प्रेम का दर्जा बल से अधिक है, ऊंचा है। बल वहाँ हारता है, प्रेम वहाँ सफल होता है। बल प्रयोग में हराने का भाव होता है, प्रेम प्रयोग में सुधारने का।
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जो जितना ही विनयी होगा, उसकी वाणी और कृति में उतना ही बल, आकर्षण और प्रभाव होगा।