(श्री आर. वी. वेद, घाट कोपर)
उस समय मैं प्रायः ध्यान मग्न रहा करता था, एक दिन, रात को स्वप्न में मुझे जब कि मैं काफी परेशान था एक दिव्य ध्वनि सुनाई पड़ी कि तुम अपनी सारी परेशानियों को भूलकर श्री जगदंबा के पास रक्षा के लिए जाओ। मुझे इस ध्वन्यात्मक चमत्कार से आश्चर्य हुआ, दूसरे दिन मैंने पुरश्चरण सम्बन्धी साहित्य जुटाना आरंभ किया। और सवा लाख मंत्र जप के पुरश्चरण का आरम्भ कर दिया और उसे अन्य ब्राह्मणों की सहायता से हवन तर्पण आदि के साथ 11 दिन में पूरा कर लिया, मैं सुबह जल्दी उठता और प्रति दिन जप और अग्नि होत्र करता। उससे मुझे चमत्कारी लाभ हुआ। सारी बीमारियाँ, सारी परेशानियाँ हवा की तरह छू मन्तर हो गईं मेरे पुराने दुश्मन भी दास हो गये।
माँ हमेशा अपने बच्चे की हिफाजत करती रहती है और वह वही सब करती रहती है जिससे बच्चा खुश रहे। मुझे अपने जीवन में इसके कई अनुभव हुए हैं-
मैं प्रति मंगल और रविवार को महालक्ष्मी दर्शन के लिए नियमित रूप से जाया करता था। जब मैंने पुरश्चरण करना आरम्भ किया तब मैं सोचने लगा कि यह सब कैसे होगा। क्योंकि मैं दर्शन करने के पश्चात ही भोजन किया करता था। यह सवाल अपने आप ही हल हो गया। मेरे मित्र ने जो कि मेरे घर के पास ही रहते हैं और किसी सरकारी विभाग में ऑफीसर हैं, आवश्यकता के समय अपनी मोटरकार को उपयोग करने के लिए मुझसे एक दिन मेरे घर आकर कहा। वे सोचते थे कि इनकी पत्नी बीमार है और कभी भी अचानक इन्हें कार की जरूरत पड़ सकती है। ( क्योंकि घाट कोपर पर सिर्फ 1 टैक्सी है और यहाँ से बम्बई 15 मील दूर है। ) मैंने उनसे कहा कि इन दिनों मेरे सामने सिर्फ महालक्ष्मी के दर्शनों की समस्या है क्योंकि मैं 11 दिन के लिए वेदमाता गायत्री का पुरश्चरण कर रहा हूँ और मैं अपने प्रत्येक काम के लिए इन्हीं पर निर्भर हूँ उन्होंने कहा कि तुम अवश्य पुरश्चरण आरंभ कर दो। सायंकाल 6 बजे जब कि जप आरती आदि से निवृत्त होंगे, यह कार तुम्हें दर्शन कराकर तुम्हारे भोजन के समय तक वापस ला देगी। इन दिनों मैं एक ही बार भोजन करता था। ये दिन बम्बई में साम्प्रदायिक दंगे के थे, और वह इलाका उन दिनों दंगा क्षेत्र घोषित था और इसीलिए 30-40 घण्टे का एक बार कर्फ्यू लगा हुआ था। इस कलियुग में भी यह चमत्कार हुआ। हमारी यात्रा में किसी प्रकार की न कोई मुसीबत आई ओर न विघ्न ही आया । एक बार तो हम सब कुछ कदम ही आगे बढ़े होंगे, कुछ गुण्डों ने वहाँ कोई विस्फोट कर दिया, परन्तु हम सुरक्षित निकल गये।
इन्हीं दिनों में से एक दिन रात्रि को 10:30 पर मेरी पत्नी को वमन होने आरम्भ हुए। आधे या पौन घण्टे बाद ही मेरे उठकर जप आदि करने का समय आता था। मैंने अपने गृह-चिकित्सक को बुलाया जोकि मेरे अत्यधिक अन्तरंग मित्र हैं। मैंने उनसे कहा, मैं अब क्या करूं। मैं पत्नी की तीमारदारी करूं या जप ? मेरे लिए एक कठिन समस्या खड़ी हो गई। पत्नी को मैं अत्याधिक प्यार करता हूँ और जप यदि एक दिन के लिए भी छूटता है तो सारा सिद्धि कार्य खत्म । डॉक्टर ने मुझे ढाँढस बंधाया और कहा कि अपनी साधना जारी रखो, माँ भगवती इन की रक्षा करेंगी। मैं स्नानादि से निवृत्त होकर जप करने बैठ गया, इसी समय मेरी आँखों के सामने पूर्ण वेग के साथ मेरी पत्नी को फिर वमन हुआ। मैंने प्रार्थना की-माँ अब मेरी लाज तेरे हाथ में है-और मैं पूजन में लग गया-सचमुच ही आश्चर्य की बात है कि सवेरे 6:30 बजे जबकि मैं पूजा से उठा मुझे बताया गया कि मेरी पत्नी को चमत्कारिक लाभ हुआ है और वे इस समय स्वस्थ व प्रसन्न हैं।
इसी तरह मेरी साधना के समय मेरे मुकदमे की एक तारीख थी, जिसमें मैं नहीं जा सकता था और जो एक महत्वपूर्ण मुकदमा था, वह भी मेरे अनुकूल हुआ, क्योंकि उस दिन दूसरे फरीक का वकील ही गैर हाजिर हो गया।
एक नहीं ऐसे अनेक चमत्कार मुझे देखने को मिले हैं।
मैं आज पूर्ण रूप से सुखी हूँ। मुझे कोई अभाव नहीं है इस सबका श्रेय भगवती वेदमाता जगदम्बा गायत्री की कृपा को है जो कि गायत्री जप से प्राप्त हुई है।
आत्मा की उन्नति, सुख और शान्ति के लिए गायत्री सर्वश्रेष्ठ शक्ति है। जो उसे अपनाते हैं वे परमपद पाते हैं।
--कात्यायन
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