(महात्मा गाँधी)
वेद, उपनिषद्, स्मृतियाँ और रामायण तथा महाभारत सहित सारे पुराण हिन्दुओं के शास्त्र हैं। लेकिन यह ऐसी सूची नहीं है जिसमें कोई घटी-बढ़ी ही न हो सकती हो। हरेक युग और शताब्दी तक ने इसमें वृद्धि की है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि छपी हुई या हस्तलिखित मिलने वाली हरेक चीज़ शास्त्र नहीं है। उदाहरण के लिए, स्मृतियों में बहुत-सी ऐसी बातें हैं जिन्हें ब्रह्मवाक्य हरगिज नहीं माना जा सकता। यथार्थतः, जो शास्त्र कहे जाते हैं उनका संबंध मूलतत्त्वों से ही हो सकता है और वे उसी हृदय को अपील कर सकते हैं, जिसके ज्ञान नेत्र खुल गये हों। ऐसी किसी बात को ब्रह्मवाक्य नहीं माना जा सकता जिसकी तर्क-बुद्धि द्वारा परीक्षा न हो सके या आध्यात्मिक रूप में जिसका अनुभव न किया जा सकता हो। और फिर शास्त्रों का परिष्कृत संस्करण आपके पास हो तो भी आप को उनका व्याख्या की जरूरत तो पड़ेगी ही। सर्वोत्तम भाष्यकार कौन माना जायगा? निश्चय ही कोरे विद्वान सर्वश्रेष्ठ भाष्यकार नहीं माने जा सकते। विद्वत्ता तो होनी चाहिए, लेकिन उस पर धर्म का आधार नहीं होता, उसका आधार तो सन्तों और ऋषियों के अनुभवों, उनके जीवन और उपदेशों पर होता है। जब शास्त्रों के अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण सब भाष्य बिलकुल विस्मृत हो जायेंगे, ऋषियों और सन्तों के अनुभव तो तब भी स्थिर रहेंगे और आगे के अनेक युगों तक स्फूर्ति प्रदान करते रहेंगे।