शारीरिक स्वच्छता की उपेक्षा न करें

October 1964

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देखा जाता है कि स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने के लिये प्रायः लोग ऐसे साधनों की तलाश में रहते हैं जिनसे तुर्त-फुर्त जादू के समान असर हो। इसके लिये पौष्टिक आहार भी जुटाते हैं, कसरत, व्यायाम भी करते हैं। इन से स्वास्थ्य सुधार और आरोग्य लाभ प्राप्त भी होता है, किन्तु शारीरिक स्वच्छता के अभाव में यह स्वास्थ्य अधिक दिन तक स्थिर नहीं रहता। देखने में यह बात छोटी लगती है इसीलिये लोग इसकी उपेक्षा भी करते है किन्तु इसके परिणाम दूरगामी एवं हानिकारक होते हैं। शारीरिक अस्वच्छता का मानसिक अवस्था और क्रियाशीलता पर भी दूषित प्रभाव पड़ता है। इसलिये स्वस्थ रहने का पहला सबक शारीरिक-स्वच्छता से प्रारम्भ होता है।

भारतीय-संस्कृति में शारीरिक पवित्रता को अनिवार्य धर्म-कर्तव्य माना गया है। भोजन करने के पूर्व स्नान करने की परम्परा प्राचीन है। यह रिवाज शारीरिक सफाई की दृष्टि से ही चलाया गया है। अपवित्र वस्तु या मैले आदि के स्पर्श के तुरन्त बाद स्नान कर डालने से शरीर विषैले कीटाणुओं के प्रभाव से भी बच जाता है और मन का विग्रह भी समाप्त हो कर प्रसन्नता व हलकापन अनुभव करने लगते हैं। इस दृष्टि से यह परम्परा अत्यन्त विवेकपूर्ण लगती है।

भारतवर्ष उष्ण-प्रदेशीय गर्म देश है। इसलिये यहाँ स्नान की उपेक्षा कभी भी नहीं की जा सकती। पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित लोग इसे भी अन्ध-परम्परा या रूढ़िवाद कह कर टालने का प्रयास किया करते हैं। यह बात हानिकारक है। आम लोगों में जो कार्य क्षमता का अभाव दिखाई देता है उसका अधिकाँश कारण यही है कि लोग स्नान के महत्व को नहीं जानते और उससे बचने का प्रयत्न करते रहते हैं।

स्वास्थ्य और शारीरिक सफाई में स्नान बड़ा महत्वपूर्ण होता है। महर्षि पतञ्जलि ने इस महत्व को इस प्रकार स्पष्ट किया है :—

पवित्रं वृष्यमायुष्यं श्रम स्वेदमलापहम्।

शरीर बल संधानं स्नानमोजस्करं परम्॥

अर्थात् —स्नान से शरीर पवित्र होता है। वीर्य और आयु की वृद्धि होती है। थकावट, पसीना तथा मैल दूर हो कर शरीर में बल तथा ओज बढ़ता है।

काम करने से शरीर में पसीना आना स्वाभाविक है। हवा के साथ मिले धूल के कण इस पसीने से मिल कर शरीर की चमड़ी के ऊपर पर्त के रूप में जमते रहते है और सारे शरीर के रोम कूप बन्द हो जाते है। इससे पसीने के रूप में बाहर निकलने वाली शरीर की गन्दगी के मार्ग में रुकावट हो जाती है। इसका स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। कुछ दिन लगातार स्नान न करने से शरीर से बुरी तरह बदबू आने लगती है। यह गन्दगी यदि साफ न की जाये तो त्वचा की बीमारियाँ होते देर न लगेंगी।

भली प्रकार स्नान कर डालने से यह गन्दगी दूर हो जाती है और त्वचा साफ कोमल और स्निग्ध बन जाती है। रोमकूप खुल जाते हैं। इससे आन्तरिक सफाई का मार्ग खुल जाता है।

स्नान का सब से बड़ा महत्व यह है कि इससे शरीर को प्राकृतिक तौर पर जल में पाई जाने वाली “विशिवा” नामक विद्युत प्राप्त होती है। इससे ठीक बिजली की करेन्ट जैसा ही शरीर में प्रभाव पड़ता है। इससे मन प्रसन्न होता है, रक्त संचार बढ़ता है और सारे शरीर में शीतलता व क्रियाशक्ति दौड़ जाती है। सारी थकावट दूर हो जाती है। प्रातःकाल स्वच्छ जल से स्नान कर डालने से सारे दिन शरीर हलका बना रहता है। आलस पास नहीं आता। इसी प्रकार शाम को जब काम करके घर लौटें तो स्नान से श्रम में खोयी हुई शक्ति पुनः प्राप्त हो जाती है।

जल्दी-जल्दी 2-4 लोटे पानी शरीर पर डाल लेने मात्र से स्नान का उद्देश्य पूरा नहीं होता। इससे शरीरस्थ मल फूल कर और भी भड़क उठता है और हानिकारक परिणाम उपस्थित होते हैं। स्नान एक प्रकार की जल-मालिश है। खूब पानी डालना, सारे शरीर को भली प्रकार रगड़ने से माँस पेशियों की सारी थकान दूर हो जाती है। ध्यान रहे कि स्नान के समय शरीर का कोई भी अंग ऐसा न रहे जिसे खूब रगड़कर साफ न कर लें। स्नान करने के पूर्व मुल्तानी मिट्टी अथवा स्नान के समय कम कास्टिक वाले साबुन से सारे शरीर को साफ कर लेना लाभदायक होता है। मिट्टी लगाकर स्नान करने का एक लाभ यह भी है कि विष चूसक गुण के कारण मिट्टी सारे शरीर का विष सोख कर बाहर निकाल देती है।

इसी प्रकार प्रतिदिन अपने दाँतों की सफाई न करें तो दांतों के जोड़ और जड़ों में खाने के छोटे-छोटे टुकड़े भर जाते हैं। जो बुरी सड़ाँध उत्पन्न करते हैं। किसी दूसरे आदमी के आगे बैठें तो वह मुँह बिचकाकर दूर भागने का प्रयत्न करता है। यह गन्दगी धीरे-धीरे दांतों की जड़ों को खाना शुरू कर देती है और पायरिया जैसी गन्दी बीमारी हो जाती है। इससे दाँत और मसूड़ों से मवाद जाने लगता है। डॉक्टरों का मत है कि भारतवर्ष में 90 प्रतिशत व्यक्तियों को पायरिया है। जिनके दाँतों से मामूली रगड़ते ही खून निकल पड़ता है उन सभी को पायरिया की प्रथम या द्वितीय अवस्था होती है। यही अवस्था आगे बढ़कर मवाद आदि के रूप में फूटती और दाँतों को असमय ही ले बैठती है। स्वास्थ्य मन्त्राणी सुशीला नायर ने डॉक्टरी सर्वे के आधार पर यह घोषणा की है कि यदि दाँतों की ओर से ऐसी ही उपेक्षा की जाती रही तो एक सदी के अन्दर ही यह पोपलों का देश बन जायेगा। इस कथन में यथार्थ ही कोई अतिशयोक्ति दिखाई नहीं पड़ती है।

यह आवश्यक नहीं कि कोई अँगरेजी दंत मंजन हो तो ही आप दाँत साफ करें। थोड़ा-सा नमक थोड़ा सरसों का तेल मिला लीजिये, बस सुन्दर पौष्टिक मंजन बन गया। जिन्हें इसमें भी कुछ असुविधा समझ में आये वे दातौन का प्रयोग कर लें। दाँतों की हिफाजत के लिये नीम या बबूल की दातौन है। इनमें रोग नाशक शक्ति होती है। भोजन करने के उपरान्त दातौन करलें तो खाने के टुकड़े दाँतों के बीच जमा न होंगे और मुँह भी स्वच्छ बना रहेगा।

बालों को स्वच्छ और संवार कर रखना एक सुघड़ आदत है। बढ़े हुए लम्बे नाखून स्वास्थ्य के लिये बड़े हानिकारक होते हैं। नाखूनों के ऊपरी सिरों पर हर कोई काली-काली भरी हुई गन्दगी देख सकता है। नाखूनों को काटें नहीं तो इस गन्दगी के पेट में चले जाने का अंदेशा बना रहता है। खाना खाते समय प्रायः उँगलियों का ऊपरी हिस्सा ही खाने में डूबता है और उतना ही हिस्सा मुँह में जाता है। आहार के साथ यह विषैला तत्व पेट में चला जाता है और पेट में बुराई पैदा करता है। इसलिये सप्ताह में कम-से-कम एक बार अपने नाखूनों की सफाई अवश्य कर लेनी चाहिये।

हाथों-पाँवों के गावे तथा वस्त्रों से ढंके रहने वाले स्थान, जोड़ों के स्थानों को भी प्रति दिन स्वच्छ कपड़े से साफ करते रहना चाहिये। पैर की हिफाजत के लिये आपका मोजा तथा जूते साफ रहें। हमेशा पैरों में जूते भी न डाले रहें, कभी-कभी नंगे पाँव भी चलने का अभ्यास बनाये रखें ताकि पैरों की खाल मरने न पावे और पसीने के कारण पाँवों में किसी प्रकार का रोग उत्पन्न न हो।

देखने में ये बातें बहुत छोटी और बिलकुल मामूली सी जान पड़ती हैं। किन्तु इनके परिणाम कभी-कभी बहुत दूरगामी होते हैं। स्वास्थ्य-रक्षा के लिये अपने घर की सफाई, नाबदान की सफाई, चौके रसोई की स्वच्छता, बर्तनों की सफाई और अपने आस-पास की स्वच्छता अनिवार्य है। पर यदि इन्हें तो साफ रखें और अपना शरीर ही गंदा पड़ा हो तो अधिक दिनों तक आरोग्य लाभ की आशा दुराशा मात्र रहेगी। हमें अपना स्वास्थ्य प्रिय हो, रोगों से बचना चाहते हों तो शारीरिक स्वच्छता और सफाई का पूरा ख्याल रखना ही पड़ेगा।


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