गायत्री साधना से भाग्योदय

July 1948

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(पं0 भूरेलाल ब्रह्मचारी, वैद्य, हर्रई, छिंदवाडा)

स॰ 1815, 16 का जिक्र है कि पं0 नर्मदाप्रसाद शास्त्री भदरस, कानपुर के रहने वाले थे भाग्यवश हर्रई के राज मंदिर में आकर पुजारी हो गए थे, उनकी उद्भट विद्युत्ता पर मैं मुग्ध हो गया, और उनसे विनय की कि मैं इस वक्त निठल्ला हूँ व्यर्थ आ आकर आपका समय बर्बाद किया करता हूँ, कोई ऐसा उपाय बताइए कि मेरा लोक परलोक दोनों बनें। उन्होंने कृपाकर मुझ से कहा कि गायत्री का जप किया करो मैंने उनके आदेशानुसार गायत्री पूजन शुरू किया और सवा लाख गायत्री का मंत्र जपने का संकल्प किया, दिन रात में जब निश्चित होता था उसी वक्त स्नान कर साधना करता था, जितने दिन मैंने साधना की उतने दिन एक प्रकार का उल्लास सा मेरे दिल में बना रहता था और आनन्द मय दिन व्यतीत करता था।

इसके बाद ही मैं रोजी से लग गया पं0 जी का कहना मुझे अच्छी तरह याद है कि जो भी कुछ निश्चय हो गया है उसका फल अवश्य मिलेगा। रोजी से आज तक उत्तरोत्तर मेरी वृद्धि होकर धन-धान्य से परिपूर्ण हूँ । जिस कार्य में हाथ डालता हूँ उसी में भगवान की दया से सफलता हुई और होती जाती है। अनेक तरह के संकटों का निवारण आप ही आप हो जाता है इतना तो अनुभव मेरे खुद का गायत्री मंत्र जप करने का है।

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