चेहरे का सौंदर्य बढ़ाना

December 1944

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चेहरा सौंदर्य का प्रधान स्थान है। जिसके चेहरे पर कोमलता चमक तथा स्निग्धता होती है वह सुन्दर मालूम होता है और जो चेहरा रूखा, निस्तेज तथा सुस्त होता है वह अच्छी बनावट का होने पर भी कुरूप दिखाई पड़ता है। यदि झाँई, मुँहासे, फुन्सियाँ किल एवं झुर्रियों का पड़ना शुरू हो जाय तब तो रहा सहा सौंदर्य भी चला जाता है।

अधिक चिन्ता, शोक, पेट की खराबी, रक्त की अशुद्धता, निराशा, मनहूस स्वभाव, विषय वासना की ओर अधिक झुकाव, आलस्य या अत्यधिक परिश्रम चेहरे की कुरु पता का प्रधान कारण है। क्रोध, ईर्ष्या एवं खुदगर्जी की अधिकता से भी मुखाकृति बिगड़ जाती है। ऐसे ही कारण की प्रतिक्रिया से चेहरा मुंहासे, झुर्री, फुन्सी आदि से लटककर कुरूप होने लगता है। यदि उपरोक्त बातों से बचाव रखने का ध्यान रखा जाय तो चेहरे की कुरूपता से मनुष्य बचा रह सकता है और यदि कभी मुँह पर यह उपद्रव दिखाई देने लगें तो उपरोक्त बातों में सुधार कर देने से उनका आसानी से सुधार हो सकता है।

कुछ उपाय भी ऐसे हैं जिनकी सहायता से चेहरे की कुरूपता को हटाया जा सकता है। चेहरे की मालिश इस प्रकार के उपायों में प्रधान है। प्रातः काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर सह्य गरम पानी में एक खुरदरे तौलिये को भिगोकर धीरे-धीरे चेहरे के हर एक भाग को रगड़ना चाहिए। पाँच-पाँच मिनट बाद तौलिये को निचोड़ कर फिर दुबारा गरम पानी में डुबो लेना चाहिए। यह क्रिया पन्द्रह मिनट तक करनी चाहिए। इसके बाद पीली सरसों का शुद्ध तेल लेकर चेहरे के हर एक भाग पर उसकी मालिश करनी चाहिए। तेल की मालिश केवल उंगली के पोरुओ से नहीं पूरी हथेली और पूरी उंगलियों से करनी चाहिए। हथेली पर थोड़ा तेल लेकर दोनों हाथों की हथेलियों और उंगलियों तक उसे फैला लेना चाहिए तब फिर उससे मालिश करनी चाहिए। मालिश में एक बात का ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए कि नीचे की ओर से ऊपर की ओर जब मालिश की जाय तो दबाव अधिक रहे और जब ऊपर से नीचे की ओर हाथ आवे तो हाथ का दबाव हलका रहे। ऐसा करने से नीचे की ओर लटकी हुई त्वचा अपने स्थान पर सरक जाती है। ऊपर से नीचे की ओर दबाव देने से त्वचा के लटकने की आशंका रहती है।

मालिश करने के बाद उंगलियों से चेहरे के हर भाग को हलके-हलके थप-थपाना चाहिए। दोनों हाथों से दोनों ओर थप-थपाने से बचा देना चाहिए या बहुत ही हलके-हलके थपथपाना चाहिए। कारण यह है कि कनपटी वह स्थान है जहाँ से मस्तिष्क के कोमल तन्तु निकट हैं और नेत्रों की अन्तः शिराएं भी पास पड़ती हैं। इस स्थान पर जरा अधिक आघात लगे तो हानि होने की सम्भावना रहती है।

पानी से रगड़ना, तेल की मालिश और थपथपाना यह तीनों क्रियाएं मिलाकर आध घण्टे नित्य करनी चाहिए। पन्द्रह मिनट रगड़ना, दस मिनट मालिश और पाँच मिनट थप-थपाना। इसके बाद ताजे पानी से मुँह धो डालना चाहिए और कुछ देर दर्पण के सामने खड़े होकर अपने चेहरे का अवलोकन करते हुए “हमारा सौंदर्य बढ़ रहा है” ऐसी दृढ़ भावना करनी चाहिए। कभी-कभी उबटन भी करना चाहिए, सप्ताह में एक बार संतरे का टुकड़ा भी चेहरे पर रगड़ देना चाहिए। लापरवाही से कुरूपता का अधिक संबंध है। यदि मनुष्य सावधान रहे और उपरोक्त रीति से अपनी सुन्दरता बढ़ाने का प्रयत्न करता रहे तो निस्संदेह झुर्री, झाई, मुंहासे आदि दूर हो सकते हैं और चेहरे के सौंदर्य में बहुत उन्नति हो सकती है।


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