(कुमारी ईश्वरी देवी वर्मा, हैदराबाद)
प्राणी मात्र सुख की प्राप्ति और दुःख का अभाव चाहता है जो कर्म प्राणी करता है उसके फल को प्राप्त करता है। जो मनुष्य श्रेष्ठ कर्म करते हैं उन्हें सुख प्राप्त होता और जो मनुष्य दुष्ट कर्म करते हैं उन्हें दुख प्राप्त होता है। श्रेष्ठ कर्म करना मानव जाति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त कराने का साधन है। जो सुखी हैं, जिनको आत्म सन्तोष है उन्हें सुख फल प्राप्त हो रहा है यह सर्व साधारण भी समझते हैं, इतना समझते हुए भी मनुष्य श्रेष्ठ कर्म न करते हुए सुख रूप फल पाना चाहते हैं, तो सुख कहाँ प्राप्त होगा?
इसलिये मानवों का कर्त्तव्य सुकर्म करना और सुख फल पाना है। सारे संसार के मनुष्य सुख चाहते हैं दुःख से भयभीत होते हैं। यदि इस संसार में मानव जाति दुःख से तरना चाहती है तो उसको तरने की नौका, सुआचार, पवित्र विचार और श्रेष्ठ कर्म ही हैं। वेदों, धर्म शास्त्रों, की आज्ञा पालना मनुष्य का सुख साधन संचित करने का महान साधन है। मनुष्य सुख संतोष चाहते हैं तो प्रथम शुभ कर्म अपना कर, उसका फल प्राप्त करें। जो मनुष्य सुख तो चाहता है पर सुखदायक कर्म नहीं करता उस पर परम पिता परमात्मा भी कृपा नहीं करता। जो पुरुषार्थी हैं, सिंह के समान पराक्रम युक्त, पावक के समान पवित्र हैं, उन पर कृपा कारक परमात्मा का कृपा कारक हस्त सदा बना रहता है। और वे ही भीतरी तथा बाहरी दृष्टि से सदा सुखी रहते हैं।