गंगाजल की महिमा

December 1944

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गंगाजल में ऐसे अद्भुत गुण हैं जिन पर केवल हिन्दू ही नहीं अन्य मतावलम्बी भी मुग्ध हैं। इतिहास बताता है कि सभी धर्म वाले गंगा के उपयोग से हिन्दुओं की भाँति लाभ उठाते रहे हैं।

चौदहवीं शताब्दी में इब्नबतूता नामक यात्री भारत में आया था। उसने अपने यात्रा वर्णन में लिखा है कि-बादशाह मुहम्मद तुगलक के लिए दौलतावद से गंगाजल लाया करता था, “आईने अकबरी” नामक इतिहास ग्रन्थ में अबुल फजल ने लिखा है कि अकबर गंगाजल को ‘अमृत’ कहा करते थे, घर में हों या सफर में हमेशा वे गंगा जल ही पीते थे। जब अकबर आगरा या फतेहपुर सीकरी रहते थे तब गंगाजल सोरों से आता था और जब दिल्ली या पंजाब की तरफ जाते थे तो हरिद्वार से आता था। भोजन के काम में जो पानी लिया जाता था उसमें भी गंगाजल मिला होता था।

फ्रांसीसी यात्री बर्नियर ने अपने ‘यात्रा विवरण’ में लिखा है कि—’औरंगजेब चाहे दिल्ली रहते थे या आगरा उनके खाने-पीने की चीज़ों में गंगाजल जरूर रहता था। सफर में भी वह साथ जाता था। अकेले बादशाह ही नहीं दरबार के और अफसर भी गंगाजल दस्तेमाल करते थे।’ एक दूसरे फ्रांसीसी यात्री टैवर्नियर जो मुसलमानी शासन काल में भारत भ्रमण करने आया था उसने भी लिखा है गंगाजल के गुणों से प्रभावित होकर बहुत से बादशाह और नवाब उसे बराबर प्रयोग करते थे। ब्रिटिश सेना के कप्तान एडवर्ड मूर जिन्होंने टीपू सुलतान के साथ युद्ध में भाग लिया था लिखा है कि शाहनबर के नवाब सिर्फ गंगाजल ही पीते थे। ‘रियाजु-स-सलातीन’ नामक ग्रन्थ में गुलाम हुसैन ने लिखा है कि-स्वाद, मधुरतन और हल्केपन में गंगाजल के मुकाबले कोई जल नहीं, उससे मुसलमान भी वैसा ही लाभ उठाते हैं जैसा कि हिन्दू।

टैवर्नियर ने लिखा है कि-हिन्दू लोग विवाह शादियों के अवसरों पर अपने अतिथियों को गंगा जल भी पिलाते हैं। जो जितना अधिक गंगाजल पिला सकता है वह उतना ही अमीर समझा जाता है। क्योंकि दूर देश से उसे मँगाने में बहुत खर्चा पड़ता है। मराठी पुस्तक “पेशवाईच्या सावलींत” से पता चलता है कि गढ़मुक्तेश्वर और हरिद्वार से पेशवाओं के लिए गंगाजल जाया करता था। एक वहँगी गंगाजल पूना तक पहुँचने में बीस रुपया खर्च हो जाते थे।

बौद्ध लोग भी गंगा का अत्यंत आदर करते थे। जब भूटान का युद्ध समाप्त हो गया तो तिब्बत के तूशीलामा ने एक दूत भेजकर वारेन हेस्टिंग्स से गंगा किनारे कुछ जमीन माँग ली और वहाँ पर एक मन्दिर तथा मठ बनवाया। लामा का कहना था हिंदुओं की ही तरह बौद्ध भी गंगाजी को परम पुनीत मानते हैं।

प्राचीन काल में गंगाजल विदेशों में भी काफी मात्रा में जाया करता था। क्योंकि भारत से बाहर के लोग भी उसके अद्भुत गुणों से परिचित हो चुके थे। स्वास्थ्य को बढ़ाने के और रोगों को नाश करने की आश्चर्यजनक शक्ति गंगा के पानी में है। अब भी हरिद्वार और ऋषिकेश से गंगाजल डिब्बों में भरकर पार्सलों द्वारा दूर देशों के लिए भेजा जाता है।

गंगा के द्वारा कृषि की सिंचाई तथा नावों द्वारा व्यापार होने के कारण उसका असाधारण अधिक महत्व था। गंगा के कगार पर रहने वाली जनता हमेशा खुशहाल रहती थी क्योंकि संसार के जितने उपजाऊ भूखंड है उसमें गंगा का कगार सर्वश्रेष्ठ है यही कारण है कि भारतवर्ष की चालीस करोड़ जनता का एक तिहाई से भी अधिक भाग अर्थात् करीब 15 करोड़ मनुष्य गंगा के कगार में रहते हैं। रोगों का आक्रमण भी इस भूखंड पर सब से कम होता है। गंगा की महिमा अपार है।


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