अखण्ड प्रेम

May 1942

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(श्री ॰ मंगल चंद भंडारी, अजमेर)

वे दोनों अनाथ बालिकाएँ लन्दन के पश्चिमी भाग की एक छोटी सी बस्ती में अपनी झोंपड़ी में रहती थी। अनाथ थीं तो भी वे साहसी थीं। अकेलापन उन्हें दुःख न दे सका। उन्होंने अपनी उन्नति जारी रखी। स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति सभी विषयों में वे दत्तचित्त रहीं। गरीब घराने की ये अनाथ बालिकाएँ जब वयस्क हुई तो सब की दृष्टि में वे सुगन्धित स्वर्ण के समान आकर्षक और आदरणीय बन गई। अद्वितीय रूप सौंदर्य और उच्च मानवीय गुणों से संस्कारित उनका स्वभाव सर्वत्र प्रशंसनीय बना हुआ था।

बड़ी का नाम था जेन और छोटी एनी। दोनों में तीन-चार वर्ष का फर्क था तो भी वे देखने में बिलकुल एक सी प्रतीत होती थी। जैसे उनका शरीर और रूप सौंदर्य एक सा था, वैसे ही उनका-हृदय भी उच्च गुणों में परिमार्जित एक ही प्रकार का था। दोनों में प्रेम इतना था मानो एक ही आत्मा ने दो स्वरूप धारण कर रखें हों।

समय की गति के साथ उनकी आयु बढ़ने लगी। अब वे बालकपन और किशोरावस्था को पार करके यौवन के क्षेत्र में पदार्पण कर चुकी थीं। जेन अपने धार्मिक अध्ययन में लगी हुई थी किन्तु ऐनी के मन में यौवन की मादक मदिरा छलकने लगी। उसका मन चार्ल्स नामक एक युवक की तरफ आकर्षित हुआ। युवक ऐनी के अनुरूप ही था। उच्च शिक्षा, उत्तम स्वास्थ्य और अन्य सद्गुणों के कारण ही समाज में वैसा ही आदरणीय था, जैसी कि वे दोनों बहनें। प्रतीत होता था कि ईश्वर ने यह जोड़ा बड़ी चतुराई के साथ अपने हाथों बनाया हो। दोनों का प्रेम बढ़ते एक दिन प्रणय संबंध में परिणत हो गया। ईश्वर की इच्छा दोनों अधिक दिनों तक सोने के दिन और चाँदी की रातें न देख सके। काल की कराल गति ने दोनों को एक दूसरे से अलग कर दिया। चार्ल्स सेना में भरती हो गया और शीघ्र ही एक घमासान युद्ध में सेना का अधिनायकत्व करने के लिए चला गया। ऐनी ने छाती पर पत्थर रखकर चार्ल्स को विदाई दी और एक सती साध्वी देवी की भाँति पति का नाम स्मरण करती हुई विछोह के दिन तपस्यापूर्वक बिताने लगी।

वैसे वह किन्हीं भोज उत्सवों में सम्मिलित नहीं होती थी पर उस दिन एक निकट सम्बन्धी के यहाँ दावत में उसे जाना पड़ा। ऐनी के कोकिल कंठ की वाणी सुनने के लिये अतिथियों का अत्यन्त आग्रह था। वह अनुरोध जब अत्यधिक बढ़ गया तो उससे इनकार करते न बन पड़ा।

ऐनी की उँगलियाँ पियानो पर नाचने लगीं। उसने एक बड़ा ही भावपूर्ण गीत गाया। सारी सभा चित्र लिखित सी मुग्ध हो बैठी थी, मानो उसकी स्वर लहरी में सब लोग तन्मय हो गये हों। उस गोष्ठी में एक अमृतमयी निर्झरिणी झर रही थी।

लेकिन अरे! यह क्या? गीत पूरा भी न होने पाया था कि अचानक बीच में ही एक व्यवधान आ उपस्थित हुआ। ऐनी मूर्तिवत् जड़ हो गई, मानो उसे काठ मार गया हो। हाथ पियानो पर था, मुँह खुला हुआ था और आँखें घबराई हुई। वह एकदम घबराई हुई विक्षिप्त सी दीखने लगी। उसकी यह दशा देखकर सब लोग घबरा गये और कारण जानने के लिए उसके पास दौड़े। सभा का रंग भंग हो गया।

ऐनी एक प्रकार का प्रलाप कर रही थी। बहुत समय के उपरान्त लगातार प्रश्न करने पर पता चला कि अचानक ऐनी को ऐसा दिखाई पड़ा कि उसके सामने चार्ल्स की छाया मूर्ति खड़ी हुई है। सैनिक वेश में सुसज्जित उसका पति मरणासन्न दशा में वहाँ आया है। छाती में ठीक दिल के पास एक बड़ा भारी जख्म हुआ है, जिसमें छल-छल रक्त की धारा प्रवाहित हो रही है। उसके सारे कपड़े खून में तरबतर हो रहे हैं। बड़ा कातर होकर वह ऐनी की ओर निर्निमेष दृष्टि से देख रहा है।

उपस्थित सज्जनों में से किसी ने इसे भ्रम बताया किसी ने स्वप्न। पर ऐनी हतबुद्धि होकर मूर्च्छा में गिर पड़ी, उसे विश्वास हो गया कि अवश्य ही यह घटना सत्य है। मूर्च्छित ऐनी को घर ले जाया गया और यथाविधि उसका उपचार आरम्भ किया गया। डॉक्टर लोग बराबर यह विश्वास दिला रहे थे कि यह सब भ्रम है। हमारी दवाओं से तुम बहुत शीघ्र स्वस्थ हो जाओगी, किन्तु ऐनी का हृदय हाहाकार कर रहा था।

चौथे दिन युद्ध क्षेत्र से एक बन्द लिफाफा आया। जेन उस सीलबन्द पत्र को बिना खोले ही ऐनी के पास ले गई। मूर्च्छित अवस्था में उसने एक बार आँखें खोलीं, देखा कि जेन के हाथ में एक लिफाफा है, जिसमें युद्धक्षेत्र की सील मुहर लगी है। उस लिफाफे के देखते ही ऐनी के मुंह से एक बड़ा ही हृदय विदारक चीत्कार निकला। मानों हजार छुरियों से किसी ने उसके ऊपर हमला किया हो। दूसरे ही क्षण उसके प्राण पखेरू उड़ गये। उसका मृत शरीर शय्या के ऊपर लुढ़क रहा था।

उपस्थित महानुभावों ने उस सील बन्द लिफाफे को खोला तो उसमें फौजी कर्नल ने लिखा था कि- “युद्ध क्षेत्र में मातृभूमि की महान सेवा करते हुए शत्रु की सनसनाती हुई गोली का हृदयलिंगन करके वीर चार्ल्स ने स्वर्ग प्रयाण किया।”


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