पुनीत गायत्री मंत्र

July 1948

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(डॉ0 रवीन्द्रनाथ टैगोर )

भारतवर्ष को जगाने वाला जो मन्त्र है वह इतना सरल है कि एक ही श्वास में उसका उच्चारण किया जा सकता है वह है-गायत्री मन्त्र।

ॐ भूर्भुवः स्वः

गायत्री के इस अंश का नाम व्याहृति के अर्थ हैं चारों ओर से इकट्ठा करके ले आना। पहले भूः भुवः स्वः इन तीनों लोकों, अर्थात्-सारे जगत् को मन में इकट्ठा करके लाना चाहिए। अर्थात् यह अनुभव करना चाहिए कि-

मैं किसी देश विशेष में रहने वाला नहीं हूँ, परन्तु विश्व जगत का अधिवासी हूँ। मैं जिस राजमहल का रहने वाला हूँ। ये लोक लोकान्तर उसकी केवल एक एक दीवार मात्र हैं

इस प्रकार स्वास्थ्य चाहने वाला मनुष्य अपनी तंग और बंद कोठरी से बाहर निकलकर प्रतिदिन प्रातःकाल अपरिमित खुले मैदान में शुद्ध वायु सेवन के लिए जाता है, उसी प्रकार प्रति दिन असंख्य नक्षत्रों से सुजटितडडडडडडड इस जगत में खड़ा होकर इस मन्त्र उच्चारण करना चाहिए।

तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि।

धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ

यह सारा जगत जिस शक्ति से विकसित हो रहा है उसी दिव्य ज्योति का हम ध्यान करते हैं। वह हमारी बुद्धियों का प्रेरक-चलाने वाला होवे।

ब्रह्म का ध्यान करने की भी यह प्राचीन पद्धति जैसी महान् उदार है, वैसे ही अत्यन्त सरल है। इसमें किसी प्रकार की व्यर्थता और बनावट का प्रवेश नहीं है।

बाह्य जगत और अन्तर बुद्धि-इन दोनों को छोड़कर हमारे पास है ही क्या? इस जगत और भी की भगवान अपनी अथक शक्ति से दिन रात प्रेरणा कर रहे हैं। इसी बात को अनुभव कर लेने से भगवान के साथ हमारा सम्बन्ध चिरस्थापित किया जा सकता है। मैं नहीं जानता कि किसी अन्य हुनर मन्दी सामग्री कृत्रिम साधन अथवा मानसिक विचारोद्वेग से होना असम्भव है।

इस पुनीत मंत्र के अभ्यास में अन्य किसी प्रकार का तार्किक ऊहापोह, किसी प्रकार के मतभेद अथवा किसी प्रकार के बखेड़े की गुंजाइश नहीं और न इसके अन्दर कोई विशेष व्यक्तिगत अथवा संकीर्णता पाई जाती है।

जीवनदात्री गायत्री -सर एस॰ राधाकृष्णन-

यदि हम इस सार्वभौमिक प्रार्थना गायत्री पर विचार करें तो हमें मालूम होगा कि यह हमें वास्तव में कितना ठोस लाभ देती है। गायत्री हम में फिर से जीवन का स्त्रोत उत्पन्न करने वाली आकुल प्रार्थना है। यह एक खोज है। साहसिक अनुसन्धान है। धार्मिक जीवन या खोज से इसका जितना सम्बन्ध है उस सम्बन्ध में इसे अन्तिम नहीं कहा जा सकता। फिलॉसफर या दार्शनिक शब्द का अर्थ सचाई को सिखाने वाला नहीं है यह तो मार्ग दर्शन के लिए किसी एक के साथ सचाई की खोज है। यह जन समूह में बैठकर नहीं की जाती। यह तो अलग अलग अपने अन्तस्तल में प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं मौन शान्त और एकान्त होकर करनी होती है। अंतर्नाद की पुस्तक-बाइबिल-में एक स्थान पर कहा गया है-जब फरिश्ते खुदा के सामने आये, आध घण्टे तक सब शान्त रहे यह मौन-शान्त भाव यदि फरिश्तों के लिए आवश्यक है तो मनुष्य के लिए तो इसकी और भी आवश्यकता है। उसमें भी पूरी ईमानदारी और पूरी सचाई चाहिए। ध्यान तो केवल साक्षात्कार है-अपनी आत्मा के साथ। इसी में तो हम अपनी आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को-सम्बन्ध कराने वाली गाँठ को देख सकते हैं। गायत्री चाहती है कि हम लगातार इस खोज को जारी रखें।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118