इस्लाम और गौ वध

December 1944

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(लेखक-श्री हरिश्चन्द्र मित्तल, कुँजरोद)

हिन्दू धर्म में तो गौ वध वर्जित है ही, किन्तु इस्लाम धर्म में भी गौ के लिए वही स्थान सुरक्षित है जो हिन्दू धर्म में। भले ही मुसलमान उसका पालन न करें। प्रस्तुत लेख में इसी बात को सिद्ध करने की चेष्टा की गई है।

बाबर ने अपने पुत्र हुमायूँ को एक आज्ञा पत्र लिखा था (जो अभी भी भोपाल राज्य के राजकीय पुस्तकालय में मौजूद है) जिसमें राजनीति की अन्य बातों का उल्लेख करते हुए गौ वध निषेध की ओर भी अँगुलि निर्देश किया था, उसका आवश्यक अंश नीचे दिया जाता है, “विशेष कर गौहत्या से परहेज करो क्योंकि ऐसा करने से तुम भारतीयों के हृदयों पर विजय पा सकोगे”

सुप्रसिद्ध इतिहासकार मि0 हंटर का कथन है कि मुगल राज्य में लगभग दो सौ वर्षों तक भारत भर में एक भी गौ नहीं मारी गई।

फ्राँसीसी यात्री डॉ0 वेटीनर और डॉ0 वरने (शाही हकीम) ने क्रमशः जहाँगीर और शाहजहाँ के शासन प्रबन्ध का वर्णन करते हुए लिखा है-”राज्य में पशुओं की कमी हो जाने से गौ हत्या बिलकुल बन्द कर दी गई थी।”

विंसेट स्मिथ ने अर्ली हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में लिखा है—”अकबर ने अपने साम्राज्य में गौ वध करने वालों के लिये प्राणदण्ड की व्यवस्था की थी।

सुलतान नासिरुद्दीन खुसरो के राज्य में गौ वध बन्द था।

आइने अकबरी में लिखा है—”इस्लाम धर्म में कठोरता कदापि समीचीन नहीं है। इसलिये समस्त आज्ञाएं सरल रखी गई हैं। गौ वध कठोरता की सीमा होने के कारण इस्लाम से विरुद्ध है।

मैसूर पतन होने पर मैसूर नरेश की लाखों गौएं हैदरअली के हाथ लगीं। हैदरअली ने उन गायों से अपनी गायों की संख्या बढ़ा ली। राज्य के विभिन्न स्थानों में साठ हजार बलवान साँड थे। टीपू सुल्तान ने इस विभाग की और भी उन्नति की। उसने गौ रक्षा के लिए कई आज्ञापत्र निकाले और उनके आहार-विहार का उचित प्रबंध किया। वर्षान्त में गणना के लिए स्वयं उपस्थित रहता था।

अकबर दी ग्रेट मुगल में लिखा है कि—”मुसलिम राज्य के प्रारंभिक काल से लेकर सुलतान फीरोजशाह तुगलक के समय तक कसाइयों पर 12 जीतल प्रति गाँव कर लिया जाता था।

आइने अकबरी में लिखा है, सम्राट अकबर ने केवल गौ वध ही बन्द न किया था बल्कि अपने एवं अपने पुत्रों के जन्म दिवस और अपने राजगद्दी पर बैठने के दिन पशु वध की मनाही भी करवा दी थी। उस समय घी और दूध क्रमशः एक आने और एक पैसे सेर बिकता था।

मौ0 ख्वाजाहसन निजामी ने लिखा है—गौहत्या इस्लाम धर्म का स्तम्भ नहीं है मेरी अपील है कि हमें गौ वध सर्वथा त्याग देना चाहिए ऐसा करने से हमारे धर्म में कोई बाधा नहीं आ सकती।

अफगानिस्तान के राजा अमीर हबीबुल्लखाँ सन् 1911 में भारत आये थे आपने कहा था—हमें गौ वध नहीं करना चाहिये। कोई मुसलमान कहीं भी ऐसा कार्य न करे जिससे हिन्दू जनता को दुःख पहुँचे।

उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है मुसलमानी शासन काल में गौरक्षा का कितना महत्व था। यह तो हुए मुसलिम शासकों के विचार। अब इस्लाम तथा ईसाई धर्म की धार्मिक पुस्तकों के विचार भी देख लीजिये।

गौओं को मारना इस्लाम धर्म के आचरणों में शामिल नहीं है—फतव ए-इ-हुमायूँ नी

जो बैल काटता है वह उस मनुष्य की तरह है जो मनुष्य मारता है—(जबूर बाब 46, 50)

मैं तेरे घर का बैल न लूँगा और न तेरे बाड़े का बकरा। क्योंकि समस्त प्राणी मेरे हैं। क्या मैं बैलों का माँस खाता हूँ या बकरों का रक्त पीता हूँ?—(तौरेत-बाब 18, 19)

हरगिज नहीं पहुँचते अल्लाह के पास गोश्त और खून। हाँ पहुँचती है अल्लाह के पास तुम्हारी परहेजगारी। —कुरान (रुरए हज)

हदीस में लिखा है—पेड़ काटने वाला, मनुष्य बेचने वाला, गौ वध करने वाला और पर स्त्री गमन करने वाला, ये अपने बुरे आचरणों के कारण नरकगामी होंगे।

मैं कुरबानी नहीं चाहता बल्कि रहम चाहता हूँ तू माँस न खा शराब न पी और न वह काम कर जिससे तेरा भाई तकलीफ उठावे।-इंजील

माँस से परहेज करो। आदत पड़ने पर इसका छूटना शराब की तरह कठिन है।

—हजरत उमर।

इन सब बातों पर विचार करने से प्रतीत होता है कि गौ जैसी सर्वोपकारी निधि का विनाश करना न तो धर्म सम्मत है न विवेक सम्मत। इसलिये गौ की रक्षा करना ही सब लोगों के लिए उचित है।

इन सब बातों पर विचार करने से प्रतीत होता है कि गौ जैसी सर्वोपकारी निधि का विनाश करना न तो धर्म सम्मत है न विवेक सम्मत। इसलिये गौ की रक्षा करना ही सब लोगों के लिए उचित है।

सात्विक सहायताएं

इस मास ज्ञान यज्ञ के लिए निम्न सहायताएं प्राप्त हुई। अखण्ड-ज्योति इन महानुभावों के प्रति अपनी आन्तरिक कृतज्ञता प्रकट करती है।

10) श्री मानसिंह जी टका जोधपुर।

5) पं. शंभुप्रसाद जी मिश्र, हृदयनगर।

2) श्री ठाकुरप्रसाद सिंह जी नोतनवा।

1) श्री रामकृष्ण जी वर्मा, लखनऊ।

5) श्री चुन्नीलालजी वर्मा लखनऊ।

1) श्री देवराजजी सातों जोगर।

1) श्री गुलफामसिंहजी काशीपुर।

1) श्री गुलफामसिंहजी काशीपुर।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118