गायत्री द्वारा प्राण रक्षा

July 1948

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(पं. प्रभुदयाल शर्मा सं. सनाढय जीवन इटावा)

मेरे बड़े पुत्र की स्त्री को कई साल पूर्व कोई दुष्ट प्रेतात्मा लग गई थी। उससे उसे बड़ा कष्ट होता था। बार बार बेहोश हो जाती थी। उसे कभी प्रतीत होता था कि कोई उसका हाथ तोड़े डालता है, कभी मस्तक पर हथौड़े की चोटें मारता है। कभी हाथ पैरों को जलाये देता है। इसी प्रकार के कष्ट मस्तक के दर्द आदि की पीड़ा उसके बालकों को भी होती थी। हम इससे बहुत दुखी थे। झाड़ फूँक दवा दारु के बहुत प्रयत्न किये पर कोई लाभ न हुआ। अन्त में गायत्री का आश्रय लिया गया। गायत्री से अभिमंत्रित जल उन्हें पिलाया जाता उसी से उनका मार्जन किया जाता, इस उपचार से उस दुखदायी व्यथा से छुटकारा मिला।

(2)

मेरे ताऊ जी जो एक प्रसिद्ध वैद्य थे। बार दानापुर (पटना) गये हुए थे। स्नान करने के अनन्तर वे गायत्री का जप नित्य करते थे। वहाँ वे जप कर ही रहे थे कि उनके कान में एकदम शब्द हुआ कि जल्दी निकल! मकान गिरता है। एक बार सुनकर भी वे पूजा में व्यस्त रहे, किन्तु फिर वही शब्द और भी जोर से हुआ। वे पास की खिड़की से कूद कर भागे, मुश्किल से कुछ कदम ही गये होंगे की मकान गिर पड़ा। वे बाल-बाल बच गये।

(3) एक बार हमारे चचेरे भाई का पुत्र बहुत बीमार था। बीमारी काबू से बाहर थी। सब प्रकार जब निराशा दीखने लगी तो बालक की माता दादी आदि घर के लोग उसकी मृत्यु की आशंका से बुरी तरह रोने लगे। इतने में ताऊजी आ गये। उनने मृत्यु के मुख में अटके हुए बालक को गोदी में ले लिया और उसे लेकर एक घण्टे तक आँगन में चक्कर लगाते रहे तथा गायत्री का जप करते रहे। बालक पूर्ण स्वस्थ हो गया और आज वह 51 वर्ष का है।

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