(श्रीमती मेधावती देवी जी, नगीना)
गायत्री मंत्र ईश्वर उपासना के लिये मुख्य मंत्र है। मेरा तो इस पर अति अटूट विश्वास व श्रद्धा रही है मुझे बचपन की अपनी एक बात का स्मरण है अपने पास माला न होने के कारण मोटे से डोरे में 100 गाठें लगाकर मैं उसके गायत्री का जप करती थी एक दिन मेरे पिताजी ने मेरी माला देख ली और गायत्री में मेरा प्रेम समझ कर मुझे सच्चे मूंगों की माला दी थी। गायत्री जाप से मुझे ऐसा भासने लगता है मानो मैं अपने प्यारे पिता से बातें कर रही हूँ अथवा अपना कण्ठस्थ पाठ सुना रही हूँ। जब-2 मुझे आपत्तियों का सामना करना पड़ा तब-2 मैं गायत्री मंत्र द्वारा अपने प्रभु के समीप चली जाती हूँ और मुझे विश्वास होने लगता है कि अवश्य पिता मेरे दुख सुन रहें हैं और अवश्य निवारण करेंगे । एक बार नहीं अनेक बार मैं अपने पुत्र के इधर उधर फिरने और कुछ कार्य न करने से अति दुखित थी तब भी मैंने प्यारे पिता को स्मरण करके गायत्री माता की शरण ली और विधिपूर्वक इसका अनुष्ठान किया। (जिसकी विधि अखण्ड ज्योति में लिखी है) उसका चमत्कार आश्चर्यजनक हुआ जिस दिन प्रातःकाल मैं यज्ञ करने वाली थी रात्री भर यही विचार रहा कि यज्ञ में सम्मिलित होना उसका अति आवश्यक था और आत्मा से आवाज आ रही थी कि प्रातः वह कहीं से आ जावेगा प्रातः यज्ञ की तैयारी में मैं लग रही थी और उसके आने की ऐसी प्रतीक्षा लग रही जैसी सूचना आने पर लगी रहती है यज्ञ आरम्भ होने वाला था, वश देखती हूँ कि मेरा पुत्र सतीशचन्द्र आँगन में मेरे सन्मुख खड़ा है। इस प्रकार के चमत्कारिक अनुभव मुझे अनेकों बार हुए है।
प्राचीनकाल में सन्तान न होने पर पुत्रेष्टी यज्ञ किया करते थे। महाराजा अश्वपति ने सन्तानोत्पत्ति के लिये गायत्री मन्त्रों से यज्ञ किया था जिसके फल से एक कन्या उत्पन्न हुई जिसका नाम भी अश्वपति ने गायत्री के सदृश्य सावित्री रक्खा था। राजा जनक के जमाने में जब जनकपुरी में अकाल पड़ा और प्रजा भूखी मरने लगी तब जनकजी ने वर्षा होने के लिये गायत्री यज्ञ किया जिसके फलस्वरूप वर्षा भी हुई और सीताजी की उत्पत्ति भी हुई। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। गायत्री मंत्र का जप तथा यज्ञ करने से साँसारिक सफलता के साथ-2 हमारा ईश्वर भक्ति में भी प्रेम बढ़ता है मन के एकाग्रचित्त होने में अति सहायता मिलती है और आत्मा को एक विशेष प्रकार की शान्ति प्राप्त होती है यह आत्मशान्ति ही मनुष्य जीवन की सच्ची सफलता है।
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