प्रेम की व्यापकता

May 1942

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(ले.- श्री जगन्नाथ प्रसाद शर्मा)

प्रेम क्या है? प्रेम एक रसायन है, जो दो आत्माओं को पिघला कर एक स्वरूप बना देता है। जिसमें भिन्नता का भाव ही नहीं रहता। विज्ञानियों की भाषा में प्रेम का ही दूसरा नाम आकर्षण है, प्रेम की आत्मा का गुण है, इसका अलौकिक आनन्द ही आत्मा का सार है। हृदय को शुद्ध करने के लिए प्रेम से बढ़कर कोई वस्तु संसार में नहीं दिखाई देती।

संसार का कोई भी क्षेत्र इस प्रेम से रहित नहीं, ईश्वरीय ज्ञान, देश सेवा, पारिवारिक जीवन, राजनीति, कलाकौशल, सामाजिकता इत्यादि कोई भी कार्य प्रेम सम्राट की अनुमति बिना पूर्ण नहीं हो सकते। हाँ, यहाँ तक कहा जा सकता है कि इनमें से यदि प्रेम को निकाल दिया जावे तो इनकी सत्ता ही संसार में नहीं रह सकती और इन शुभ कार्यों का स्थान जघन्य प्रवृत्तियाँ ग्रहण कर लेंगी।

भगवद् प्राप्ति के विषय को लीजिये, जब तक हृदय की शुद्धि होकर भगवदीय प्रेम उत्पन्न नहीं होता, तब तक ऐसा कौन सा साधन है कि जिस से ईश्वर प्राप्ति हो जाय? ईश्वर प्राप्ति के कोई भी साधन जैसे नव प्रकार की भक्ति, अष्टाँग योग, ध्यान योग, तपयोग एवं अन्य साधनों में कौन सा साधन ऐसा है जो बिना प्रेम उत्पन्न हुए सफल हो सकता है, अतः भगवद् प्राप्ति के लिए अनन्य प्रेम का होना अनिवार्य है।

देश सेवा या देशोन्नति भी प्रेम की कृपा बिना पूर्ण होना असम्भव है। जब तक मनुष्यों के हृदय में देशानुराग जागृत न होगा, दीन और आर्त प्राणियों की आर्तनाद पर सहानुभूति न होगी, तब तक क्या यह आशा की जा सकती है कि देश के वीर नवयुवक देश की बलि वेदी पर जीवन बलिदान कर सकेंगे। देश का धनाढ्यवर्ग द्रव्य का मोह त्याग देश सेवा में अर्पण कर सकेगा, जन समाज अपनी वस्तुओं को देश सेवा में उपयोगी समझ कर देश के लिए त्याग सकेगा तथा देश को शुभकामना का लक्ष्य बना कर सहानुभूति प्रकट करेंगे और प्रार्थना कर सकेंगे। बिना देश प्रेम उत्पन्न हुए ऐसा होना नितांत असम्भव है।

पारिवारिक जीवन में जब तक प्रेम का साम्राज्य विद्यमान है, तब तक ही वह नन्दन कानून है, स्वर्गीय आनन्द का स्थान है, जब परिवार के एक मनुष्य के भी हृदय में प्रेम का अभाव हो जाता है तो पारिवारिक जीवन दिन प्रतिदिन क्षीण होता चला जाता है और एक दिन वह समय आ पहुँचता है जब स्वर्गीय सुख भीषण यातनाओं में परिणित हो जाता है। माता-पिता सन्तान के लिए कितने कष्टों का सामना करते हैं, क्या वह प्रेम का परिणाम नहीं है। भाई, भाई के लिए मित्र, मित्र के लिए अपना जीवन संकट में डाल देता है। क्या यह प्रेम के बिना सम्भव है? पति-पत्नि का घनिष्ठ सम्बन्ध क्या प्रेम का फल नहीं है, सफल पारिवारिक जीवन के लिए प्रेम का होना अनिवार्य है।

सामाजिक उन्नति और कला कौशल की उन्नति भी तब तक होना सम्भव नहीं जब तक इनके प्रति प्रगाढ़ प्रेम उत्पन्न न हो जाय, किसी भी कार्य को करने का विचार भी उत्पन्न जब होगा जब उसके प्रति प्रेम भावना का उदय होगा, संसार के महान आविष्कारक यदि आविष्कार की अपेक्षा करते तो क्या उनके कार्यों से संसार चकित हो सकता था, यहाँ तक कहा जा सकता है कि प्रेम संसार के समस्त पदार्थों में ईश्वर की तरह व्यापक है और प्रेम ईश्वर का ही दूसरा नाम है।


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