गायत्री की महिमा

July 1948

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गायत्री की महिमा को वेद, शास्त्र पुराण सभी वर्णन करते हैं। अथर्ववेद में गायत्री की स्तुति की गई है जिसमें उसे आयु, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन, और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा है।

स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्ता पावमानी द्विजानाम्। आयुः प्राणं प्रजा पशुँ कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्।

अथर्ववेद में स्वयं वेद भगवान ने कहा है।

मेरे द्वारा स्तुति की गई, द्विजों को पवित्र करने वाली, वेदमाता गायत्री आयुः, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन, ब्रह्मतेज उन्हें प्रदान करे।

यथामधु च पुष्पेभ्यो घृतं दुग्धाद्रसात्पयः।

एवं हि सर्ववेदानाँ गायत्रो सार मुच्यते।।

-व्यास

जिस प्रकार पुष्पों का सारभूत मधु, दूध का घृत, रसों का सार भूत दूध है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है।

तदित्युचः समो नास्ति मन्त्रो वेद चतुष्टये।

सर्वे वेदाश्च याज्ञाश्च दानानि च तपाँसि च

समानि कलया प्राहुभुनयो नतदित्यृचः।।

-विश्वामित्रः।

गायत्री मन्त्र के समान मन्त्र चारों वेदों में नहीं है। सम्पूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप, गायत्री मन्त्र की एक कला के समान भी नहीं हैं ऐसा मुनि लोग कहते हैं।

गायत्री छन्दसाँ मातेति।।2।।

-महानारायणोपनिषद्। 15।1

गायत्री वेदों की माता अर्थात् आदि कारण है।

त्रिभ्य एव तु वेदेभ्यः पादम्पादमदूदुहत्।

तदित्यृचोस्याः सावित्र्याः परमेष्ठी प्रजापति।।

मनु0 अ॰ 2।77

परमेष्ठी प्रजापति ब्रह्माजी ने तीन ऋचा वाली गायत्री के तीनों चरणों को तीनों वेदों से सारभूत निकाला।

गाय«यास्तु परन्नास्ति शोधनं पापकर्मणाम्।

महाव्याहृति संयुक्ता प्रणवेन च संजपेत्।।

सम्वर्त स्मृ0 श्लो0 228

पाप को नाश करने में समर्थ गायत्री के समान अन्य कोई मन्त्र नहीं है, अतः प्रणव तथा महा व्याहृतियों सहित गायत्री मन्त्र का जाप करे।

नान्नतोय समं दानं न चाहिंसा परं तपः।

न सावित्री समं जाप्यं न व्याहृति समं हुतम्।।

सूत संद्धिता यज्ञ वैभवखण्ड अ॰ 6।30।

अन्न और जल के समान कोई भी दान, अहिंसा के समान तप, गायत्री के समान जप, व्याहृति के समान अग्निहोत्र, कोई भी नहीं है।

हस्तत्राणप्रदा देवी पतताँ नरकार्णवे।

तस्मत्तामभ्यसेन्नित्यं ब्राह्मणो हृदये शुचिः।।

गायत्री देवी नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाली है अतः नित्य ही द्विज पवित्र हृदय से गायत्री का अभ्यास करे अर्थात् जपे।

गायत्री चैव वेदाश्च तुलया समतोलयन्।

वेदा एकत्र साँगास्तु गायत्री चैकतः स्थिता।।

योगी याज्ञवलक्य

गायत्री और समस्त वेदों को तराजू से तोला गया षट्अंगों सहित वेद एक ओर रखे गये और गायत्री को एक ओर रखा गया।

सारभूतास्तु वेदानाँ गुह्योपनिषदो मताः।

ताभ्यः सारस्तु गायत्री तिस्त्रो व्याहृतयस्तथा।।

योगी या ज्ञ0

वेदों का सार उपनिषद् है और उपनिषदों का सार गायत्री और तीनों महा व्याहृतियाँ है।

गायत्री वेदजननी गायत्री पापनाशिनी।

गायत्र्यास्तु परन्नास्ति दिविचेह च पावनम्।।

गायत्री वेदों की जननी है, गायत्री पापों को नाश करने वाली है। गायत्री से अन्य कोई पवित्र करने वाला मन्त्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है।

तद्यथाग्निर्देवानाँ, ब्राह्मणे मनुष्याणं,

वसन्त ऋतूनामेवं गायत्री छन्दसाम्।।

(गोपथ ब्राह्मण)

जिस प्रकार देवताओं में अग्नि, मनुष्यों में ब्राह्मण, ऋतुओं में बसन्त ऋतु श्रेष्ठ है, उसी प्रकार समस्त छन्दों में गायत्री छन्द श्रेष्ठ है।

अष्टादशसु विद्यासु मीमाँसा अति गरीयसी

ततोऽपि तर्क शास्त्राणि पुराणं तेभ्य एव च।

ततोऽपि धर्मशास्त्राणि तेभ्यो गुर्वीश्रुति द्विज।

ततोऽप्युपनिपच्छ्रेष्ठा गायत्री च ततोऽधिका।

दुर्लभा सर्वमन्त्रेषु गायत्री प्रणवान्विता।

वृह सं0 भा 0

अठारह विद्याओं में मीमाँसा अत्यन्त श्रेष्ठ है। मीमाँसा से तर्कशास्त्र श्रेष्ठ है और तर्कशास्त्र से पुराण श्रेष्ठ है।

पुराणों से भी धर्मशास्त्र श्रेष्ठ हैं, हे द्विज? धर्मशास्त्रों से वेद श्रेष्ठ हैं और वेदों से उपनिषद् श्रेष्ठ हैं और उपनिषदों से गायत्री मन्त्र अत्यधिक श्रेष्ठ है।

प्रणव युक्त यह गायत्री मन्त्र समस्त वेदों में दुर्लभ है।

नास्ति गंगा समं तीर्थं न देवाः केशवात्परः।

गायत्र्यास्तु परं जप्यं न भूतं न भविष्यति।।

वृ0 यो0 याज्ञ0 अ॰ 10।2।79

गंगा जी के समान कोई तीर्थ नहीं है, केशव से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं है। गायत्री मन्त्र के जप से श्रेष्ठ कोई जप न आज तक हुआ और न होगा।

सर्वेषाँ जप सूकानामृचाश्च यजुषाँ तथा।

साम्नाँ चैकाक्षरादीनाँ गायत्री परमो जपः।।

वृ0 पाराशर॰ स्मृति अ॰ 4।4।

समस्त जप सूक्तों में, ऋग् यजु सामवेदों में तथा एकाक्षरादि मन्त्रों में गायत्री मन्त्र का जप परम श्रेष्ठ है।

एकाक्षरं परं ब्रह्म प्राणायामाः परन्तपाः।।

सावित्र्यास्तु परन्नास्ति पावनं परमं स्मृतम्।।

मनु0 स्मृति अ॰ 2। 83।

एकाक्षर अर्थात् ‘ओऽम्’ पर ब्रह्म है। प्राणायाम परम तप है और गायत्री मन्त्र से बढ़कर पवित्र करने वाला कोई भी मन्त्र नहीं है।

गाय«या परमं नास्ति दिवि चेह च पावनम्।

हस्तत्राणप्रदादेवी पतताँ नरकार्णवे।।

शंख स्मृति अ॰ 12। 25

नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़कर कर बचाने वाली गायत्री के समान पवित्र करने वाली वस्तु या मन्त्र पृथ्वी पर तथा स्वर्ग में भी नहीं है।

गायत्री चैव वेदाश्च ब्रह्मणा तोलिता पुरा

वेदेभ्यश्च चतुस्त्रेभ्यो गाय«यति गरीयसी।।

वृ0 पाराशर स्मृति0 5।16

प्राचीन काल में ब्रह्माजी ने गायत्री को वेदों से तोला। परन्तु चारों वेदों से भी गायत्री का पल्ला भारी रहा।

सोमादित्यान्वयः सर्वे राघवाः कुरवस्तथा।

पठन्ति शुचयो नित्यं सावित्रीं परमाँ गतिम्।

महाभारत अनु0 पर्व0 अ॰ 15।78

हे युधिष्ठिर! सम्पूर्ण चन्द्रवंशी, सूर्यवंशी, रघुवंशी तथा कुरुवंशी नित्य ही पवित्र होकर परमगति दायक गायत्री मन्त्र का जप करते हैं।

बहुना किमिहोक्तेन यथावत् साधु साधिता। द्विजन्मानामियं विद्या सिद्धा काभदुधास्मृता।।

यहाँ पर अधिक कहने से क्या लाभ? अच्छी प्रकार सिद्ध की गई यह गायत्री विद्या द्विज जाति को कामधेनु कहा गया है।

सर्ववेदोद्धृतः सारो मंत्रोऽयं समुदाहृतः। ब्रह्मादेव्यादि गायत्री परमात्मा समीरितः।।

यह गायत्री मंत्र समस्त वेदों का सार कहा गया। गायत्री ही ब्रह्मा आदि देवता है। गायत्री ही परमात्मा कही गई है।

या नित्या ब्रह्मगायत्री सैवगंगा न संशयः सर्व तीर्थमयी गंगा तेन गंगा प्रकीर्तिता।

गायत्री तंत्र

गंगा सर्व तीर्थ मय होने से गंगा कहलाती है। वह गंगा ब्रह्म गायत्री का ही रूप है।

सर्व शास्त्र मयीगीता गायत्री सैव निश्चिता ।

गयातीर्थं च गोलोकं गायत्री रूपमद्भुतम्।।

गायत्री तंत्र

गीता में सब शास्त्र भरे हुए हैं। वह गीता निश्चय ही गायत्री रूप है। गया तीर्थ और गोलोक वह भी गायत्री के ही रूप हैं।

अशुचिर्वा शुचिर्वापिगच्छन् तिष्ठन् यथा तथा।

गायत्रीः प्रजपेद्धीमान् जपात् पापान्निवर्त्तते।।

गायत्री तंत्र

अपवित्र हो अथवा पवित्र हो, चलता हो अथवा बैठा हो अथवा जिस भी स्थिति में हो, बुद्धिमान मनुष्य गायत्री का जप करता रहे। इस जप के द्वारा पापों से छुटकारा होता है।

मननात् पापतस्त्राति मननात् स्वर्ग मश्नुचे।

मननात् मोक्ष माप्नोति चतुर्वर्ग मयोभवेत्।।

गायत्री तंत्र

गायत्री का मनन करने से पाप छूटते हैं, स्वर्ग प्राप्त होता है और मुक्ति मिलती है। तथा चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) सिद्ध होते हैं।

गायत्री त परित्यज्य अन्य मंत्रमपासते। सिद्धान्नं च परित्यज्य भिक्षामटति दुर्मति।।

जो गायत्री को छोड़ कर दूसरे मंत्रों की उपासना करता है वह दुर्बुद्धि पुरुष पकाये हुए अन्न को छोड़ कर भिक्षा के लिए घूमने वाले पुरुष के समान है।। 43।।

नित्यनैमित्तिके काम्ये तृतीये ताप वर्धने। गायत्र्यास्तु परं नास्ति इहलोकेपरत्र च।।2।।

नित्य, नैमित्तिक, काम्य का सफलता तथा तप की वृद्धि के लिए इस लोक तथा परलोक में गायत्री से बढ़कर कोई नहीं है।

सावित्री जाप नित्तः र्स्वगमाप्रोति मानवः। तस्मात् सर्व प्रयत्नेन स्नानः प्रयतमानसः। गायत्री तु जपेद्भक्त्या सर्वपाप प्रणाशिनीम।।

शंख स्मृति

गायत्री मन्त्र जानने वाला मनुष्य स्वर्ग को प्राप्त करता है। इस कारण समस्त प्रयत्नों से स्नान कर स्थिर चित्त हो समस्त पाप नाश करने वाली गायत्री देवी का जाप करे।

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