जापान का अमर शहीद मिचिजेन बड़ा ही प्रसिद्ध देशभक्त था। उसने प्रजा की सेवा के लिए अपने जीवन की बाजी लगा दी और जब तक जीया प्रजा की भलाई के कार्यों में लगा रहा। राजा को मिचिजेन के कामों में राजद्रोह की गंध आई। उसने इस देशभक्त को मरवा डाला।
मिचिजेन जब मरने लगा तो उसने अपने अभिन्न मित्र गेंजो को बुलाया और अपने एक-मात्र सात वर्षीय बालक को उसकी गोदी में डालते हुए कहा—मित्र, यह मेरी अमानत है—इसकी रक्षा करना। गेज्जो की आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी, उसने बालक को उठाकर छाती से लगा लिया और कहा—मैं सब प्रकार इसकी रक्षा करूंगा। गेंजो बालक को घर ले आये वे एक पाठशाला में अध्यापक थे। अपने सगे पुत्र की तरह उसे पास रखकर पढ़ाने लिखाने लगा।
राजा का कोप अभी शान्त नहीं हुआ था। उसे पता लगा कि अध्यापक गेंजो की संरक्षता में मिचिजेन का सात वर्षीय बालक मौजूद है। उसने इस बालक को भी मरवा डालने का निश्चय किया। सिपाही के हाथों गेंजो के पास राजा ने हुक्म भेजा कि “ परसों दिन के दस बजे मिचिजेन का लड़का स्कूल में हाजिर रहना चाहिए।”
हुक्म पाते ही गेंजो समझ गया कि अब बालक के लिये क्या होने वाला है। वह बड़े सोच विचार में पड़ा हुआ था कि उसी समय एक स्त्री अपने बालक को पाठशाला में भर्ती करने लाई। गेंजो के होठ खिल गये। यह बालक मिचिजेन के बालक से रंग रूप में बिल्कुल मिलता जुलता था। उसने तुरन्त ही उसे भर्ती कर लिया और निश्चय किया कि जब राजा के आदमी आवेंगे तो इसी बालक को आगे कर दूँगा।
नियत समय पर एक बड़ा अफसर जल्लादों को साथ लिए हुए पाठशाला आया। उसने अध्यापक से पूछा-’मिचिजेन का लड़का कहाँ है?’ गेंजो ने नये भर्ती हुए बालक की ओर उंगली उठा दी। अफसर ने भी कहा- ‘हाँ, यही बालक है, मैं इसे जानता हूँ।’ जल्लाद लड़के को उठा ले गये और एकान्त में ले जाकर उसका काम तमाम कर दिया। गेंजो कुछ समझ न सका कि यह नया बालक क्यों लाया गया और क्यों अफसर ने कहा कि-’मैं इसे जानता हूँ।’
अफसर अपने घर पहुँचा। उसकी स्त्री पत्थर का कलेजा किये बैठी थी। स्त्री ने पति से पूछा- “मिचिजेन का बालक बच गया?” अफसर ने कहा- “ हाँ बच गया, पर उसकी जगह तुम्हारा पुत्र चला गया।” माता की आँखों में से पुत्र प्रेम बह चला, उसने अंचल में मुँह छिपा कर कहा-”सो मैं जानती हूँ, मेरा बेटा परोपकार के लिए गया।”
अफसर ने जानबूझ कर अपने बालक को अपनी स्त्री के हाथों पाठशाला में भेजा था। वह जानता था कि ऐसा करने से मिचिजेन जैसे देश-भक्त का बालक बच सकता है। एक सच्चे देश सेवक की अमानत को बचाने के लिए अफसर को इतना करना आवश्यक मालूम हुआ था।