एक व्यक्ति पर विरक्ति का नशा चढ़ा। दो प्रहर रात्रि गये वह उठा और घर छोड़कर ईश्वर की खोज में चलने लगा। सोते हुए स्त्री बच्चों की ओर उसने घृणा से देखा और कहा —यही हैं वे दुष्ट जिनने मुझे माया-जाल में बाँध रखा था। माँ की बगल में सोए हुए बच्चे ने सपने में यह अनर्थ देखा और वह चौंककर चीख पड़ा। अलसाई आँखों से माता ने अपने मुन्ने को कलेजे से चिपका लिया। चुपके से भगवान ने कहा —मूर्ख, माया-जाल में, कर्तव्य के बन्धनों में मैंने ही तुझे बाँधा था। इस माता को देख जो रोते बालक को छाती से लगाकर सान्त्वना देती है और एक तू है जो आश्वस्तों को धोखा देकर घर से भागता है। मैं तो कुटुम्बियों के रूप में तेरे घर मौजूद हूँ, फिर तू मुझे ढूंढ़ने कहाँ चला?