अधूरी साधना में भी दिव्य अनुभव

July 1948

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(पं. रूपलाल शर्मा, विद्यारत्न, कानपुर)

एक समय था जब मेरे मन में गायत्री सिद्धि की बड़ी भारी अभिलाषा रहती थी। मैं पंडितों से पूछता तो कोई कहता कलियुग में गायत्री की सिद्धि होना बड़ा मुश्किल है, कोई कहता गायत्री को शाप लगा हुआ है इससे वह निष्फल होती है। कोई कहता सिद्धि करना हँसी खेल नहीं है, उल्टा परिणाम हुआ तो लेने के देने पड़ जायेंगे। इस प्रकार के निराशा उत्पन्न करने वाले आदेश सुनकर भी मेरा उत्साह ठंडा नहीं हुआ। मैं गायत्री विज्ञान के अनुभवी गुरु की खोज में लगा ही रहा।

एक बार की अचानक भेंट में एक दक्षणात्म सज्जन सोमनाथजी ने मुझे ग्वालियर में गायत्री विद्या के अनुभवी गुरु का पता बताया। मैं उनके पास ग्वालियर पहुँचा। उन्होंने कृपा पूर्वक अनुष्ठान की सारी विधि मुझे सविस्तार समझा दी और काशी जाकर साधना करने का आदेश किया। नियत विधि-विधान के साथ मैंने काशी के मणिकर्णिका घाट पर अनुष्ठान आरम्भ कर दिया। ग्यारहवें दिन से ही मुझे दिव्य से अनुभव होने लगे। स्वप्न में मुझे एक दिव्य मूर्ति देवी के दर्शन होते वह मुझसे कुछ कहती, उसके होंठ हिलते, पर मेरी समझ में कुछ न आता। यह स्वप्न बार -बार दिखाई दिया। देवी की वाणी अधिक स्पष्ट होती जाती थी ऐसा लगता था कि बहुत जल्द मैं उस वाणी को समझ सकूँगा।

पच्चीसवें दिन मैं घाट पर बैठा जप कर रहा था कि अचानक सफेद गैस की तरह एक भारी प्रकाश चमका, उससे मैं घबराकर हक्क वक्क सा रह गया। मेरी आंखें मुँद गई। अधिक न देख सका। उसी रात्रि को मैंने स्वप्न देखा कि एक शुभ्र वस्त्र धारी तेजवान ब्राह्मण मुझसे कह रहा है कि तुम अपने घर चले जाओ-वहाँ जरूरी काम है। मेरी नींद खुल गई और स्वप्न के संबंध में सोचने लगा।

दूसरे दिन सवेरे ही मुझे तार मिला तुम्हारे पिता सख्त बीमार हैं घर चले आओ। मैं अनुष्ठान अधूरा छोड़कर घर चला गया। नई परिस्थितियाँ आईं, नई जिम्मेदारियों में फँसा। अनुष्ठान अधूरा का अधूरा रहा। सोचता हूँ कि उसे फिर आरंभ करूं। थोड़े ही दिन की साथ में मुझे जो दिव्य अनुभव आये उनके आधार मेरा विश्वास है कि पूरी साधना करने वालों को अवश्य ही आशाजनक लाभ होगा।

“अखंडज्योति” के नये ग्राहकों को सूचना

साधारणतः प्रत्येक मासिक पत्रिका के ग्राहक उस मास से बनाये जाते हैं जिस मास से कि उसका वर्ष का आरंभ होता है। “कल्याण” आदि पत्रों का यही नियम है। अखंड ज्योति का वर्ष जनवरी से आरम्भ होता है इसलिए जो सज्जन नये ग्राहक बनते हैं उन्हें जनवरी से लेकर चालू मास तक के अंक भेज दिये जाते हैं और दिसंबर तक शेष अंक बराबर पहुँचते रहते हैं।

“अखंड ज्योति” खबरें छापने वाला अखबार नहीं है जो दूसरे ही दिन रद्दी हो जाय उसका अंक एक प्रकार की पुस्तकें हैं जो कभी पुरानी नहीं होते। पर जिन्हें विशेष आग्रह हो वे लिख दें कि हम चालू मास से ग्राहक रहना चाहते हैं। उनके वैसी व्यवस्था कर देने का भी हम किसी प्रकार प्रयत्न करेंगे ही पर कई सज्जनों की माँग और भी विचित्र होती है वे न तो वर्ष के आरंभ से ग्राहक बनना चाहते हैं न चालू से। वरन् मई या अप्रैल से ग्राहक बनने का आग्रह करते हैं। ऐसी माँगों को पूरा करने में हम सर्वथा असमर्थ हैं।

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