शिक्षा संस्थान का आयोजन

December 1947

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कुछ दिन पूर्व तक अखण्ड ज्योति कार्यालय में एक ‘कर्मयोगी विद्यालय’ था, जिसमें सभी श्रेणी के लोग अपने व्यक्तिगत जीवन को शारीरिक, मानसिक और साँसारिक दृष्टि से सुख शान्तिमय बनाने की शिक्षा प्राप्त करने आते थे। कोई एक शिक्षा कोर्स इन सबके लिये नहीं था। छात्रों की इच्छा, आकाँक्षा और आवश्यकता के अनुरूप उनका पाठ्यक्रम एवं कार्यक्रम निश्चित किया जाता था। सर्वोपयोगी विषयों पर सबका शिक्षण साथ-साथ होता था और व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान का शिक्षण पृथक-पृथक होता था। अखण्ड ज्योति संपादक द्वारा ही इस विद्यालय के छात्रों की शिक्षा होती थी।

विद्यालय के नियम वही थे जो अपने घर में, घर वालों के लिये होते हैं। अखण्ड ज्योति अपने पाठकों को अपना स्वजन, कुटुम्बी मानती है, उनके लिये क्या नियम बनाये? जो नियम अखण्ड ज्योति संपादक के भाई, भतीजे, बुजुर्ग या रिश्तेदारों पर लागू होते हैं वही इन छात्रों पर भी लागू थे।

पिछले दिनों करीब दो सौ छात्र भारत के कोने कोने से इसमें शिक्षा प्राप्त करने आये। उन्हें यहाँ आने से जो लाभ हुआ, आने वाले की जीवन दिशा में जो परिवर्तन हुये, उनकी कठिनाइयों का जैसा सुँदर हल हुआ, उसकी प्रशंसा करते-करते वे विद्यार्थी और उनके घर वाले थकते नहीं। जो लोग यहाँ के निकट संपर्क में रहे हैं और जिन्होंने शिक्षार्थियों के पिछले जीवन और नये जीवन का परिवर्तन प्रत्यक्षतः देखा है। वे इस विद्यालय को ‘मनुष्य ढालने का कारखाना” या ‘मानसिक कायाकल्प’ का अस्पताल कहा करते हैं। कई सज्जनों का तो विचार है कि यहाँ किसी मंत्र की शक्ति से लोगों के मस्तिष्क को पलट दिया जाता है। हम इन सब बातों को अत्यधिक मानते हैं। उचित पथ प्रदर्शन और खरे व्यक्तित्व का जो अभाव दूसरों पर पड़ना चाहिये, उसी साधारण सी प्रक्रिया का लाभ यहाँ आने वाले सज्जनों को होता रहता है।

इन दिनों परिस्थितियाँ बड़ी विषम हो गई। खाद्य पदार्थ अत्यधिक महंगे हो गये, साम्प्रदायिक स्थिति से वातावरण अशान्त हो गया, जिस किराये के मकान में विद्यालय था वह मकान मालिक ने छीन लिया। और भी अनेकों अड़चनें ऐसी आईं जिनके कारण विद्यालय को स्थगित कर देना पड़ा। प्रतिमास दर्जनों प्रार्थना पत्र शिक्षार्थियों के आते रहते हैं पर उन्हें अपनी विवशता बताते हुये अस्वीकृत ही करनी पड़ती है। एक ओर छात्रों को होने वाले लाभ, मनुष्य जाति की सच्ची सेवा, अनेक अशान्त जीवनों का शान्ति की ओर अभिगमन, सात्विक गुणों का विस्तार और दूसरी ओर हमारी विवशतायें इनका द्वन्द्व युद्ध हमारे मनोलोक में, जितने दिनों से विद्यालय बन्द है तबसे लेकर अब तक बराबर हो रहा है।

आज की संक्रान्ति बेला में कितने ही प्रश्न हमारे सामने हैं, इसमें एक प्रश्न हिन्दू तत्वों के संगठन, संवर्धन और संशोधन का है। गत अंक में, ‘ब्रह्मणत्व और साधुता का जागरण’ तथा ‘इन प्रस्तावों पर विचार कीजिये’ शीर्षक दो लेखों में कुछ कार्यक्रम उपस्थिति किया गया था। अखण्ड ज्योति परिवार के कितनी ही उच्च आत्माओं ने उस कार्यक्रम को क्रिया रूप में सामने लाने की आवश्यकता का बड़े जोरदार शब्दों में प्रतिपादन किया है और हमें प्रेरणा है कि मथुरा में एक शिक्षण संस्था फिर चलाई जाये। हम स्वयं भी इसको अत्यन्त महत्वपूर्ण समझते हैं, तदनुसार अखण्ड ज्योति अगले वर्ष से अपने यहाँ एक शिक्षा संस्थान पुनः आरंभ करने जा रही है। इसमें निम्न कार्यक्रम होगा।

(1) पहले जैसे कर्मयोग विद्यालय में व्यक्ति गत आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्र आते थे-वे आवें। उनकी शारीरिक, मानसिक एवं साँसारिक आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें शिक्षा दी जावे।

(2) लोक सेवा द्वारा भी भगवान की प्राप्ति हो सकती है। इन सिद्धान्तों को सविस्तार शास्त्रीय पद्धति से साधु संन्यासियों परमार्थियों एवं लोक सेवियों के सम्मुख उपस्थित किया जायगा और उन्हें धर्म प्रचार एवं लोक सेवा की शिक्षा दी जायेगी।

(3) मंदिरों में देव मूर्तियों की शास्त्रीय विधि से पूजा करने के साथ-साथ पुस्तकालय, औषधालय, विद्यालय, व्यायामशाला, धर्म सभा इन पाँच कार्यों को सुचारु रूप से चलाने वाले पुजारी तैयार करना।

(4) ऐसे पुरोहित और पंडित शिक्षित किये जायेंगे जो सब संस्कार भली प्रकार करा सके और संस्कारों का महत्व तथा रहस्य यजमानों के हृदय पर अंकित कर सके। त्यौहारों, पर्वों, उत्सवों की ठीक रीति से मनवावें और उनके पीछे छिपी हुई महान् साँस्कृतिक परम्पराओं को समझावें। अपने यजमानों को सन्मार्ग पर चलाने के लिए प्रयत्न करें।

(5) साधारण विद्यार्थियों के लिए एक वर्ष का एक पृथक शिक्षा क्रम रहेगा। जिसमें उन्हें जीवन विज्ञान की शिक्षा दी जायेगी। स्वास्थ्य, मधुर भाषण, दाम्पत्ति जीवन, शिष्टाचार, शास्त्र विद्या, संगीत, अर्थ उपार्जन के सिद्धान्त, माता पिता एवं बड़े बूढ़े का सम्मान, सदाचार, धर्म परिचय, दुर्गुणों का निवारण, शत्रुओं को परास्त करना आदि अनेकों जीवनोपयोगी तथ्यों की शिक्षा देकर उन छात्रों को ऐसा बना दिया जावेगा कि जिससे भी उनका व्यवहार होगा सन्तोष और प्रसन्नता अनुभव किये बिना न रहेगा।

(6) नौ दिन का, आध्यात्मिक साधना प्रशिक्षण-इसे नौ बार का आध्यात्मिक यज्ञोपवीत धारण भी कह सकते हैं-इस साधना शिक्षण से शिक्षार्थियों को आत्मिक शक्तियों की जागृति एवं अभिवृद्धि होगी।

(7) परामर्श के लिए आने वाले व्यक्तियों को-उनकी कठिनाइयों के हल करने और उन्नति का पथ प्रदर्शन करने की शिक्षा तथा सहायता।

(8) दूरस्थ व्यक्तियों की समस्याओं का यत्रोत्तर द्वारा सुलझाव करना।

(9) चलते-फिरते पुस्तकालयों द्वारा जनता तक घर बैठे उत्तम शिक्षा पहुँचाना।

(10) पर्चे, पोस्टर, चिट, पुस्तिकाएं, चित्र आदि द्वारा जगह-जगह जनता के मस्तिष्कों में धर्म भावनाएं जागृत करना।

इस प्रकार दशमुखी कार्यक्रम के साथ इस वर्ष इस ब्रह्म विद्यालय को पुनः नई तैयारी के साथ चलाने की हमारी आन्तरिक इच्छा है। आज कल मथुरा में मकानों की समस्या अत्यन्त ही विकट है। किराये के लिए मकान मिलना दुर्लभ हो रहा है, जैसे ही यह व्यवस्था हुई वैसे ही विद्यालय आरंभ कर दिया जायेगा। जिन्हें उपरोक्त शिक्षाक्रम में किसी प्रकार की अभिरुचि हो वे आवश्यक जानकारी के लिए पत्र व्यवहार करें।


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