पुत्र एवं स्वर्ण घट की प्राप्ति

July 1948

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री जोखूराम मिश्र विशारद, जमुनीपुर)

(1) प्रयाग जिले के छतौना ग्राम निवासी पं0 देवनारायण जी देव भाषा के असाधारण विद्वान और गायत्री के अनन्य उपासक हैं। तीस वर्ष की आयु तक अध्ययन करने के उपरान्त उनने गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। पत्नी बड़ी सुशील एवं पति परायण मिली। परन्तु विवाद के बहुत काल बीत जाने पर भी जब कोई सन्तान न हुई तो अपने को बंध्यत्व से कलंकित समझ कर दुखी रहने लगी। पं0 जी ने उनकी इच्छा को जानकर सवालाख जप का अनुष्ठान किया। कुछ ही दिन में उनके एक प्रतिभावान मेधावी पुत्र हुआ जो आज कल देव भाषा की सर्वोच्च उपाधि प्राप्त करने की तैयारी कर रहा है।

(2) प्रयाग के पास जमुनीपुर ग्राम में एक विद्वान ब्राह्मण रहते थे। उनका नाम पं0 राम निधि शास्त्री था। शास्त्री जी विद्या के भण्डार होते हुये भी अत्यन्त निर्धन थे, पर वे गायत्री की साधना में भक्ति पूर्वक निरत रहते थे। तपश्चर्या में उनका शरीर अस्थि पंजर मात्र रह गया था।

एक बार शास्त्री जी ने गायत्री के नवाह्निकडडडडडडडडड पुरश्चरण का संकल्प किया। उन्होंने नौ दिन तक केवल जल पीकर ही साधना की, जब पुरश्चरण समाप्त हुआ तो अर्ध रात्रि को भगवती गायत्री ने बड़े दिव्य स्वरूप में उन्हें दर्शन दिये और वर दिया कि तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण होंगे। तुम्हारे इस घर में ही अमुक स्थान पर एक स्वर्णघट रखा हुआ है उसे निकाल कर अपनी दरिद्रता दूर करो। तुम्हें शीघ्र ही पुत्र भी प्राप्त होगा। यह कह कर गायत्री देवी अंतर्ध्यान हो गईं । पं0 जी ने स्वर्ण से भरा हुआ घड़ा निकाला और वे निर्धन से धन पति हो गये। उनके घर एक गौर वर्ण पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम ‘गायत्री प्रसाद’ रखा गया।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118