[श्री पं. ओंकारनाथजी तिवारी बेसड़ी फतहपुर]
केवल मन से विचार करने मात्र से कार्य पूरा नहीं हो सकता। संसार के महान से महान धर्म विचारकों द्वारा कार्य क्षेत्र में आकर पूरे हुए हैं।
जिसकी कार्य करने की शक्ति को थोथे विचारों ने मार दिया है उससे कुछ काम तो होता नहीं सिर्फ सोचता ही रहता है। दूसरी ओर कार्यकर्ता मनुष्य जहाँ भी कोई कार्य करने योग्य बात देखता है त्यों−ही कर बैठता है। नेपोलियन ने एक समय कहा था—’मेरा लोहे की तरह बलवान हाथ कलाई के सिरे में नहीं हैं, वरन् मस्तिष्क (क्चह्ड्डद्बठ्ठ) से जुड़ा हुआ है। यथार्थ में पूछो तो मेरा हाथ और विचार मिले हुए हैं। हाथ और कलाई में सम्बन्ध कुछ नहीं है”। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि नेपोलियन बोनापार्ट सरीखे उत्तम कार्यकर्त्ताओं को संसार ने अधिक उत्पन्न नहीं किया है जिनका लक्ष्य सदा ऊँची-2 बातों पर होता था और जो उनके करने के लिये बिलकुल सीधा निधड़क होकर जाता था। इसी गुण का होना विद्वान पैथागोरस ने ‘मानसिक बल के होने’ का चिन्ह कहा है।
कितना ही उत्तम विचार क्यों न हो जब तक वह कार्य के साथ नहीं मिलाया जायेगा तब तक निरर्थक ही है। कोरे विचार से ही कुछ नहीं होता—नरक में पड़े हुए व्यक्तियों के विचार भी स्वर्ग प्राप्त करने के ही होते हैं नरक वाले भी यही कहते हैं कि हम यहाँ आ ही गये हैं यह भाग्य का फेर है परन्तु नियत हमारी स्वर्ग जाने की थी। अतः ऐसी अच्छी नियम तो नरक वालों का भी हो सकती है। सफलता की प्राप्ति कर्त्तव्य करने से होती है केवल विचार मात्र से नहीं।