सुचरित्र बन और धर्म में चल, अधर्म में मत चल। धर्मात्मा इस लोक और परलोक दोनों में सुख पाता है।
—लोक बग्गो।
सब पापों को छोड़ो। अच्छे गुणों का सम्पादन करो। अच्छे विचारों को धारण करो। यही बुद्धों की शिक्षा है।
—बुद्ध बग्गो।
हम सुख से जीवें, बैरियों से बैर न करें। जो हम से बैर करते हैं उन मनुष्यों से बैर रहित होकर रहें।
—सुख बग्गो।
हम अपरिग्रही होते हुए सुख से जीवें। जैसे देवता लोग अपने ही प्रकाश से आनंदित रहते हैं, उसी प्रकार हम भी प्रीति को ही अपना लक्ष्य समझें।
—सुख बग्गो।
आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है। विश्वासी पुरुष ही परम बन्धु है। निर्वाण ही परम सुख है।
—सुख बग्गो।
धीर, बुद्धिमान, शिक्षित, सदाचारी और श्रेष्ठ पुरुषों का संग करो। जिस प्रकार चन्द्रमा नक्षत्रों के मार्ग पर चलता है इसी प्रकार सत् पुरुष और ज्ञानी का अनुसरण करो।
—सुख बग्गो।
अपने को जीतने वाला समस्त प्रजा को जीतने वाले से अच्छा है। जो पुरुष आत्मजीत और नियमित आचार का है उसकी विजय को कोई पराजित नहीं कर सकता। न देव, न गंधर्व, न मार और न ब्रह्मा
—सहस्स बग्गो।