी सुलभ कार्यों को करने में पुरुष शर्म-संकोच का अनुभव करता है तो घर की सीमा से बाहर के कार्यों में नारी का प्रयत्न निन्दनीय समझा जाता है। यद्यपि आज के युग में ये सीमायें टूटती जा रही हैं तथापि पूर्व संस्कारों के कारण कम से कम हमारे देश में तो अभी उक्त धारणायें व्यापक रूप में फैली हुई हैं। आज भी नारी और पुरुष के कार्यक्षेत्र की यह विभाजन रेखा टूटी नहीं है।

भले ही इसका कारण कुछ भी रहा हो लेकिन आज की परिस्थितियों में विकास की माँग के अनुसार इस विभाजन को लक्ष्मण-रेखा नहीं माना जा सकता। आज हमें इसकी अनुपयुक्तता पर विचार करना होगा। साथ ही इसको मिटाना होगा।

वस्तुतः पति और पत्नी दो इकाई मिलकर एक सम्मिलित व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं और जीवन यात्रा का उत्तरदायित्व इस सामूहिक व्यक्तित्व पर ही निर्भर करता है। दोनों का एक दूसरे के काम में सहयोग आवश्यक है अनिवार्य है। पति पत्नी के कार्यों का विभाजन उनकी सीमा रेखायें कभी निश्चित नहीं की जा सकतीं। दाम्पत्य जीवन का सार इसी में है कि दोनों आवश्यकता पड़ने पर वफादार साथी की तरह एक दूसरे के कामों में मदद करें, योग दें, चाहे वह काम घर के अन्दर का हो या बाहर का।

बहुधा भोजन बनाना पत्नी का काम समझा जाता है और यह ठीक भी है कि यदि पति बाहर काम पर गया है और पत्नी को अन्य कोई काम नहीं है वह घर पर रह कर भोजन बनाये। लेकिन आवश्यकता पड़ने पर पति को भी इस काम को उसी उत्साह से करना चाहिए जैसे पत्नी करती है। लेकिन बहुत से लोग इसे अपना अपमान समझते हैं। पत्नी के सामने चूल्हा फूँक ने में शर्म महसूस करते हैं। कैसी विडम्बना है। जो स्त्री जीवन भर चूल्हा फूँकती है, पति को भोजन बनाकर हमेशा देती है, यदि बीमारी-हारी में या किसी परेशानी के समय वह इसमें असमर्थ होती है तो वही पति इसमें अपना अपमान समझता है।

लेकिन समझदार पति जो पत्नी को अपने बराबर साथी की तरह समझता है कभी इसमें संकोच न करेगा। महान् लेनिन के गृहस्थ-जीवन का जिन्होंने अध्ययन किया वे जानते हैं कि वह पत्नी के हर काम में हाथ बंटाता था। पैदल ही चलकर एक साधारण नागरिक की तरह बाजार से घर का सामान, साग-सब्जी लाता था। कई वर्षों तक तो भोजन एक समय उनकी पत्नी बनाती थी और एक समय वे स्वयं।

यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है कि पत्नी की तरह ही घर के कामों में पति को भी कुशल होना चाहिए। आपको स्मरण होगा कि राजा नल पाक-विद्या में पारंगत थे और इसी गुण के कारण ऋतुपर्ण के सारथी के रूप में दमयन्ती ने उन्हें पहचान लिया था। गदाधारी भीम महाराज विराट के यहाँ मुख्य रसोइये के रूप में नियुक्त हुए थे। विवेकानन्द अपने हाथों बड़ा स्वादिष्ट भोजन बना लेते थे। घर के कामों में महात्मा गाँधी भी अपनी पत्नी को पूरा-पूरा योग देते थे। भोजन बनाने से लेकर घर की सफाई, टट्टी पेशाब उठाने तक के काम बापू ने स्वयं किए थे। हमारे इतिहास में एक भी महापुरुष ऐसा नहीं मिलता जिसने पत्नी के कार्यों को करने में संकोच अनुभव किया हो। और सच भी है कि जीवन के व्यापक क्षेत्र में जहाँ पति-पत्नी को मिलकर आगे बढ़ना होता है वहाँ कार्य विभाजन की कोई सीमा रेखा निर्धारित नहीं की जा सकती। जो ऐसा नहीं जानते वे अन्धकार में पड़े और अज्ञानी है।

पत्नी जीवन भर अपने पति-बच्चों के वस्त्र धोती है, उनकी सेवा करती है, जो भी करना आवश्यक होता है उसमें संकोच अनुभव नहीं करती। लेकिन आवश्यकता पड़ने पर पत्नी के कपड़े तक उठा कर धरने में, बीमारी-हारी में उसकी कुछ सेवा शुश्रूषा करने में बहुत से पति नाक भौं सिकोड़ते हैं। अपना अपमान समझते हैं। क्या इसी रूप में वे पत्नी की सेवा से उऋण होना चाहते हैं। सचमुच ऐसे व्यक्ति कभी भी नारी से उऋण नहीं हो सकते।

बहुत से परिवारों में स्त्रियाँ दिन-रात काम में लगी रहती हैं, उन्हें तनिक भी अवकाश नहीं मिलता कि कुछ विश्राम करें। दूसरी ओर पुरुष बहुत-सा समय व्यर्थ आलस्य में पड़े रहकर मौज मजे करने में, ताश शतरंज खेलने में बिताते हैं, लेकिन पत्नी को कुछ सहारा नहीं देते घर के काम में, ताकि वह भी बेचारी कुछ सुस्ता सकें, विश्राम कर सके। पति का कर्तव्य है कि जिस तरह पत्नी हमेशा निःसंकोच भाव से सेवा करती है उसी तरह वह भी आवश्यकता पड़ने पर पत्नी की सेवा करें। उसके आराम स्वास्थ्य आदि का पूरा-पूरा ध्यान रखें।

काम काज की ही बात नहीं बहुत से लोग अपनी स्त्री के प्रति सहानुभूति और सहयोग का रुख भी तो नहीं रखते। उल्टे अपने अस्त-व्यस्त कार्यक्रम से उसे परेशानी पैदा कर देते हैं। रात को साथियों की गप शप, सिनेमा आदि के कारण देर से घर आते हैं। उधर बेचारी पत्नी भोजन बनाकर थकी माँदी उनकी बाट जोहती रहती है। न वह स्वयं समय पर खा पाती है न सो पाती। पति इस तरह की व्यर्थ परेशानी से पत्नी को छुटकारा दिला सकता है। इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि पत्नी के प्रति सद्भावना रहे, उसकी सुविधा का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाय। ऐसी बहुत-सी कृत्रिम परेशानियों को इस तरह दूर किया जा सकता है।

यदि आप अपने दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाना चाहते हैं, यदि आप अपनी पत्नी के स्वस्थ विकास की क्षमता रखते हैं, अपने कर्तव्य और उत्तरदायित्व के प्रति सच्चे बनना चाहते हैं तो सभी प्रकार पत्नी के कार्यों में सहयोग करें। किसी कारणवश आपकी पत्नी भोजन नहीं बना पाती तो आपका कर्तव्य है कि आप उसी भावना से भोजन बनायें जिस तरह प्रतिदिन आपकी पत्नी बनाती है।

बीमार पड़ने पर या किसी तकलीफ में पत्नी की सेवा शुश्रूषा करने में कंजूसी न करें। यही वह अवसर होता है जब आप अपनी स्त्री के ऋण से, जो जीवन भर आपके ऊपर चढ़ता रहता है, मुक्त हो सकते हैं। फिर अपने जीवन साथी की सेवा करने में शर्म क्यों? इस बात का भी पूरा-पूरा ध्यान रखें कि आपके द्वारा अकारण ही आपकी पत्नी को परेशानी न उठानी पड़ें। इसके लिए अपनी आदतों में अपने रहन-सहन और कार्यक्रम में सुधार कर लें। पत्नी के भी स्वास्थ्य मनोरंजन, घूमने फिरने का ध्यान रखें। किसी पर्व त्यौहार पर आपकी पत्नी यदि सहेलियों के साथ उत्सव मनाना चाहें तो घर के आवश्यक कार्य आप स्वयं सम्हाल लें और उसे स्वतन्त्रता के साथ आमोद-प्रमोद का अवसर प्रदान करें। सबसे बड़ी बात यह है कि स्वयं और पत्नी के बीच में किसी तरह का भेदभाव पूर्ण व्यवहार कोई सीमा-रेखा न मानें। वरन् एक बराबर साथी की तरह व्यवहार करें।


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