सुरक्षा और पुनर्निर्माण के लिए

December 1947

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हम एक लम्बी अवधि के उपरान्त पराधीनता के पाशों से मुक्त हो रहे हैं। इस मुक्ति के साथ-साथ अनेकों उत्तरदायित्व ऊपर आये हैं। कुछेक शैतान इस स्वाधीनता को नष्ट करने पर तुले हुए हैं, इन षड़यंत्रों और आक्रमणों का मुकाबला करके इतने बलिदानों के पश्चात प्राप्त हुई स्वतन्त्रता की रक्षा करना है। दूसरी ओर अपनी शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक, आर्थिक निर्बलताओं को दूर करना है। शोषकों के हाथ में लम्बे समय तक हमारी राजनैतिक बागडोर रही है इसका प्रभाव व्यापक हुआ है। चतुर्मुखी अवनति हुई है। हमारी जातीय एकता एवं संस्कृति की दीवारें हिल गई हैं, उनमें दरारें पड़ गई हैं। चारों ओर उजाड़ पड़ा हुआ है। इसे हरा-भरा बनाये बिना जनता को वह सुख शान्ति नहीं मिल सकती जो स्वतंत्रता की प्राप्ति के साथ मिलनी चाहिए।

आक्रमण करना आसान है पर आक्रमणकारियों के इरादों को विफल कर देने का आयोजन कठिन है। किसी चीज को तोड़ना बिगाड़ना आसान है पर उसका निर्माण करना कठिन है।

आज राष्ट्र के सामने (1) सुरक्षा और (2) पुनर्निर्माण के दो प्रधान कार्य उपस्थित हैं। विध्वंसक, दुष्टात्मा, स्वार्थी, दुर्जनों के यह प्रयास जारी हैं कि भारत की शक्ति, प्रतिष्ठा एवं सम्पन्नता बढ़ने से पूर्व ही नष्ट-भ्रष्ट हो जाय। यह कुचक्री, गुप्त और प्रकट रूप से भीतर और बाहर से अपनी घातें चला रहे हैं। इनको विफल बनाने के लिए बड़ी चतुरता, दूरदर्शिता, दृढ़ता और तत्परता की आवश्यकता है। साथ ही उजड़े हुए इस उपवन को फिर से हरा-भरा करने के लिए बड़ी मात्रा में आयोजन करने हैं, जिससे गरीबी, बीमारी, अविधा, अनैतिकता, अभाव, अन्याय आदि की चक्की में पिसती हुई जनता, अपनी चिर पीड़ा से छुटकारा पा लें।

निस्संदेह सुरक्षा और पुनर्निर्माण के दोनों कार्यों को पूरा करने में सरकार का बहुत बड़ा भाग है। शासन तंत्र और सुसंचालित होने से इन दोनों महान कार्यों के पूरा होने में बहुत सुविधा हो सकती है, परन्तु यह समझना भूल है कि केवल मात्र सरकार ही इन कार्यों को पूरा कर लेगी। कोई सरकार कितनी ही मजबूत या सुयोग्य क्यों न हो पर उसकी मर्यादा सीमित है। भौतिक उपकरणों पर अधिकार, व्यवस्था नियंत्रण एवं उनका प्रयोग करना बहुत हद तक सरकार के हाथ में है। पर इतने मात्र से इन दोनों महान कार्य पूरे नहीं हो सकते।

मनुष्य दो पदार्थों से मिलकर बना है एक स्थूल दूसरा सूक्ष्म। शरीर और धन सम्पत्ति स्थूल है और मन, बुद्धि अन्तःकरण सूक्ष्म है। मोटी दृष्टि से जो कुछ स्थूल है वही मनुष्य दिखाई पड़ता है। पर वस्तुतः बात ऐसी नहीं है। सूक्ष्म की शक्ति और सत्ता अनन्त है। उस सूक्ष्म की ही प्रेरणा से मनुष्य की समस्त क्रियाएं होती हैं और उन्हीं के आधार पर उसकी बाह्य स्थिति का निर्माण होता है। सरकारें मनुष्य के स्थूल भाग को स्पर्श कर सकती हैं। पर सूक्ष्म तक उसकी पहुँच बहुत कम है। व्यक्तिगत चरित्र, आहार-विहार, रहन-सहन, दिनचर्या, लेखन, भाषण, व्यसन, धर्म, सम्प्रदाय, त्याग, उदारता, अनुदारता, स्वभाव चरित्र, रुचि, इच्छा, अभिलाषा, जीविका, व्यवसाय, मनोरंजन, अर्थ संचय, कर्त्तव्य पालन, जीवन का सदुपयोग, दुरुपयोग आदि अनेकों क्षेत्र ऐसे हैं जिन पर सरकार का नियंत्रण प्रायः नहीं के बराबर है। इन क्षेत्रों में कौन व्यक्ति किस दिशा में चल रहा है, इसकी देख रेख रखना सरकार की समीक्षा से परे है। वह तभी कुछ रोक लगा सकती है जब कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से दूसरों को हानि पहुँचा रहा हो। लेकिन इन सब गतिविधियों से अप्रत्यक्ष रूप से उस व्यक्ति का तथा समाज का जो भयंकर हित अनहित होता है उसकी स्पर्श करने में सरकार असमर्थ है।

यह बात भली प्रकार जान लेने की है कि इस संसार में जो कुछ स्थूल है उसकी मूल में सूक्ष्म काम करता है। शरीर और सम्पत्ति की, व्यक्ति और समाज की उन्नति अवनति एवं भली बुरी क्रियाएं मनुष्यों के अन्तःकरण में निवास करने वाले व्यक्तिगत विचारों भावों एवं सिद्धान्तों के ऊपर निर्भर रहते हैं। इसलिए जो शक्ति का अकूट भण्डार है, वह तो सरकार की पहुँच से बाहर ही रह जाता है। अन्तःकरणों में निवास करने वाले विश्वास, आदर्श और विचार ही जन रुचि को बनाते हैं और उन जन रुचि के पीछे प्रजातंत्रों सरकारों को चलना पड़ता है।

इस जन रुचि का निर्माण करना धर्म का काम है। ब्राह्मणों को महाराज अर्थात् महान राजा कहा जाता है क्योंकि राजा प्रजा के भौतिक सामग्री पर अधिकार रखता है, पर ब्राह्मण-धर्म और दर्शन द्वारा जन साधारण के अन्तःकरणों को, चरित्रों का, स्वभावों का, आदर्शों का निर्माण करते हैं, जन रुचि की दिशा मोड़ने का कार्य उनके हाथ में होने के कारण शक्ति का अन्तिम, अटूट स्त्रोत भी उनके हाथ में होता है, इसीलिए वे महाराज कहलाते हैं।

आज हमारे ऊपर बड़ा भारी उत्तरदायित्व है। सुरक्षा और पुनर्निर्माण का बड़ा भारी काम सामने पड़ा है। सरकार अपना काम कर रही है। राजनीति के अनुभवी उस दिशा में कार्य प्रवृत्त हों।

साथ ही जन रुचि के निर्माण के लिए समस्त ब्रह्मतत्त्वों को अखण्ड ज्योति आमंत्रित करती है। यह क्षेत्र सरकारी क्षेत्रों से भी अधिक आवश्यक, स्थायी एवं सुदृढ़ परिणाम उपस्थित करने वाला है। ब्रह्म परायण आत्माओं आओ! अपने महान धार्मिक आदर्शों को जन-जन के अन्तःकरण तक पहुँचावें और हर एक नागरिक को ऐसा सुरुचि सम्पन्न बनावें कि वह राष्ट्र की सुरक्षा में सुदृढ़ चट्टान की तरह अटूट बने और पुनर्निर्माण में उस बीज का अनुकरण करे जो अपने को जला कर एक महान वृक्ष उत्पन्न करता है। विचार को! भूलो मत, राजनीति की अपेक्षा धर्म और दर्शन की शक्ति अनेक गुनी अधिक है। इसलिए आओ, इस महान शक्ति को जागृत करके अपने राष्ट्र को उन्नति के शिखर तक पहुँचा देने के लिए प्राण प्रण से प्रयत्न करें।


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