नित्ये, नैमित्तिके, काम्ये, त्रितये तु परायणः। गायत्र्यास्तु परं नास्ति इहलोके परत्र च।।
नित्य, नैमित्तिक एवं अभीष्ट-इन तीनों ही की प्राप्ति कराने में गायत्री से महान इस लोक और परलोक में अन्य कोई नहीं है।
अष्टाँग योगसिद्धवा च नरः प्राप्नोति यत्फलम्।
तत्फलं सिद्धि माप्नोति गायत्र्यातु जपेन वै।।
पुरुष जिस फल एवं सिद्धि को अष्टाँग योग सिद्धि से भी प्राप्त नहीं कर पाता वही फल गायत्री मन्त्र के जाप से प्राप्त होता है।
सर्व वेदोद्धतः सारः मन्त्रोऽयं समुदाहृतः। ब्रह्मादेव्यादि गायत्री परमात्मा समीरितः।।
यह गायत्री मंत्र समस्त वेदों का सार कहा गया है। गायत्री ही ब्रह्मा आदि देवता है गायत्री ही परमात्मा कही गई है।
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