(डॉ. गोपालप्रसाद ‘वंशी’ बेतिया)
मातृशक्ति (स्त्री) की महत्ता क्या है? प्राचीन काल के विद्वान और महात्मा लोग उसे किस दृष्टि से देखते थे? इन विषयों का ज्ञान कराने के लिये यह संग्रह किया गया है-
ऋग्वेद-हे स्त्री, तू घर की मालिक बनकर जा। वहाँ जितने पुरुष हों, सबके साथ रानी की तरह बात चीत कर।
रामायण-स्त्री वन को भी राजमहल से अधिक सुन्दर बना देती है।
महाभारत-स्त्री पुरुष की अर्द्धांगिनी है। उसकी सबसे बड़ी मित्र है। धर्म, अर्थ और काम का मूल है। जो उसका अपमान करता है, काल उसका नाश करता है। वह घर का धन और शोभा है। अतः उसकी सदा रक्षा करनी चाहिये। महा भाग्यवती और पुण्यात्मा स्त्री-पूजनीय है।
मनुस्मृति-जो पिता, भाई, पति और देवर कल्याण चाहते हैं, उनको अपनी पुत्री, बहिन, स्त्री और भौजाई का कभी अपमान नहीं करना चाहिये।
जहाँ स्त्रियों का पूजन होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। जहाँ उनका पूजन नहीं होता, वहाँ सब प्रकार के उत्तम कर्म भी निष्फल हो जाते हैं।
जिस घर में स्त्री पुरुष से और पुरुष स्त्री से संतुष्ट रहता है, वहाँ निश्चय नित्य कल्याण होता है।
स्वामी दयानन्द-भारत वर्ष का धर्म उसके पुत्रों के नहीं, उसकी पुत्रियों के प्रताप से स्थिर है। भारतीय स्त्रियों ने अपना धर्म छोड़ा होता, तो यह कभी का नष्ट हो गया होता।
दादाभाई नौरोजी-अपनी माता की देख−रेख के कारण ही मैं अपने सहचरों के बुरे प्रभाव से बचा।