तलवार की कीमत म्यान से नहीं बल्कि धार से होती है। इसी प्रकार मनुष्य की कीमत धन से नहीं, सदाचार से आँकी जाती है।
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कुपथगामी मनुष्यों के दोषों को उसके परिवार के सामने या उसके संबन्धी के सामने प्रगट करना उचित नहीं है, उचित अवसर और एकाँत स्थान पाकर उसे समझाना चाहिये।
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मनुष्य घोर आपत्तियों से नहीं मरता, वे तो उसके जीवन का निर्माण करती हैं।