(श्री जटाशंकर नान्दी, पट्टन)
मेरी 75 वर्ष की आयु है। पिचहत्तर वर्ष की आयु में मैंने गत पचास वर्ष में अनेक लक्ष गायत्री जप किये हैं, इसका मूर्तिमंत फल यह आया है कि बिना प्रयत्न, सहज रीति से आपोआप गायत्री जप शुरू हो जाते हैं। व्यावहारिक कार्य से निवृत्त हुआ कि जप की शुरुआत हो जाती है। ये फायदा ऐसा वैसा गौरवहीन नहीं। मनुष्य जीवन के अंतकाल की स्थिति भावी जन्म पर बहुत असर करती है। दूसरा लाभ यह है कि जिन साँसारिक पदार्थों की प्राप्ति के लिये अगणित मनुष्य आयुष्य और आरोग्य की आहुति दे रहे हैं उन क्षण भंगुर पदार्थों पर मुझे उपेक्षा एवं विरक्ति उत्पन्न हुई है। जिस संसार को असार कहा जाता है वह मुझे सारगर्भित मालूम होता है इसलिए यम नियम का पालन सुगम हुआ है। ब्रह्मचर्य पालन, वाणी संयम और अहिंसा स्वभाव सिद्ध हुए हैं, कोई आफत के भावी प्रसंग आते हैं इससे दूर रहने के लिये स्वप्न में सूचना मिलती है जैसे लाल बत्ती दिखाने से रेलगाड़ी ठहर जाती है। इसलिये संकटों में सदा दूर रहता हूँ। अपेक्षित, शाँत, संतोषी और सुखी जीवन बहुत स्पृहणीय है।
जिस पंचेन्द्रिय जनित क्षणभंगुर आनन्दों की प्राप्ति के लिये असंख्य सामान्यजन अपने तन मन और धन की आहुति देकर व्याधि और अकाल मृत्यु को प्रतिक्षण आमंत्रण दे रहे हैं उन तुच्छ स्वार्थों पर देह दुश्मनों जैसी तिरस्कार वृत्ति उत्पन्न हुई है इसलिये आयुष्य घातक कुटेबों और दुर्व्यसनों से सदैव रक्षण मिला है।
आत्मा और ईश्वर को मिलाने वाली, सब पापों को हरने वाली और निर्मल प्रकाश देने वाली गायत्री को प्रणाम है।
--पिप्पलाद
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