गायत्री का जादू

July 1948

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्रीमती चन्द्रकान्ता जेरल बी. ए., दिल्ली)

मुझे बचपन से ही गायत्री मंत्र सिखाया गया था- सो स्नान के बाद इसका 10 बार उच्चारण करने का स्वभाव हो गया था। पिताजी से ‘सत्यवादी’ होना तो सीखा हुआ था और फिर बापू की आत्म कथा से सर्व प्रेम करना निर्दोषी होना सीखा। क्युरो और नैन्हम की पामिस्टरी पढ़ कर हस्तरेखा का ज्ञान कुछ हासिल किया तो पता लगा कि मनुष्य अपने आप की बहुत कुछ हाथ देखकर अपनी भूलों का सुधार कर सकता है फिर हस्तरेखा को बदल सकता है। पता चला कि कुछ आत्म विश्वास कम है, सो दृढ़ निश्चय किया कि यह भी हासिल करना है। गायत्री मंत्र गायत्री ‘देवी’ को सूर्य में ध्यान करके पढ़ती या एक शब्द का अर्थ मन में समझ कर करती और प्रार्थना सदा ही रहती कि “विद्या, बुद्धि, भक्ति दो। जिससे देश की सेवा, लोगों की भलाई, स्वार्थ रहित होकर करूं।” मन्त्रोच्चारण भी करती पर प्रार्थना मुँह से यही निकलती ।

ऐसा एक साल किया होगा कि वाकई हस्तरेखाएं बहुत बहुत बदल गई। मेरा स्वभाव प्रकृति रहन सहन सब बदल गया। हाँ मैं प्राणायाम भी करती थी प्राणायाम एक दूसरा जादू है-पर गायत्री ने अपना रंग अकेले ही काफी दिखाया। वह यों-

मेरी माता जी बड़ी सख्त बीमार पड़ी। माता जी की टाँगें, पाँव बहुत सूजे हुए थे-बहुत दर्द होता उनके दर्द के कारण चिल्लाने की आवाज दूर दूर तक जाती हम सब बहिनों ने तीन-2 घंटे की ड्यूटी लगाई हुई थी-मैंने रात की ले रक्खी थी पर चित्त न मानता। चौबीस घण्टे ही उनके पास व्यतीत करती। जब उन्हें दर्द होता वह मुझे ही बुलाती मैं उनके पाँव को हाथों से पकड़ कर आँखें बन्द कर ‘गायत्री’ का जप शुरू कर देती। उनका दर्द जादू की तरह शान्त हो जाता। सो फिर तो जब मैं कभी सोई हुई भी होती तो माता जी यही कहती कि कान्ता को बुलाओ मैं फिर वैसे ही करती और वह शान्त हो जातीं-

उसके बाद मेरा छोटे पाँच वर्ष के भाई की पीठ और टाँग में जहरीला फोड़ा निकलने से दर्द होता। ऑपरेशन हुआ घाव में जब-2 दर्द अधिक उठता कहता मन्त्र पढ़ो-और मेरे मन्त्र पढ़ने के बाद ही शान्त होकर सो जाता-सो मुझे भी उसके शान्त होने पर अपार आनन्द मिलता। फिर तो जिस किसी के भी दर्द होता, कहीं भी कहता मेरे मन्त्र पढ़ दो-पिता जी हैरान हुए-पूछने लगे-कौन सा मन्त्र पढ़ती हो। पहले तो मैंने नहीं बताया-क्योंकि सुन रक्खा था कि बताने से मन्त्र की शक्ति कम हो जाती है। पर फिर पिता जी से तो मैं सदा ही जैसा कि उन्होंने सिखाया था, मित्र का सा सम्बन्ध रखती। सो मैंने बताया। सो यदि हम ध्यान से प्रेम से इस मन्त्र को पढ़ें तो वाकई जादू ही है।

उन दिनों तब तो मेरी इतनी आदत हो गई थी कि सोते भी यह मन्त्र मुँह में रहता-काम करते-2 भी गायत्री मन्त्र मुँह में रहता-मुझे पता भी न होता और गायत्री मन्त्र का उच्चारण होता रहता सो ‘गायत्री’ ने ‘जादू’ का ही असर दिखाया।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles