(आचार्य ध्रुव)
पिछले दस वर्षों से जिन समस्याओं को स्त्रियाँ सुलझाने का प्रयत्न कर रही है और जिन्हें वे इस नवयुग में आगे बढ़ाएंगी, वे स्त्रियों और पुरुषों दोनों के समान हित की समस्याएं हैं। वास्तव में भारतीय पुरुष और भारतीय स्त्री नाम की कोई दो अलग वस्तुएं नहीं हैं, जो भिन्न-भिन्न टापुओं में रहती हों। वे एक ही धरातल पर रहते हैं, उनके एक से हित हैं और एक से जीवन हैं। कार्य के इस पहलू पर मेरे जोर देने का कारण यह है कि मैं यह बतला देना चाहता हूँ कि यहाँ पास होने वाले किसी भी प्रस्ताव में सही या गलत का भाव स्त्रियों बनाम पुरुषों के आधार पर न प्रकट किया जाय, बल्कि सम्पूर्ण समाज हित के आधार पर प्रकट किया जाय। दुनिया में काफी तरह के युद्ध मौजूद हैं, जैसे धार्मिक युद्ध, साम्राज्यवादी युद्ध, श्रेणी युद्ध आदि। हमें अब स्त्री-पुरुष सम्बन्धी युद्ध पैदा करके इन युद्धों की संख्या न बढ़ानी चाहिए। मैं यह कह देना चाहता हूँ कि अब तक स्त्री-पुरुष युद्ध भारत वर्ष में नहीं है और न निकट या दूर भविष्य में उसके पैदा होने का ही डर है, अगर हम अपने जोश के वेग में यह न भूल गए कि शान्तिपूर्ण घर सभ्यता और संस्कृति का सर्वोच्च चिन्ह है। मैं इतना मूर्ख नहीं हूँ जो यह समझ लूँ कि कब्रिस्तान की शान्ति वास्तविक शान्ति है। लेकिन यह मैं जरूर समझता हूँ कि रोगी के रोग दूर करने के कई उपाय होते हैं जो सब एक से नहीं होते।
स्त्रियों की उन्नति के लिए यह आवश्यक नहीं कि वे पुरुषों से संघर्ष ही करें, यह कार्य प्रेम से भी हो सकता है।