काम न करने वाला दस्यु चोर डाकू होता है।

December 1947

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(सुश्री कैलाश वर्मा बी.ए. प्रिवियस)

वेद के वचन-”अकर्मा दस्यु” में गहरी सत्यता है। जो कर्म करता है, मेहनत और परिश्रम करता है, उसे ही जीवित रहने का अधिकार है। जो काम नहीं करता, मुफ्त का माल उड़ाना चाहता है, या दूसरों के अर्जित धन सम्पत्ति या श्रम पर गुजर करना चाहता है, वह उस चोर डाकू से कम नहीं, जो मुफ्त में अधर्म द्वारा दूसरे की धन संपत्ति हजम करता है।

अकर्मा व्यक्ति अपने शरीर से पूरा कार्य न लेने के कारण रोगी, दीन हीन अल्पायु बनता है, आलस्य के कारण उसमें नाना प्रकार के शारीरिक विकार घर कर लेते हैं। हम प्रायः देखते हैं कि अनेक मोटे पेट वाले सेठ प्रातः से सायंकाल तक दुकानों की गद्दी पर बैठे 2 दिन काट देते है, शरीर से कोई भी कर्म नहीं करते, फलतः अनेक घृणित रोगों के शिकार बनते हैं। ये रोग एक दैवी सजा कहे जा सकते हैं। यदि हम अपने शरीर द्वारा कर्म करने की आदत डाल लें, तो निश्चय ही शारीरिक व्याधियों से मुक्त हो सकते हैं। स्वयं अपना कार्य करना, दूसरों के आसरे न रहना भी एक संन्यास है।

गीता का महान् सन्देश कर्मयोग है। एक सुप्रसिद्ध हिन्दी कवि ने लिखा है-

कर्म ही है, बस जीवन प्राण,

कर्म में बसते हैं, भगवान्।

महात्मा गाँधी के शब्दों में गीता का सन्देश केवल यही है-”कर्म बिना किसी ने सिद्धि नहीं जो कर्म छोड़ता है, वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है, वह बढ़ता है।” गीता कर्म को अनादि मानती है। हम कर्मयोगी बन कर ही मानव जीवन में सुखी, समृद्ध एवं शारीरिक दृष्टि से प्रसन्न बन सकते हैं।


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