बूँद समुद्र के अथाह जल में घुलने लगी तो उसने कहा “अपने अस्तित्व को समाप्त करना मेरे लिए संभव न होगा। मैं अपनी सत्ता खोना नहीं चाहती।’
समुद्र ने उसे समझाया “तुम्हारी जैसी असंख्य बूँदों का समन्वय मात्र ही तो मैं हूँ। तुम अपने भाई बहिनों के साथ ही तो घुल-मिल रही हो। उसमें तुम्हारी सत्ता कम कहाँ हुई? वह तो और अधिक बढ़ गई।”
बूँद को सन्तोष न हुआ। वह अपनी पृथक सत्ता बनाये रहने का ही आग्रह करती रही।
समुद्र ने सूर्य किरणों के सहारे उसे भाप बना कर बादलों में पहुँचा दिया और वह बरस कर फिर बूँद बन गई। बहती हुई फिर समुद्र के दरवाजे पर पहुँची तो उसने हंसते हुए कहा- बच्ची पृथक सत्ता बनाये रह—कर भी तुम अपने स्वतंत्र अस्तित्व की रक्षा कहाँ कर सकीं? अपने उद्गम को समझो, तुम समष्टि से उत्पन्न हुई थीं और उसी की गोद में तुम्हें चैन मिलेगा।