स्त्री और पुत्र की प्राण रक्षा

July 1948

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(श्री लक्ष्मीनारायणजी श्रीवास्तव बी.ए.,एल.एल.बी. कनुकुदा, हमीरपुर)

गायत्री जप का अनुष्ठान का मेरा अनुभव है वह संकटों के दूर करने के लिए सर्वोत्तम है। मेरी स्त्री के जब बच्चा पैदा होता था तब हमेशा ही सख्त बीमार हो जाती थीं और जीवन की आशा नहीं रहती थी। इस वार मैंने पहले से ही गायत्री माता से प्रार्थना करके संकल्प को लेकर जप किया फलस्वरूप इस बार कोई ऐसा घोर कष्ट नहीं हुआ और न हालत ही खराब हुई और कुछ दिनों पश्चात अच्छी होकर स्वस्थ निकली।

एक बार मेरा बड़ा लड़का जिसकी उम्र करीब 7 साल थी, मोतीझरा की बीमारी से ग्रसित हो गया। कई दिनों की बीमारी के पश्चात एक रात उसकी हालत बहुत खराब हो गई बिल्कुल बेहोशी की बात चीत करता था और जोरों से चिल्लाता था। बच्चे की दशा देखकर इतनी असहाय अवस्था का अनुभव कर रहा था कि आत्महत्या कर लूँ ताकि यह दशा न देखूँ। इसी विचार से रात के सुनसान समय में घर से निकल पड़ा और जंगल की ओर गया। सुनसान जंगल में जहाँ पर एक चिड़िया के बोलने की भी आवाज न आती थी, घबराया हुआ टहलता रहा इतने में एक कुँआ दिखाई दिया तो विचार किया कि इसी कुँआ में कूद पड़े अतः उसी ओर झपटा और कुँआ की जगत पर चढ़ गया। इसी समय गायत्री माता के शीतल हस्त कमल का ध्यान आया और रो रोकर माता से बच्चे के स्वस्थ होने की प्रार्थना करता रहा। अपनी उस दीन व असहाय अवस्था माता के सन्मुख कहता रहा। मुझे नहीं ज्ञान हुआ कि इस दशा में कितनी देर रहा जब कुछ होश आया तो अपने को उसी कुँआ की जगत में पड़ा पाया। धीरे-2 उठकर घर की ओर चला, चित्त में शान्ति थी। घर पहुँचकर देखा बच्चा सुख की नींद सो रहा है। थोड़ी देर बाद बच्चा जगा और कहा भूख लगी है। मैंने माता को कोटिशः धन्यवाद दिया और उस दिन से गायत्री माता में इतनी श्रद्धा हो गई कि आजन्म न भूल सकूँगा-

आपत्ति काल में गायत्री माता की सहायता की जितनी प्रशंसा की जावे वह सब थोड़ी है।

जप करते समय गायत्री माता के ओजस्वी स्वरूप का ध्यान अवश्य करना चाहिये। ध्यान हट जाने पर चित्त दूसरी जगह से हटाकर उसी में ध्यान जमाना चाहिये। प्रारम्भ में ध्यान हटकर अन्य साँसारिक वस्तुओं पर अवश्य चला जाता है परन्तु इससे निराश नहीं होना चाहिये। बल्कि फिर से ध्यान को माता के स्वरूप में ही लगाना चाहिये। कुछ समय के बाद धीरे धीरे ध्यान जमने लगता है और अनुष्ठान के पूर्ति के समय तक ध्यान पूर्ण स्थिर हो जाता है। फिर उसमें जो आनन्द आता है उसका वर्णन करना व्यर्थ है। क्योंकि वह तो स्वयं अनुभव करने की वस्तु है परन्तु मैं इतना अवश्य जोर देकर कह सकता हूँ कि गायत्री उपासना से सांसारिक जीवन में जो सहायता मिलती है वह अपार है। जो किसी उपाय से नहीं हो सकती वह गायत्री मंत्र की उपासना से अवश्य मिल जाता है यह अक्षरशः सत्य है। जिसे विश्वास न हो वह करके स्वयं देख लेवे।

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