जेल से छुटकारा

July 1948

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री गुरुचरणजी आर्य विहिया)

अब तक तो मैं इसे यहीं तक सीमित रखता था। लेकिन जब मैंने ‘अखण्ड ज्योति’ में किन्हीं महानुभाव का गायत्री का चमत्कार लेख पढ़ा जो मनुष्य के भौतिक दुःखों पर भी प्रयोग करने पर तत्काल फलदायी होता है। तब लगा डूबकर गोता पर गोता लगाने और जिन जिन चीजों की प्राप्ति हुई और हो रही है उसको पाकर उसी में डूबा ही रह जाना चाहता हूँ। इस गायत्री की प्राप्ति के लिये मेरे शरीर का रोम-रोम जीवन भर ऋषि दयानन्द सरस्वती और आचार्य श्रीराम शर्मा का आभारी रहेगा।

महात्मा गान्धी का ‘भारत छोड़ो’, देश में अगस्त आन्दोलन की आँधी आकर जब चली गई तो अंग्रेजी सरकार की पुलिस मुस्तैदी निर्दोष काँग्रेस मैनों को पकड़ पकड़ कर जेलों में ठूँस रही थी। उन्हीं पकड़े जाने वालों में, एक मैं भी था। मुझ पर रेलवे गोदाम का ताला तोड़कर माल चुराने का झूठा आरोप लगाकर एक वर्ष की सख्त सजा और एक सौ रुपया जुरमाने का फैसला दिया गया। जेल आकर मैं झुझल रहा था। पुलिस वालों पर सरकारी हाकिमों पर और साथ ही अपने पर कि साल भर निर्दोष जेल में बन्द रहूँ ? पर मैं जेल की चहार दीवारियों से घिरा बाहर निकलने से रहा।

उन दिनों आरा जेल से बदल कर भागलपुर चला आया था। जेल वास में मेरे साथी तथा और लोग जहाँ कुछ खेल तमाशा करके अपना दिल बहलाने में लगे रहते थे वहाँ मैं अकेला एकान्त में बैठा जेल से बाहर जाने के लिये विशेष चिन्तित रहता था। मैं जिस वार्ड में रहता था उसके पास ही से जेल की ऊँची दीवारों को लाँघकर लंगूरों का एक बड़ा दल भीतर आता। जूठी रोटी भात खाकर फिर ऊँची दीवारों को सुगमता पूर्वक लाँघकर बाहर चला जाता। मैं उन लंगूरों और ऊँची दीवारों को बड़े गौर से देखता।

भागनपुर आये अभी कुछ दिन हुए थे। जेल मुझे असह्य प्रतीत हो रहा था और तब मैं मुक्ति ही के लिये विशेष रूप से गायत्री को जपने में लग गया। सुबह, शाम स्नान के बाद, अपने वार्ड के पीछे एकान्त में कम्बल पर आसन लगा बैठ जाता और घन्टों गायत्री जपता, फिर अकेले उसी में लीन रहता। यह सिलसिला अभी पूरा एक महीना भी नहीं चल पाया था कि जेल के चपरासी ने एक दिन आकर सूचना दी कि आपको जमानत पर रिहाई के लिये आज ही तार द्वारा आदेश आया हैं। मैं स्वयं आश्चर्य से चकित हो गया। मेरे सामने गायत्री का वद साहाय्य मूर्तिमान हो उठा। मैंने भक्तिपूर्ण उसे प्रणाम किया जेल से विदा हो घर आने पर एक रोज जज साहब के इजलास में हाजिर हुआ। अन्त में मैं जेल से पूर्णतया छुटकारा पा गया।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles