(पं0 धारादत्तजी शास्त्री, वेदान्ताचार्य, वाराणसी काशी)
कुँए पर आकर ब्रह्मचारीजी ने जल से मण्डल बनाकर मुझे बैठा दिया और स्वयं नित्य-नियमों में लग गये।
मैंने सुस्पष्ट देखा कि वह प्रेतात्मा कभी मुख से कभी शिर से भयंकर अग्निज्वाला फेंकता है। कभी मनुष्य, कभी हिंसक जन्तु बनकर भयोत्पादन करता है। यह भ्रम नहीं था, सत्य घटना थी और करीब 1-1॥ घन्टे तक, वह अपना अनेक प्रकार का प्रदर्शन करता रहा।
क्षणिक घटना में भ्रम हो सकता है। इतने समय तक होने वाली घटना को कैसे भ्रम मान सकते हैं। वह भी तब जब हम पूर्ण होश में बुद्धि पूर्वक अध्ययन करें। जब मैंने बाबा से पूछा कि वह कौन था, तब उन्होंने कह दिया वह प्रेतात्मा था हम लोगों से छेड़ना चाहता था। हमने पूछा कि आप से कुछ न कह सका, तब उन्होंने कहा कि बेटा यह गायत्री मंत्र का प्रभाव है। ऐसे-2 अनेक भी आवें तो हमारा कुछ न बिगाड़ सकेंगे। तब उन्होंने कहा कि जब तुम्हारा जनेऊ करायेंगे तब वह मंत्र तुम्हें देंगे।
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