“मेरा वही अच्छा” यह समझना मूर्खता और “अच्छा वही मेरा” यह समझना बुद्धिमानी है।
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जीवन का एक भी क्षण सोने की करोड़ों मोहरों से नहीं खरीदा जा सकता। तो फिर ऐसे अमूल्य क्षणों को व्यर्थ खो देने से अधिक और क्या मूर्खता होगी?
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समय प्रकृति का खजाना है। घंटे और घड़ियाँ, ये उसकी मजबूत तिजोरी है। क्षण उसके मूल्यवान हीरे हैं। इन अमूल्य हीरों को व्यर्थ ही इधर-उधर न फेंक दो।
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देश सेवा और जाति सेवा ये यथार्थ ही अत्युत्तम है, परन्तु आत्म-सेवा सर्वोत्तम है।