अब हम अपने जन्मसिद्ध अधिकारों को लेकर रहेंगे

December 1947

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परमात्मा के अमर पुत्र मनुष्य को असीम अधिकार प्राप्त है। सम्राटों के सम्राट परमात्मा का युवराज मनुष्य ऐसे देवी अधिकारों से सुसम्पन्न बनाया गया है, जिनके द्वारा उसे सृष्टि का मुकुट मणि होने का गौरव प्राप्त है। इन अधिकारों के फलस्वरूप उसे आत्मिक और भौतिक सम्पदाओं एवं समृद्धियों से भरा पूरा होना चाहिए। अनन्त, अखण्ड सुख शान्ति का भोगी होना चाहिए।

परन्तु आज विचित्र दशा है- शैतानी, आसुरी शक्तियों ने मनुष्य को उसके दैवी स्वभाव जन्म सिद्ध अधिकारों से वंचित कर दिया है। अज्ञान, अविवेक, प्रलोभन, भय, नैराश्य एवं संकीर्णता ने उसकी दिव्य दृष्टि का अपहरण करके उसे क्रूर, कुकर्मी, हिंसक, हत्यारा, धूर्त, मूर्ख, पाखंडी एवं मोहग्रस्त बना दिया है। सृष्टि का मुकुट मणि- धर्म को धारण करने वाला, महामानव आज निरीह एवं असहाय की तरह दुख, दरिद्र की असहनीय पीड़ाओं में जकड़ा हुआ तड़प रहा है।

अब हम इस स्थिति में रहने के लिए तैयार नहीं, इस शैतानी षड़यंत्र के विरुद्ध अब हम बगावत का झण्डा उठाते हैं। दुनिया अधिकारों की लड़ाई लड़ रही है, हम भी अपने अधिकारों की आवाज बुलंद करते हैं। जिसने हमें इस प्रकार पराधीन, लुँज पुँज, बना रखा है उसके विरुद्ध समस्त साधनों से लड़ेंगे और अब हम प्रण करते हैं कि अपने जन्मसिद्ध अधिकारों को दैवी गुणों को प्राप्त करके रहेंगे।


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