गायत्री द्वारा प्राण रक्षा

July 1948

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(श्री शंकर लाल व्यास महेश विद्या भूषण, कसरावद)

एक समय मेरा बच्चा बीमार हुआ यहाँ तक की डॉक्टर वैद्यों ने भी हाथ टेक दिये थे। उस वक्त उस की बड़ी शोचनीय दशा थी मैंने दस हजार गायत्री जप का संकल्प कर दिया। प्रभु की कृपा से धीरे-2 उसे आराम होने लगा और भला चंगा हो गया। इसी प्रकार एक बार मैं घोड़े की सवारी से किसी ग्राम का जा रहा था। पहाड़ी प्रदेश होने के कारण विशेषकर पगडंडी की राह से जाना पड़ता है रात्रि का समय था मैं रास्ता भूलकर एक बीहड़ जंगल में जा फंसा जहाँ भटकते-2 कई घंटे व्यतीत हो गये जंगली पशुओं की यत्र तत्र आवाज सुनाई देने लगी उस समय मैंने मानसिक गायत्री जाप शुरू किया कुछ देर बाद मैं फिर आगे बढ़ा। चलते चलते एक मोटर की आवाज जैसी आहट होती हुई सुनी उस दिशा को जाने से सड़क मिल गई और उस भयंकर जंगल में मेरे प्राण बच गये।

अश्रद्ध को, अयोगियों, और अविश्वासियों को भी स्वयं अनुभव करने पर यह विश्वास हो जाता है कि गायत्री मंत्र की शक्ति साधारण नहीं है।

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