पृथ्वी की साम्राज्ञी

December 1947

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(श्री मालकम आरपेटर्सन)

महाकवि होमर ने युद्ध, वरजिल ने आयुध, होरेस ने प्रेम, दाँते ने नरक और मिल्टन ने स्वर्ग का गीत गाया। परन्तु मुझमें यदि इन सब सिद्ध कवियों की सम्मिलित प्रतिभा होती और मेरे हाथ में हजार तारों का तानपूरा होता तथा सारा संसार श्रोता बनकर सुनता तो मैं अपना हृदय खोल कर गौ का गीत गाना उसके गुण बखानना और उसकी महिमा का गान यावश्यचन्द्र दिवाकर अमर कर देता।

यदि मैं मूर्तिकार होता और संगमरमर पत्थर में टाँकी से अपने विचार मूर्तिमान कर सकता तो संसार की पत्थर की सब खाने छान कर विमलतम, शुभ्रतम, संगमरमर की पाटिया ढूँढ़ लाता और चन्द्र ज्योत्सना से पुलकित निरभ्र नील आकाश से मण्डित किसी मनोहर वन में निर्मल जल के समीप पक्षियों के मधुर गुँजारव के बीच बैठकर अपने प्रेम धर्म के पवित्र कार्य में लग जाता। उस शीतल शुभ्र संगमरमर का सारा खुरदरापन अपनी छेनी से छीलकर उसे इतना कोमल बना लेता कि उसमें से मेरे मन की गौ की मूर्ति निकल आती। उसके विशाल करुणामय नेत्र होते, वह अपने उभरे स्तनों में भरा हुआ पुष्टिकर पेय पान करने की प्रतीक्षा में खड़ी और प्रेम से उस अमृत के लेने वालों को सुख, आरोग्य एवं बल का आशीर्वाद देती हुई देख पड़ती।

गौ बिना ताज की महारानी है, उसका राज्य सारी समुद्र वायु मण्डल पृथ्वी है। सेवा उसका विरद है और जो कुछ वह लेती है उसे सौ गुना करके देती है।

यदि आज संसार की सब गायें मर जाएं या ठाठ हो जाएं तो फल ही मानव जाति पर भयानक संकट आ पड़े। रेल की सड़कें, बैंक, कपास की फसल इन सबके बिना हम लोग मजे में अपना काम चला सकते हैं, पर गौ के बिना मानव-जाति रोग, क्षय और अन्त में विनाश को प्राप्त होगी। गौ का हम सम्मान और स्तवन करे, जिसके वह योग्य है। मुझे आशा है कि ज्यों-ज्यों हम लोग ज्ञान के आगे बढ़ेंगे, करता और स्वार्थपरता छोड़ेंगे, त्यों-त्यों उन गौओं की हत्या करना और उनका माँस खाना भी त्याग देंगे, जो हमें बल देती, सुख पहुँचाती और हमारे बच्चों के प्राण बचाती है।

विशेषाँक शीघ्र ही देंगे।


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