श्री स्वामी दयानन्द के जीवन में-
श्री स्वामी जी महाराज के जीवन-चरित्र (उर्दू) प्रथम संस्करण (Edition) बड़ी (Size) आकृति से उद्धृत।
इस गायत्री जप को स्मृतिकारों से ही इतना महत्व दिया गया है, यह बात नहीं वर्तमान युग के विद्या और बुद्धि पर आश्रित (Rationaclistic) धर्म के प्रचारक महर्षि दयानन्द भी इस गायत्री जप के महत्व को स्वीकार करते हैं। ग्वालियर में भागवत सप्ताह मनाये जाने के अवसर पर राजाजी की ओर से स्वामीजी से इसके माहात्म्य को पूछा गया तो स्वामी जी ने उत्तर दिया।
गायत्री पुरश्चरण करना चाहिये।
जयपुर रियासत में सच्चिदानन्द को स्वामी जी ने ईश्वर उपासना के मन्त्र का उपदेश दे रखा था इसलिए वह सायंकाल सूर्याभिमुख होकर उस मन्त्र का जप किया करता था यह मन्त्र गायत्री मन्त्र ही था।
मुल्तान में उपदेश के समय स्वामी जी ने गायत्री मंत्र का उच्चारण किया और कहा कि यह मंत्र सब से श्रेष्ठ है। तथा यह भी बतलाया कि चारों वेदों का यही मूल गुरुमन्त्र है। आदि काल में सभी ऋषि मुनि इसी का जप किया करते थे।
एक बार गायत्री सम्बन्धी किसी पूछे गये प्रश्न का उत्तर फर्रुखाबाद के पण्डितों को श्री स्वामी जी ने इस प्रकार दिया था।
गायत्री का जाप वेदोक्त रीति से करना चाहिये तभी अच्छा फल मिलता है। कारण-उसमें गायत्री के अर्थानुसार आचरण करना लिखा है।
रियासत जयपुर के इलाके के हीरालाल रायाल जो माँस, मदिरा का सेवन करते थे। उन्हें इस कुटेव से हटाकर गायत्री याद कराई। उन्हें रुद्राक्ष की माला और भस्म धारण कराई सन्ध्या तथा गायत्री की विधि भी पूरी बतलाई।
स्वामीजी की आज्ञानुसार अनूपशहर, दानपुर, कर्णवास, अहमदगढ़, रामघाट, जहाँगीराबाद से अनुमानतः चालीस के लगभग विद्वान् ब्राह्मण गायत्री का जाप करने के लिए बुलाये गये और जप अर्ध शुक्लपक्ष में पूरा हो गया।
श्री स्वामीजी ने घोड़लसिंह आदि के यज्ञोपवीत कराये इस समय भी हवन तथा गायत्री का जप भी कराया हवन सब ही दिन हुआ तथा गायत्री का जप भी कराया हवन केवल सब ही दिन हुआ किन्तु जप 10 दिन तक लगातार होता रहा।
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